लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बुधवार को अपने आदेश में कहा कि 40 हजार सफाई कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया के तहत होने वाले चयन और नियुक्ति उसके अग्रिम आदेश के अधीन होगी। न्यायमूर्ति डीके उपाध्याय की सिंगल बेंच ने ये आदेश उत्तर प्रदेश कर्मचारी संघ की याचिका पर दिया।
याचिका में शासनादेश को दी थी चुनौती
याचिका में 40 हजार सफाई कर्मचारियों की भर्ती के लिए पिछले 4 जुलाई को जारी शासनादेश को चुनौती देते हुए भर्तियां, मलकानी समिति की रिपोर्ट के अनुसार किए जाने की मांग की थी। याचिका में भर्तियों में लागू की गई आरक्षण की व्यवस्था और संविदा पर भर्ती किए जाने को भी चुनौती दी गई है।
भर्तियों में आरक्षण लागू करने की मांग
भर्ती संबंधी शासनादेश में 40 हजार भर्तियों के परिप्रेक्ष्य में वर्तमान आरक्षण व्यवस्था को लागू किए जाने की बात कही गई है। याचिका में शासनादेश के साथ-साथ साल 2010 के भी एक शासनादेश को रद्द किए जाने की मांग की गई है। जिसमें भर्तियां आउटसोर्सिंग के द्वारा किए जाने का जिक्र है।
ये थी याची की दलील
याची की दलील थी कि नगर निगम एक्ट में स्वीपर पद पर भर्ती के लिए दी गई व्यवस्था के स्थान पर सफाई कर्मचारी शब्द का प्रयोग कर के राज्य सरकार नई आरक्षण व्यवस्था थोपना चाहती है। जबकि नगर निगम एक्ट में सफाईकर्मी का कोई पद नहीं है। मात्र मेहतर का पद है।
मनमाने तरीके से भर्ती करने का आरोप
याचिका में आरोप लगाया गया है कि सरकार मनमर्जी से सफाईकर्मियों की भर्तियां करना चाहती है। यह भी कहा गया है कि साल 1968 में गठित मलकानी समिति की रिपोर्ट को सरकार ने मान लिया था और आगे से उसी आधार पर मेहतर पद पर भर्तियां करने का निर्णय हुआ था। लेकिन नई भर्तियों मे उस रिपोर्ट को नजरंदाज किया जा रहा है।
यह भी दलील दी गई कि राज्य सरकार 6 नवंबर 2010 के जिस शासनादेश के आधार पर संविदा पर भर्तियां करने जा रही है, उसे न्यायालय दूसरे विभागों के संबंध में पहले भी रद्द कर चुका है।