UP Politics: PDA के बाद अखिलेश का ब्राह्मण कार्ड,सात बार के विधायक माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाने के सियासी मायने

UP Politics: पीडीए समीकरण के दम पर लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने वाले अखिलेश यादव ने अब ब्राह्मण कार्ड चल दिया है

Report :  Anshuman Tiwari
Update: 2024-07-28 10:26 GMT

UP Politics: ( Social- Media- Photo)

UP Politics: समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव अब सधी हुई सियासी चाल चलते नजर आ रहे हैं। उन्होंने माता प्रसाद पांडेय को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाने का ऐलान किया है जो काफी चौंकाने वाला फैसला माना जा रहा है। पीडीए समीकरण के दम पर लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने वाले अखिलेश यादव ने अब ब्राह्मण कार्ड चल दिया है।

सात बार के विधायक और दो बार विधानसभा अध्यक्ष रह चुके माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाकर सपा मुखिया अखिलेश यादव ने ब्राह्मण समीकरण साधने का बड़ा प्रयास किया है। इसे भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश के रूप में भी देखा जा रहा है। सियासी जानकारों का मानना है कि 10 सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव और फिर 2027 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अखिलेश यादव ने बड़ा कदम उठाते हुए सबको हैरान कर दिया है।

अखिलेश के कदम ने क्यों सबको किया हैरान

सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कन्नौज से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद विधानसभा से त्यागपत्र दे दिया था। इसके बाद से ही नेता प्रतिपक्ष को लेकर कयासों का दौर चल रहा था। नेता प्रतिपक्ष के रूप में अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव, इंद्रजीत सरोज और तूफानी सरोज का नाम सबसे ज्यादा चर्चाओं में था। उत्तर प्रदेश विधान परिषद में लाल बिहारी यादव को नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद शिवपाल सिंह यादव भी इस रेस में पीछे हो गए थे।

इसके बाद यह तय माना जा रहा था कि पीडीए समीकरण के तहत अखिलेश यादव इंद्रजीत सरोज या तूफानी सरोज में से किसी एक को नेता प्रतिपक्ष की बड़ी जिम्मेदारी सौंप सकते हैं। माना जा रहा था कि इसके जरिए अखिलेश यादव दलित समीकरण साधने की कोशिश करेंगे क्योंकि दोनों नेता पासी बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले हैं। वैसे अखिलेश यादव ने सभी प्रकार की कयासबाजी पर विराम लगाते हुए माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाकर सबको हैरान कर दिया है।

भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश

सपा मुखिया अखिलेश यादव का यह कदम सियासी नजरिए से काफी अहम माना जा रहा है। पीडीए समीकरण को साधते हुए उन्होंने हाल में हुए लोकसभा चुनाव में 37 सीटों पर जीत हासिल की थी। सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से कांग्रेस को भी फायदा हुआ था और कांग्रेस भी 6 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। दूसरी ओर भाजपा 33 सीटों पर ही सिमट गई थी। लोकसभा चुनाव में अखिलेश की अगुवाई में सपा ने पिछड़े और दलित वोट बैंक में सेंध लगाकर भाजपा को करारी चोट दी थी।

अब सपा मुखिया अखिलेश यादव ने ब्राह्मण कार्ड चलते हुए भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने का एक और बड़ा प्रयास किया है। उत्तर प्रदेश में आमतौर पर भाजपा को ब्राह्मणों का समर्थन मिलता रहा है मगर अब अखिलेश यादव इस वोट बैंक में भी सेंध लगाकर भाजपा को करारी चोट देने की कोशिश में जुट गए हैं।

यूपी में ब्राह्मण मतदाता क्यों हैं अहम

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को बड़ी ताकत माना जाता रहा है। एक अनुमान के मुताबिक करीब 10 फ़ीसदी ब्राह्मण उत्तर प्रदेश में उम्मीदवारों का सियासी भविष्य तय करने में बड़ी भूमिका निभाते रहे हैं। प्रदेश की 115 विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण मतदाताओं का खासा असर माना जाता रहा है। सूबे की पांच दर्जन से अधिक सीटों पर ब्राह्मण मतदाता निर्णायक भूमिका अदा करते रहे हैं।

जानकारी के मुताबिक प्रदेश के करीब एक दर्जन जिलों में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या 20 फ़ीसदी से ज्यादा है। बनारस, चंदौली, गोरखपुर, महाराजगंज, भदोही, जौनपुर, देवरिया, अमेठी, बलरामपुर, कानपुर, संत कबीर नगर, प्रयागराज और बस्ती आदि जिलों में ब्राह्मण मतदाताओं की भूमिका काफी अहम होती है। इन जिलों में उम्मीदवारों की जीत-हार तय करने में ब्राह्मणों की बड़ी भूमिका होती है।

पीडीए समीकरण के साथ ब्राह्मण कार्ड

सियासी जानकारों का मानना है कि अखिलेश यादव का ब्राह्मण कार्ड बड़ा सियासी असर दिखाने वाला साबित हो सकता है। प्रदेश में 10 सीटों पर जल्द ही विधानसभा उपचुनाव होने वाले हैं। वैसे अखिलेश यादव ने अभी से ही 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता, सात बार के विधायक और दो बार विधानसभा अध्यक्ष रह चुके माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाकर अखिलेश ने जो सियासी चाल चली है, वह भाजपा के लिए काफी चिंता बढ़ने वाली है।माता प्रसाद पांडेय को नेता प्रतिपक्ष बनाने के साथ ही अखिलेश यादव ने कमाल अख्तर को मुख्य सचेतक बनाकर अल्पसंख्यक समीकरण भी साधने की कोशिश की है। इसके साथ ही विधायक महबूब अली को अधिष्ठाता मंडल और राकेश कुमार उर्फ आरके वर्मा को उपसचेतक नियुक्त किया गया है।अखिलेश यादव के इस कदम से साफ है कि उन्होंने पीडीए समीकरण के साधने के साथ ही ब्राह्मण कार्ड चलते हुए भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने का बड़ा प्रयास किया है। अब यह देखने वाली बात होगी कि भाजपा इसकी काट के लिए क्या कदम उठाती है।

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