पांडवों ने भी रखा था अनंत चतुर्दशी का व्रत, कथा के श्रवण मात्र से दूर हो जाते हैं कष्ट

अनंत चतुर्दशी 2019 में 12 सितंबर को मनाई जा रही है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा होती है। गणपति बप्पा की प्रतिमा का विसर्जन भी इसी दिन करने का विधान है।

Update:2023-04-19 22:11 IST

लखनऊ: अनंत चतुर्दशी 2019 में 12 सितंबर को मनाई जा रही है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा होती है। गणपति बप्पा की प्रतिमा का विसर्जन भी इसी दिन करने का विधान है।

इस बार अनंत चतुर्दशी पर सुकर्मा योग का मान रहेगा जो इस पर्व के महत्व को और भी अधिक बढ़ा रहा है। बताया जा रहा है कि इस योग में हरि की पूजा से विशेष लाभ प्राप्त होगा।

कहा जाता है कि जो व्यक्ति 14 सालों तक लगातार अनंत चतुर्दशी व्रत को करता है उसे विष्णु लोक की प्राप्ति हो जाती है। जानें इस व्रत का महत्व, पूजा विधि, व्रत कथा, मंत्र और आरती…

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अनंत चतुदर्शी का महत्व

अनंत चतुदर्शी का त्योहार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है।

अनंत चतुर्दशी के दिन सूत या रेशम के धागे में चौदह गांठ लगाकर उसे कुमकुम से रंगकर पूजा करने के बाद उसे कलाई पर बांधा जाता है।

भगवान विष्णु का रूप माने जाने वाले इस धागे को अनंत धागा या रक्षासूत्र भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन उपवास करने वाले व्यक्ति को जीवन के सभी दुखों से छुटकारा मिल जाता है।

अनंत चतुदर्शी पूजा विधि

इस दिन सुबह सुबह स्नान कर साफ-सुथरे कपडे़ पहन लें। उसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत रखने का संकल्प लें और पूजा स्थल पर कलश की स्थापना करें।

अनंत चतुदर्शी के दिन भगवान विष्णु, यमुना नदी और भगवान शेषनाग की पूजा की जाती है।

कलश पर कुश से बने अनंत की स्थापना करें। चाहें तो इसकी जगह भगवान विष्णु की प्रतिमा भी लगा सकते हैं।

अब एक डोरी या धागे में कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगकर अनंत सूत्र बना लें। जिसमें 14 गांठें लगाई जानी जरूरी है। इस सूत्र को भगवान विष्णु को अर्पित करें।

अब भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की षोडशोपचार विधि से पूजा शुरू करें और अनंत सूत्र को बांधते समय इस मंत्र का जाप जरूर करें।

अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव। अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।

पूजन के बाद अनंत सूत्र को अपनी बाजू पर बांध लें। पुरुष अपने दाएं हाथ में और महिलाएं बाएं हाथ पर इस रक्षा सूत्र को बांधे।

ऐसा करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें।अनंत चतुर्दशी व्रत कथा प्राचीन काल में सुमंत नाम का एक नेक तपस्वी ब्राह्मण था। उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उसकी एक परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी। जिसका नाम सुशीला था।

सुशीला जब बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई। पत्नी के मरने के बाद सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया।

सुशीला का विवाह ब्राह्मण सुमंत ने कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया। विदाई में कुछ देने की बात पर कर्कशा ने दामाद को कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर दे दिए।

कौंडिन्य ऋषि दुखी हो अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की ओर चल दिए। परंतु रास्ते में ही रात हो गई। वे नदी तट पर संध्या करने लगे। सुशीला ने देखा- वहां पर बहुत-सी स्त्रियां सुंदर वस्त्र धारण कर किसी देवता की पूजा पर रही थीं।

सुशीला के पूछने पर उन्होंने विधिपूर्वक अनंत व्रत की महत्ता बताई। सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई।

कौंडिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उसने सारी बात बता दी। उन्होंने डोरे को तोड़ कर अग्नि में डाल दिया, इससे भगवान अनंत जी का अपमान हुआ। परिणामत: ऋषि कौंडिन्य दुखी रहने लगे।

उनकी सारी सम्पत्ति नष्ट हो गई। इस दरिद्रता का उन्होंने अपनी पत्नी से कारण पूछा तो सुशीला ने अनंत भगवान का डोरा जलाने की बात कहीं।

पश्चाताप करते हुए ऋषि कौंडिन्य अनंत डोरे की प्राप्ति के लिए वन में चले गए। वन में कई दिनों तक भटकते-भटकते निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े।

तब अनंत भगवान प्रकट होकर बोले- ‘हे कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा। तुम दुखी हुए। अब तुमने पश्चाताप किया है।

मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। चौदह वर्षपर्यंत व्रत करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा। तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे।

कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उन्हें सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गई।’ श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का व्रत किया जिसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए तथा चिरकाल तक राज्य करते रहे।

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पांडवों और राजा हरिश्चन्द्र ने भी किया था व्रत

महा भारतकाल में जब पांडव अज्ञातवास में थे तब जीवन के कष्टों से मुक्ति के लिए पांडवों ने भी अनंत चतुर्दशी का व्रत किया था।

वहीं, राजा हरिश्चन्द्र ने भी इस व्रत को पूरा कर अपने दुखों से मुक्ति पाई थी। इस व्रत की कथा की भी बहुत मह‍िमा बताई गई है।

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