शिक्षा के भगवान डकार गए 14 लाख रुपये, ऐसे पकड़ में आया मामला
बीएनकेबी पीजी कालेज अकबरपुर में अनुसूचित जाति के छात्रों की शुल्क प्रतिपूर्ति की धनराशि का गबन किये जाने के मामले में मुकदमा दर्ज हो गया है।
अम्बेडकरनगर: बीएनकेबी पीजी कालेज अकबरपुर में अनुसूचित जाति के छात्रों की शुल्क प्रतिपूर्ति की धनराशि का गबन किये जाने के मामले में मुकदमा दर्ज हो गया है।
जिला समाज कल्याण अधिकारी राकेश चौरसिया की तहरीर पर अकबरपुर थाने में तत्कालीन प्राचार्य अजीत कुमार सारस्वत व वरिष्ठ लिपिक जितेन्द्र कुमार वर्मा के विरूद्ध मुकदमा पंजीकृत किया गया है।
13 लाख 77 हजार 422 रूपये की शुल्क प्रतिपूर्ति में किये गये घोटाले में महाविद्यालय के प्रबन्धक समेत कुछ अन्य लोगों पर भी आरोप लगे हैं।
2004 से 2009 के बीच का है मामला
शुल्क प्रतिपूर्ति के धनराशि में हुए घोटाले का मामला शिक्षा सत्र 2004 से 2009 के मध्य का है। समाज कल्याण विभाग द्वारा शुल्क प्रतिपूर्ति की धनराशि समय से न भेजे जाने के कारण महाविद्यालय प्रबन्धन ने छात्रों से शुल्क लेकर महाविद्यालय को परीक्षा व नामांकन शुल्क भेज दिया था।
2009 में समाज कल्याण विभाग द्वारा यह धनराशि एक मुश्त महाविद्यालय के छात्रवृत्ति खाते में भेज दी गई। 2012 में इस धनराशि को परीक्षा एवं नामांकन शुल्क खाते में ट्रांसफर कर दिया गया। नियमतः उक्त धनराशि का चेक छात्रों को दिया जाना था लेकिन ऐसा न करके धनराशि दूसरे खातें जमा कर दी गई।
आडिट में पकड़े जाने की आशंका में इस धनराशि को एक बार फिर छात्र निधि के खाते में डाल दिया गया। इस खाते का आडिट नही होता है। छात्र निधि के खाते में रकम आते ही खेल शुरू हो गया।
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2012 में ही निदेशक उच्च शिक्षा की अनुमति के बिना ही महाविद्यालय में आठ लाख रूपये की कीमत से कार क्रय कर ली गई। पंजीकरण एवं अन्य कार्याें पर इसी निधि से 80 हजार रूपये व्यय किये गये।
छः साल में इस कार के मेन्टीनेंस व आदि पर 12 लाख रूपये खर्च किये गये। यह सब कुछ छात्र निधि के खाते से हुआ। मामले के संज्ञान में आने के बाद महाविद्यालय केे ही प्रोफेसर ओम प्रकाश त्रिपाठी ने इसकी शिकायत जिलाधिकारी से की थी।
2017 में समाज कल्याण अधिकारी ने जारी किया था नोटिस
2017 में हुई इस जांच में 13 लाख 77 हजार 422 रूपया गबन सामने आने के बाद तत्कालीन जिला समाज कल्याण अधिकारी ने महाविद्यालय प्रशासन को नोटिस जारी की।
तत्समय प्राचार्य अवधेश त्रिपाठी ने लिखित रूप से यह बताया था कि सम्बन्धित धनराशि परीक्षा एवं नामंाकन शुल्क खाते में सुरक्षित है लेकिन इस धनराशि को जमा करने के लिए महाविद्यायल प्रशासन ने कई सहारे लिये।
यहां तक कि प्रबन्ध समिति की बैठक बुलाकर कार को नीलाम करने का प्रस्ताव पास किया गया। साथ ही लोगों से चन्दा लेकर सम्बन्धित धनराशि को जमा करने का प्रस्ताव पास हुआ।
इसके अलावा महाविद्यालय में विभिन्न मदों से प्राप्त तीन लाख रूपये को भी समाज कल्याण विभाग में जमा करने पर सहमति व्यक्त की गई।
सवाल यह उठता है कि यदि धनराशि खाते में सुरक्षित थी तो इस प्रकार की कार्यवाही क्यों की गई। यदि ऐसा किया गया तो क्या प्राचार्य ने समाज कल्याण विभाग को झूठ बोलकर गुमराह करने का प्रयास किया था।
प्रश्न यह भी है कि जिस खाते से धनराशि आहरित की गई उसका संचालन महाविद्यालय के प्राचार्य द्वारा ही किया जाता है। ऐसी स्थिति में गबन के दोषी प्राचार्य भी माने जाते हैं।
इन परिस्थितियों में प्रबन्धक ने तत्कालीन प्राचार्य के विरूद्ध कार्यवाही न कर प्रबन्ध समिति से प्रस्ताव पारित कराकर धनराशि जमा करने का रास्ता क्यों चुना।
साफ है कि इन सब कारगुजारियों के चलते इस पूरे खेल में प्रबन्धक के भी हाथ रंगे हुए हैं। तीन साल की लड़ाई के बाद अब जबकि मुकदमा दर्ज हो गया है, ऐसे में अब देखना यह है कि इस खेल में किस किसके ऊपर कार्यवाही होती है।
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