अंत्येष्टि स्थलों का अंतिम संस्कार, सोनिया गांधी के जिले में जमकर धांधली, नियमों की आड़ में खेल
बीते विधानसभा चुनाव में जब पीएम नरेंद्र मोदी ने श्मशान और कब्रिस्तान की बात कही थी तो तमाम लोगों को लगा था कि इस पर राजनीति का मुलम्मा चढ़ाया जा रहा है।
राजकुमार उपाध्याय
लखनऊ: बीते विधानसभा चुनाव में जब पीएम नरेंद्र मोदी ने श्मशान और कब्रिस्तान की बात कही थी तो तमाम लोगों को लगा था कि इस पर राजनीति का मुलम्मा चढ़ाया जा रहा है। सपा ने तो पीएम पर मामले को साम्प्रदायिक रंग देकर ध्रुवीकरण की कोशिश तक का आरोप लगा दिया था मगर तब शायद लोगों को यह नहीं पता था कि मोदी सपा सरकार में कब्रिस्तान और श्मशान के बहाने हुए गोलमाल की तरफ भी उंगली उठा रहे थे।
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पिछली अखिलेश सरकार में कब्रिस्तान की चारदीवारी बनाने की योजना से उठे असंतोष के बाद अंत्येष्टि स्थल निर्माण की योजना शुरू की गई थी, मगर इसमें खूब धांधली की गयी। वर्तमान में प्रदेश भर में बने उन अंत्येष्टि स्थलों की हालत बेहद खराब है। ढेरों जगहों पर निर्माण अधूरे हैं। कहीं घोटालों के आरोप में जांच चल रही है और जो बने भी हैं उनमें से अधिकांश खुद अपने अंतिम संस्कार की राह देख रहे हैं।
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सोनिया गांधी के जिले में जमकर धांधली
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में भी अंत्येष्टि स्थलों के निर्माण में जमकर धांधली हुई। जिले भर में दो चरणों में 31 अंत्येष्टि स्थल बने मगर दो साल बीतने के बाद भी काम अधूरा है। पंचायतीराज अधिकारी संजय कुमार यादव का दावा है, कि सभी अंत्येष्टि स्थल बनकर तैयार हैं ,मगर अमावां ब्लाक के बघैल गांव में अर्धनिॢमत स्थल उनके दावों की सच्चाई की चुगली कर रहे हैं।
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मिर्जापुर में 2015-16 में 12 अंत्येष्टि स्थलों का निर्माण कराया गया तो 2016-17 में चार शवदाह स्थल बने लेकिन अपने मकसद में खरे नहीं उतरे। इनका निर्माण ऐसी जगहों पर कराया गया है जहां लोग अंतिम संस्कार करना पसंद नहीं करते। इसमें से भी कई अधूरे हैं।
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24.11 लाख रुपए हर ग्राम पंचायतों को भेजा गया था
जिलाधिकारी विमल कुमार दुबे यह स्वीकारने के साथ जल्द ही इन कामों को पूरा करने का दावा भी करते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मेरठ मंडल के बड़े और छोटे अंत्येष्टि स्थलों पर पिछले वित्तीय वर्ष में 65.5 करोड़ रुपये खर्च किए गए। यहां अकेले सात ग्राम पंचायतों में पौने दो करोड़ रुपए के बजट में गबन की आशंका है। छपरौली ब्लाक के बासौल, बड़ौत ब्लाक के जोनमाना, बागपत ब्लाक के मीतली, संतोषपुर, बाघू, पिलाना ब्लाक के सलावतपुर खेड़ी व खेकड़ा ब्लाक के विनयपुर गांव में अंत्येष्टी स्थल के लिए 24.11 लाख रुपए हर ग्राम पंचायतों को भेजा गया था।
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कमोबेश प्रदेश भर में बने अंत्येष्टि स्थलों का यही हाल है
जिस काम के लिए यह धनराशि दी गई थी वे छह माह बाद भी नहीं कराए जा सके हैं। प्रधानों व सचिवों पर बजट में हेराफेरी के आरोप हैं। बहरहाल प्रकरण की विभागीय जांच चल रही है।
अमेठी के संग्रामपुर ब्लाक के गोरखापुर गांव में साल भर पहले बना अंत्येष्टि स्थल खंडहर में तब्दील हो चुका है।
ग्रामीणों ने इसके निर्माण में घपले का आरोप लगाया था। वैसे इस बारे में वहंा के जिला पंचायतराज अधिकारी (डीपीआरओ) उमाकांत पांडे को भी कोई जानकारी नहीं है। उनका कहना है कि अभी तीन महीने पहले ही उन्होंने यहंा ज्वाइन किया है। वह इतने व्यस्त हैं कि उन्हें अब तक बने अंत्येष्टि स्थलों को देखने का वक्त ही नहीं मिला है। कमोबेश प्रदेश भर में बने अंत्येष्टि स्थलों का यही हाल है।
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तो इसलिए उठते रहे सवाल
समाजवादी पार्टी ने 2012 के विधानसभा चुनाव के घोषणा पत्र में कब्रिस्तानों को अतिक्रमण से बचाने के लिए चहारदीवारी के निर्माण का वादा किया था। सत्ता में आने के बाद अखिलेश सरकार ने चार सितम्बर 2012 को राज्य मंत्रिपरिषद की बैठक में इस योजना को अल्पसंख्यलक समुदायों के कब्रिस्तानों/अंत्येष्टि स्थल की भूमि की सुरक्षा योजना का नाम दिया।
इसके लिए 2012-2013 में 200 करोड़ और 2013-2014 में 300 करोड़ का प्रावधान भी किया गया। उस वक्त तक श्मशान घाटों के विकास के लिए कोई योजना नहीं थी। भाजपा ने बार-बार इस मामले को उठाते हुए सपा सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाया। फिर सितंबर 2014 में सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में श्मशान घाट के विकास के लिए योजना शुरू की।
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इसके अलावा सन 2014-15 के बजट में अल्पसंख्यकों के अंत्येष्टि स्थल के लिए 200 करोड़ का बजट तय किया गया और ग्रामीण क्षेत्रों में अंत्येष्टि स्थल के लिए 100 करोड़ रुपये दिए गए। 2016-17 वित्तीय वर्ष के लिए सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए 400 करोड़ रुपये का प्रावधान किया और ग्रामीण क्षेत्रों में श्मशान घाट के लिए 127 करोड़ दिए। अंत्येष्टि स्थलों के निर्माण में धन आवंटन की रकम में अंतर को लेकर भी सवाल उठे थे।
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नियमों की आड़ में भी खेल
जानकारों के मुताबिक स्थानीय स्तर पर ऐसी जगहों पर अंत्येष्टि स्थल बनाए गए हैं जहां लोग अंतिम संस्कार करना उचित नहीं समझते या फिर वह पर्यावरण की दृष्टि से लोगों के स्वास्थ्य के लिए घातक है। नियमों की आड़ में इसमें भी खेल हुआ। केंद्र सरकार ने इस सिलसिले में 2006 में एक नोटिफिकेशन जारी किया था। जिसके अनुसार इस तरह के निर्माण के लिए पर्यावरणीय अनुमति जरूरी है पर यह 20 हजार वर्ग मीटर तक की निर्माण योजनाओं पर ही लागू होता है जबकि अंत्येष्टि स्थल निर्माण कार्य का कुल कवर्ड एरिया (आच्छादित क्षेत्रफल) 158.79 वर्ग मीटर है। ऐसे में इसके लिए पर्यावरणीय अनापत्ति की आवश्यकता नहीं होती है।
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यह होना था काम
पंचायतीराज विभाग को अंत्येष्टि के लिए दो प्लेटफार्म, शांति स्थल, पेयजल और शौचालय की सुविधाएं, लकडिय़ों के लिए स्टोररूम व हैंडपम्प विकसित करना था। स्थल तक सडक़ मार्ग की व्यवस्था भी करनी थी।
आगे की स्लाइड में पढ़ें कैसे 13.23 से बढक़र 24.36 लाख हुई लागत...
13.23 से बढक़र 24.36 लाख हुई लागत
2014 में अंत्येष्टि स्थल के निर्माण की लागत 13.23 लाख रुपये थी। मई 2016 में इसकी लागत बढक़र 24.36 लाख रुपये हो गई। तर्क दिया गया कि पूर्व की मानकीकृत लागत में लकड़ी स्टोर व अंत्येष्टि स्थल पर आंतरिक इंटरलाङ्क्षकग की लागत सम्मिलित नहीं थी। यह काम ग्राम पंचायत को अपने संसाधन से कराए जाने को कहा गया। बढ़ी लागत के रूप में इन स्थलों की सडक़ से जोडऩे का प्रावधान किया गया।
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1499 अंत्येष्टि स्थलों का निर्माण शेष
पंचायतीराज विभाग के अधिकारियों के मुताबिक 2014 में जब जिलों से अंत्येष्टि स्थलों के निर्माण के बाबत प्रस्ताव मांगे गए तो अधिकारियों से सिर्फ यह कहा गया था कि जिलों में शवदाह स्थलों को चिन्हित कर उसकी सूचना दी जाए। इस तरह प्रदेश भर में 3540 अंत्येष्टि स्थल चिन्हित किए गए।
सरकार ने इसके निर्माण के लिए पंचायती राज विभाग को 2014-15 और 2015-16 में 100-100 करोड़ रुपये दिए। इनसे प्रतिवर्ष 755 ग्रामीण अंत्येष्टि स्थलों का निर्माण होना था। 2016-17 में 127.008 करोड़ रुपये दिए गए। इससे अब तक 531 स्थलों का ही निर्माण हो सका है। देखा जाए तो अभी भी 1499 अंत्येष्टि स्थलों का निर्माण शेष है।