अबू सलेम का UP कनेक्शन: आजमगढ़ की गलियों मे खेलता था कंचे, अब सलाखों के पीछे
आजमगढ़ से 35 किलोमीटर दूर स्थित कस्बा सरायमीर में आज काफी कुछ बदल गया है। इस इलाके का जिक्र आज इसलिए जरूरी हो गया कि यह वही गांव है जहां अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम का जन्म हुआ जिसे टाडा अदालत ने गुरूवार 7 सितम्बर को 1993 मुम्बई में 1993 में हुए सिलसिलेवार ब
लखनऊ: आजमगढ़ से 35 किलोमीटर दूर स्थित कस्बा सरायमीर में आज काफी कुछ बदल गया है। इस इलाके का जिक्र आज इसलिए जरूरी हो गया कि यह वही गांव है जहां अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम का जन्म हुआ जिसे टाडा अदालत ने गुरूवार 7 सितम्बर को मुम्बई में 1993 में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में उम्रकैद सजा सुनाई है।
सरायमीर उस समय सुर्ख़ियों में आया जब पहली बार 1993 में मुंबई के सीरियल बम धमाकों में सलेम का नाम उछला। कभी सरायमीर की गलियों में कंचे खेलने वाला अबू सलिम अंसारी अब डॉन अबू सलेम बन चुका था।
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1960 के दशक में पठान टोला में एक छोटे से घर में एडवोकेट अब्दुल कय्यूम के यहां दूसरे बेटे अबू सालिम का जन्म हुआ। वकील होने की वजह से अब्दुल कय्यूम का इलाके में काफी दबदबा था, लेकिन एक सड़क हादसे में हुई मौत के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति ख़राब हो गई।
लिहाजा अबू सलेम को यहीं एक मोटरसाइकिल रिपेयरिंग की दुकान में नौकरी करनी पड़ी। इसके बाद उसने दिल्ली में ड्राईवर की नौकरी की। यहां से वह मुंबई पहुंचा और कुछ दिनों तक डिलीवरी ब्वाय के रूप में काम करने के बाद वह दाऊद के छोटे भाई अनीस इब्राहीम के संपर्क में आया। यहीं से शुरू हुई अबू सालिम की डॉन अबू सलेम बनने की कहानी।
लेकिन आज अबू सलेम के भाई और बहन ही नहीं सरायमीर भी उसका नाम नहीं लेना चाहता। उसके बारे में पूछने पर या तो लोग कन्नी काटते नजर आए या फिर साफ-साफ कह दिया कि उनका सलेम से कोई वास्ता नहीं।
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इलाके के लोग कहते हैं कि उसका यहां से कोई लेना देना नहीं। 15-16 की उम्र में वह यहां से चला गया और फिर पलटकर कभी नहीं देखा। उसकी मां बीड़ी बेचकर किसी तरह गुजारा करते-करते मर गई, फिर भी वह नहीं आया। मां की मौत के बाद तीसरे और 40वें में वह जरुर आया था। अब उसका यहां से कोई लेना देना नहीं है।”
सलेम की मां ने अपनी आखिरी सांस तक उसके मुंबई अंडरवर्ल्ड से जुड़ने और 1993 के सीरियल बम धमाकों में शामिल होने के लिए माफ नहीं किया था।”
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अब क्या करते हैं सलेम के भाई-बहन?
अबू सलेम के सबसे बड़े भाई अबू हाक़िम उर्फ चुनचुन परिवार के साथ सरायमीर में ही रहते हैं और चाईनीज ढाबा चलाते हैं। उनके तीन मंजिला आलिशान घर को देखकर लोग दबी जुबान में कहते हैं कि सलेम की वजह से ही है। उनके दूसरे भाई अबुल लैस परिवार से अलग रहते हैं। 2005 में जब अबू सलेम का पुर्तगाल से प्रत्यर्पण हुआ तो वे उससे मिलने गए थे, लेकिन अब उनका भी सलेम से कोई वास्ता नहीं है। सलेम के तीसरे भाई अबुल जैस लखनऊ में रहते हैं और लॉज चलाते हैं।
दोनों बहनों की शादी हो चुकी है। एक की शादी जगदीशपुर में हुई है तो दूसरी मुबारकपुर में बस चुकी है। इनका भी सलेम से कोई लेना देना नहीं है।
परिवार के सदस्यों से बात करने की सभी कोशिशें नाकाम रही. इतना ही नहीं सलेम का नाम लेते ही लोग शक की निगाहों से देखते मिले। कोई भी बात करने को तैयार नहीं था। वे दोस्त जो कभी बचपन में साथ कंचे खेलते थे वे भी कन्नी काटते नजर आए।