बेनामी कृषि भूमि के दान पत्र को निरस्त करने का वाद राजस्व कोर्ट में होगा दाखिल
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि कृषि भूमि का दान निरस्त करने का मुकदमा सुनने का अधिकार राजस्व न्यायालय को है न कि सिविल न्यायालय को। कोर्ट ने कहा है कि उ.प्र. जमींदारी विनाश अधिनियम की धरा 331 स्पष्ट रूप से राजस्व न्यायालय के क्षेत्राधिकार वाले मामले में सिविल कोर्ट कोे बार लगाती है।
प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि कृषि भूमि का दान निरस्त करने का मुकदमा सुनने का अधिकार राजस्व न्यायालय को है न कि सिविल न्यायालय को। कोर्ट ने कहा है कि उ.प्र. जमींदारी विनाश अधिनियम की धरा 331 स्पष्ट रूप से राजस्व न्यायालय के क्षेत्राधिकार वाले मामले में सिविल कोर्ट कोे बार लगाती है।
कोर्ट ने सिविल न्यायालयों के आदेश को सही माना है जिसमें कहा गया है कि दान पत्र निरस्त करने के मुकदमें की सुनवाई का क्षेत्राधिकारी राजस्व न्यायालय को ही है।
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यह आदेश न्यायमूर्ति एस.पी.केशरवानी ने कानपुर नगर के राउगांव की सरला पाल व अन्य की याचिका पर दिया है। याची का कहना था कि उसके पति ने तुलसीराम के नाम 27 मार्च 97 में जमीन का बैनामा लिया। यह बेनामी सम्पत्ति थी। तुलसीराम का नाम राजस्व अभिलेख में दर्ज हो गया। इसी कृषि भूमि को तुलसीराम ने अपने बेटे शिवेन्द्र सिंह के नाम दान कर दिया।
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29 जुलाई 13 को दान पत्र को निरस्त करने के लिए याची ने सिविल वाद दायर किया और जमीन पर कब्जे की मांग की। सम्पत्ति खरीद के साक्ष्य दिये गये। सिविल कोर्ट ने कहा कि मामला कृषि भूमि का है इसलिए राजस्व अदालत को ही सुनने का अधिकार है। कोर्ट ने सिविल वाद वापस कर दिया। अपील भी खारिज हो गयी। जिस पर यह याचिका दाखिल की गयी थी। सवाल उठा कि कृषि भूमि के दानपत्र को निरस्त करने का वाद सिविल कोर्ट या राजस्व कोर्ट किसे सुनने का अधिकार है। कोर्ट ने कानूनी पहलुओं पर विचार करते हुए कहा कि वाद कारण के चलते राजस्व अदालत को ही वाद सुनने का अधिकार है।