वाराणसी के कछुओं के संरक्षण की नेवादा की तरफ शिफ्ट करने को चुनौती, फैसला सुरक्षित

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी में रामनगर से मालवीय पुल तक 1996 में गंगा नदी में कछुओं के संरक्षण के लिए बनी वाइल्ड लाइफ सेन्चुरी को नेवादा प्रयागराज से मिर्जापुर के आदलपुर गांव तक के गंगा क्षेत्र में शिफ्ट करने के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका पर निर्णय सुरक्षित कर लिया है।

Update:2018-12-05 20:01 IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी में रामनगर से मालवीय पुल तक 1996 में गंगा नदी में कछुओं के संरक्षण के लिए बनी वाइल्ड लाइफ सेन्चुरी को नेवादा प्रयागराज से मिर्जापुर के आदलपुर गांव तक के गंगा क्षेत्र में शिफ्ट करने के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका पर निर्णय सुरक्षित कर लिया है।

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फैसला 17 दिसम्बर को सुनाया जायेगा। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति वाई.के.श्रीवास्तव की खण्डपीठ ने भरत झुनझुनवाला की याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता अरूण कुमार यादव, भारत सरकार के अपर सालीसीटर जनरल शशिप्रकाश सिंह व अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता ए.के.गोयल ने बहस की। याची का कहना है कि गंगा नदी को केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय नदी घोषित किया है। जिसके किनारे 25 शहर बसे है। शहरों व उद्योगों के गंदे पानी के कारण गंगा प्रदूषित हो रही है जिससे निपटने के लिए एसटीपी लगायी जा रही है।

काशी की पौराणिक महत्ता के कारण लोग वाराणसी में शवदाह करते हैं और अपशिष्ट गंगा में बहा दिया जाता है। इससे निपटने के लिए गंगा में कछुए छोड़े गये ताकि वे मानव अपशिष्ट खाकर जल को दूषित होने से बचायें। राज्य सरकार ने 1996 में वाराणसी में सात किमी गंगा क्षेत्र को वाइल्ड लाइफ सेन्चुरी घोषित कर कछुओं को संरक्षित किया है। केन्द्र सरकार गंगा में जल परिवहन शुरू करने की योजना लागू की है। राम नगर मे जहाजों के ठहराव के लिए फाउण्डेशन बनाया जा रहा है। एक स्टैण्डिंग कमेटी की इस रिपोर्ट की वाराणसी में पक्के घाट, नदी में मानव हलचल के कारण कछुओं को अन्यत्र संरक्षित किया जाए।

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राज्य सरकार ने सेन्चुरी को वाराणसी से शिफ्ट कर दिया है जिससे गंगा में प्रदूषण का स्तर बढ़ेगा। जल परिवहन हल्दिया से प्रयागराज तक शुरू करने की योजना है। याची का कहन ाहै कि जल परिवहन योजना के लिए सेन्चुरी शिफ्ट की गयी है किन्तु कोर्ट ने इसे नहीं माना और कहा कि मानव हलचल से दूर गंगा में सेन्चुरी शिफ्ट करना कछुओं के हित में है। सरकार ने अधिसूचना में जल परिवहन का उल्लेख नहीं किया है। भारत सरकार की तरफ से कहा गया कि जल परिवहन सुप्रीम कोर्ट की अनुमति से शुरू किया गया है। अधिसूचना जारी हो चुकी है। याची का यह भी कहना था कि रामनगर में बन रहे जलपोत ठहराव स्थल को मालवीय पुल के बाद बनाया जा सकता है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुन निर्णय सुरक्षित कर लिया है।

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