इलाहाबाद : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है, कि अवमानना कोर्ट को आदेश का पालन कराने या न पालन करने पर दण्ड देने का ही क्षेत्राधिकार है। वह अपनी ओर से अलग से आदेश नहीं दे सकती।
कोर्ट ने अवमानना कोर्ट द्वारा छह लाख 53 हजार 372 रूपये 17 पैसे की वसूली के बाद ब्याज भुगतान का आदेश देने को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति भारती सप्रू तथा न्यायमूर्ति महबूब अली की खण्डपीठ ने कानपुर नगर के आर.के अवस्थी की ईश्वर चन्द्र निगम व अन्य के खिलाफ दाखिल विशेष अपील को स्वीकार करते हुए दिया है।
मालूम हो कि हाईकोर्ट ने डीएम कानपुर को उ.प्र औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 6एच(1) के तहत अवार्ड राशि की वसूली का आदेश हुआ। ईश्वरचन्द्र निगम ने आदेश का पालन कराने के लिए अवमानना याचिका दाखिल की। जिलाधिकारी ने अवार्ड राशि छह लाख 53 हजार 372 रू. 17 पैसे की वसूली कर ली।
कोर्ट ने स्थायी अधिवक्ता निमाई दास से इस प्रश्न पर सहयोग मांगा कि क्या अवमानना कोर्ट रिट कोर्ट के आदेश का पालन होने के बाद ब्याज की वसूली का आदेश दे सकती है। हालांकि औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 14(ए) के तहत अवार्ड की वसूली की व्यवस्था अधिनियम में ही की गयी है। याचिका कोर्ट को अवार्ड की वसूली का आदेश नहीं देना चाहिए। कोर्ट के दबाव में डीएम ने अपीलार्थी की संपत्ति जब्त कर ली और बेचने की कार्यवाही शुरू की। बैंक खाते को भी सीज कर लिया गया। इसके बाद अवमानना कार्यवाही भी शुरू हुई। अवमानना याचिका में ब्याज की मांग भी नहीं की गयी थी, फिर भी कोर्ट ने आदेश दिया है। क्योंकि वसूली में देरी हुई थी।