जनता का काम न करने वाले जनप्रतिनिधियों को कुर्सी पर रहने का हक नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
हाईकोर्ट के इस आदेश के अनुसार यदि कोई जन प्रतिनिधि जनता की इच्छानुसार या भरोसे वाला काम करने में समर्थ नहीं है तो उसे पावर में रहने का अधिकार एक सेकेण्ड के लिए भी नहीं है।
नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक केस की सुनवाई के दौरान ऐसा आदेश जारी कर दिया। जो किसी भी जन प्रतिनिधि की नींद उड़ा सकता है। हाईकोर्ट के इस आदेश के अनुसार यदि कोई जन प्रतिनिधि जनता की इच्छानुसार या भरोसे वाला काम करने में समर्थ नहीं है तो उसे पावर में रहने का अधिकार एक सेकेण्ड के लिए भी नहीं है।
हाईकोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में जनता सम्राट होती है। जनता ही सबसे बड़ी अथॉरिटी होती है और सरकार लोगों की इच्छा शक्ति पर आधारित होती है।
जनता को जन प्रतिनिधि की आलोचना का अधिकार
लोकतंत्र सरकार का वह हिस्सा है, जिसमें देश के राजनेता जनता द्वारा ईमानदारी से इलेक्शन में चुने जाते हैं। लोकतंत्र में जनता के पास सत्ता में लाने के लिए उम्मीदवारों और दलों का ऑप्शन होता है।
कोर्ट ने ये भी कहा कि जनता जब अपने प्रतिनिधि को चुनती है तो उसकी आलोचना भी कर सकती है और अगर वे ठीक से काम न करें तो उन्हें हटा भी सकती है।
कोर्ट का ये भी कहना है कि स्थानीय और राष्ट्रीय स्तैर पर चुने जाने वाले जनप्रतिनिधियों को लोगों की आवाज जरूर सुननी चाहिए। साथ ही उनकी जरूरत पूरी करने का भी काम करना चाहिए।
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ये है पूरा मामला
यहां आपको बता दें कि ये आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शशिकांत गुप्ता और पीयूष अग्रवाल की पीठ ने एक केस की सुनवाई के वक्त दिया।
जो बिजनौर के कोतवाली क्षेत्र पंचायत के प्रमुख से जुड़ा हुआ मामला है। पंचायत प्रमुख ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
मामला कुछ यूं है याचिकाकर्ता पंचायत प्रमुख ने 29 जुलाई 2019 को चार्ज लिया था।
लेकिन तभी 21 अगस्त 2020 को उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश क्षेत्र पंचायत औरजिला पंचायत एक्ट 1961 के सेक्श न 15 के अंतर्गत अविश्वास मत ला दिया गया। जिसे लेकर उन्हें कोर्ट में जाना पड़ा।
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