लखनऊ: साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में विपक्ष की एकता के लिए पूरी तरह प्रयासरत चारा घोटाले के सजायाफ्ता और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की उम्मीदें अब समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती पर टिक गई हैं।
लालू यादव, बिहार के सीएम नीतीश कुमार पर लोकसभा चुनाव में विपक्ष का पीएम फेस होने पर बड़ा दांव खेलना चाहते थे। उन्हें लग रहा था कि वो नीतीश को इसके लिए मना लेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। नीतीश कुमार ने साफ कर दिया, कि वो अगले लोगसभा चुनाव में पीएम का चेहरा नहीं बल्कि खुद को बिहार की राजनीति तक ही सीमित रखना चाहते हैं। नीतीश के इस बयान से विपक्ष की बची-खुची उम्मीद भी खत्म हो गई। अब उसे नए चेहरे के लिए फिर से रणनीति बनानी होगी।
क्या सच में होगा 'मैच ओवर'?
लालू की पार्टी राजद 5 जुलाई को अपना 21 वां स्थापना दिवस मना रही है। लालू ने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया और बीजेपी से सावधान भी। लालू प्रसाद का कहना था कि यदि लोकसभा के आगामी चुनाव में मायावती और अखिलेश मिल गए तो वो 'मैच ओवर' है ,यानि विपक्ष के खाते में जीत लिखी जाएगी। दोनों के मिलने का असर बिहार समेत हिंदी पट्टी वाले अन्य राज्यों पर भी पड़ेगा।
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क्या बदलेगा इतिहास?
हालांकि, लालू यादव ने बीजेपी को रोकने के लिए आगामी 27 अगस्त को पटना में बुलाई गई रैली में मायावती और अखिलेश को आने पर राजी कर लिया है। अगर सच में ऐसा होता है तो राजनीतिक इतिहास में यह पहली घटना होगी जब 2 जून 1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा और बसपा के प्रमुख एक मंच पर आएंगे।
क्या गेस्ट हाउस कांड अब बीते दिनों की बात?
यूपी में 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा और बसपा की साझा सरकार बनी थी। यादव मुस्लिम और दलित के इस गठजोड़ को तोड़ना किसी के बस में नहीं था। लेकिन दो साल में ही दोनों दलों के बीच हालात ये हो गए कि लखनऊ के गेस्ट हाउस में अब बसपा प्रमुख मायावती पर जानलेवा हमला हुआ। उस घटना के बाद सपा, बसपा के बीच का राजनीतिक विरोध निजी दुश्मनी में बदल गया। मायावती और सपा के अब संरक्षक एक दूसरे के दुश्मन हो गए।
क्या माया ये भूल गईं?
दिलचस्प ये है, कि जिस बीजेपी के खिलाफ मायावती, सपा के साथ मंच साझा करने को राजी हुईं, उस वक्त उनकी जान भी बीजेपी के एक नेता ब्रहम्दत्त ने ही बचाई थी।
लालू-राबर्ट वाड्रा साथ-साथ!
लालू प्रसाद ने ये भी कहा, कि 'लोकसभा के आगामी चुनाव में विपक्षी एकता को मजबूत करने प्रियंका गांधी वाड्रा के पति राबर्ट वाड्रा भी उनके साथ होंगे। राजनीति में पूरी तरह सक्रिय न तो प्रियंका हैं और न उनके पति राबर्ट। हां, लालू और राबर्ट वाड्रा में एक समानता जरूर है कि दोनों पर जमीन को गलत तरीके से खरीदने और कब्जाने का आरोप है। लालू और उनके परिवार पर बिहार, दिल्ली में तो राबर्ट पर हरियाणा में ऐसे ही आरोप हैं।
क्या लालू अब भी पुराने गणित पर ही हैं?
लालू ये मान रहे हैं कि यादव, मुस्लिम और दलित का गठजोड़ बीजेपी को सत्ता से बाहर करने में सक्षम है। 20 साल पहले की राजनीति में ये संभव हो सकता था, लेकिन इस दौरान गंगा, गोमती में काफी पानी बह गया है। अब न तो बसपा के पास ठोस दलित वोट बैंक बचा है और न यादव और मुस्लिम पहले की तरह सपा के साथ हैं। दोनों के वोट बैंक दरक गए हैं। दूसरी ओर, बीजेपी लगातार यूपी में मजबूत होती जा रही है। अन्य हिंदी राज्यों में सपा ,बसपा का खास जनाधार नहीं हैं। बसपा का राजस्थान ,मध्यप्रदेश में थोड़ा बहुत तो सपा की महाराष्ट्र के कुछ मुस्लिम बहुल इलाके में पकड़ है। यूपी विधानसभा के फरवरी, मार्च में हुए चुनाव में बीजेपी को वो सीटें भी मिलीं जहां यादव और दलित वोट निर्णायक होते थे। मतलब, न तो यादवों पर सपा की पकड़ रही और न दलितों पर मायावती की।