लखनऊ: बीजेपी के यूपी के पूर्व उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह के बसपा प्रमुख मायावती को अपशब्द कहने के प्रकरण ने बीजेपी को बैठे बिठाए एक महिला नेता दे दिया। अब ये बीजेपी पर निर्भर कि वो अपनी इस नई नेता के चेहरे का किस तरह इस्तेमाल चुनाव से पहले या चुनाव के समय करते हैं। हां बात हो रही है दयाशंकर की पत्नी स्वाति की जिसने अपशब्द प्रकरण पर बसपा को सटीक और माकूल जवाब दिया।
स्वाति घरेलू महिला हैं लेकिन वो लखनऊ यूनिवर्सिटी की लेक्चरार रह चुकी हैं। बसपा नेताओं की ओर से उनके और उनकी 12 साल की बेटी के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल किया गया। जिस पर उन्होंनें सधे तरीके से जवाब दिया, जो हर किसी को अंदर तक छू गया। दो पार्टियों के नेताओं के बीच जिस तरह अपशब्दों की जंग सोशल मीडिया पर चली, उसमें स्वाति ने बसपा प्रमुख मायावती और उनकी पार्टी के नेताओं को बहुत पीछे छोड दिया है। स्वाति भले ही राजनीति में नहीं हों, लेकिन इस प्रकरण ने उनके लिए बीजेपी के बड़े दरवाजे खोल दिए हैं। बीजेपी भी उनका फायदा चुनाव में उठाने के बारे में विचार कर रही है।
क्यों न दें स्वाति का टिकट: विजय बहादुर पाठकयूपी बीजेपी के महासचिव विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि अभी चुनाव में देर है ओर इसकी तारीखों की भी घोषणा अभी नहीं हुई है, लेकिन पार्टी स्वाति को टिकट देगी। सवाल के जवाब में वो सवाल ही उठाते हैं कि पार्टी स्वाति को क्यों टिकट नहीं दें। स्वाति यदि टिकट पाती हैं तो वो चुनाव में बसपा के खिलाफ बीजेपी का पीड़ित चेहरा होंगी। मायावती यदि चुनाव में बीजेपी के खिलाफ उनके लिए कहे गए अपशब्दों की बात उठाएंगी तो बीजेपी के पास भी स्वाति के रूप में एक चेहरा होगा। राजनीति अलग-अलग खेल दिखाती है। कब किसकी गुड्डी आसमान पर जाएगी कोई नहीं कह सकता। अपशब्द प्रकरण में न तो बीजेपी को उम्मीद थी कि ऐसा होगा और ना बसपा को कि पासा उल्टा पड़ जाएगा।
गिरफ्तारी नहीं तो प्रदर्शन: नसीमुद्दीन
दरअसल इस अपशब्द प्रकरण को न तो बसपा छोड़ना चाह रही है और न बीजेपी। बसपा के महासचिव नसीमुद्दीन कहते हैं कि यदि शनिवार तक दयाशंकर की गिरफतारी नहीं हुई तो 25 जुलाई को राजधानी छोड सभी मंडलों में प्रदर्शन होगा जबकि बीजेपी के महासचिव विजय बहादुर पाठक ने कहा कि इसी सवाल पर पार्टी ने 28 जुलाई को महिलाओं की एक बैठक बुलाई है। दयाशंकर को लेकर बसपा ने जो आक्रामकता दिखाई, वह उसके लिए उलटा दांव हो गया। इससे बसपा के सर्वजन के नारे को पलीता लग गया। राजनीति के जानकार ये मानते हैं कि मायावती को इस बात का अहसास बहुत पहले से है कि इस बार सवर्णों के वोट उन्हें नहीं मिलने वाले।
सवर्ण वोटों की बीजेपी को है चिंता
अपर कास्ट की बीजेपी में वापसी हो रही है। सवर्णों का वोट बसपा को वहीं मिलेगा , जहां उनका उम्मीदवार सवर्ण होगा और वह भी मजबूत और दबंग। वह अपनी बिरादरी के हाथ पांव जोड़कर उन्हें हाथी पर वोट करने को राजी करा लेगा। इसलिए एक के बाद एक पार्टी नेताओं के पार्टी छोड़ने से बैकफुट पर आ गई बीएसपी आक्रमकता दिखाकर अपने परम्परागत वोट बैंक को मजबूत करना चाहती हैं। उसे इस बात की फिक्र नहीं कि इससे सवर्ण वोट खिसक जाएगा। उन्हें इस बात का डर सता रहा था कि दलित भी कहीं लोकसभा चुनाव की तरफ शिफ्ट न हो जाए तो फिर उनके पास कुछ भी नहीं बचेगा, जैसे लोकसभा चुनाव में उनका खाता नहीं खुल पाया था। इसलिए बसपा कहीं किसी गलतफहमी की शिकार नहीं है। दलित वोटों को लेकर गलत रणनीति की शिकार बीजेपी हो सकती है। अपशब्द प्रकरण का फायदा बीजेपी को ये हुआ कि उसके सवर्ण वोट पक्के हो गए। अन्य पार्टिंयों के सवर्णों का झुकाव भी बीजेपी की ओर हो रहा है।