Gomti Riverfront Scam: 1500 करोड़ के घोटाले में इन अफसरों और नेताओं पर कसा शिकंजा, देखें लिस्ट
लखनऊ के गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में सीबीआई की छापेमारी के बाद अब तक कई पूर्व नौकरशाह और नेताओं के नाम सामने आए हैं।
लखनऊ: अखिलेश सरकार में बने गोमती रिवर फ्रंट घोटाले की जांच तेज हो गई है। 5 जुलाई को सीबीआई की टीम यूपी, राजस्थान और बंगाल में एक साथ 40 ठिकानों पर छापेमारी कर अहम दस्तावेज बरामद किए हैं। करीब 1500 करोड़ के इस कथित घोटाले में जिस प्रकार से सीबीआई का एक्शन तेज हुआ है उससे उम्मीद है कि इससे जुड़े अफसर और नेताओं को सीबीआई बेनकाब करेगी। यहां ये भी जानना जरुरी है कि इस करोड़ों के घोटाले में किन-किन नौकरशाहों और सफेदपोश लोगों का अब तक नाम सामने आया है। यूपी के जिन जिलों में छापेमारी हुई थी उसमें लखनऊ, सीतापुर, रायबरेली, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, अलीगढ़, गोरखपुर, आगरा, बुलंदशहर, एटा, मुरादाबाद, मेरठ, इटावा शामिल हैं।
इन अफसरों के यहां पड़ा छापा
शिव मंगल यादव, सिंचाई विभाग के तत्कालीन एसई, रुचि खंड, गोमती नगर, लखनऊ।
रूप सिंह यादव, तत्कालीन एसई और एक्सईएन, शिवालिक अपार्टमेंट कौशाम्बी, गाजियाबाद और एनआरआई सिटी ग्रेटर नोएडा स्थित आवास।
सिद्ध नारायण शर्मा, तत्कालीन मुख्य अभियंता, शारदा सहायक के सेक्टर-5, वैशाली, गाजियाबाद स्थित आवास।
अखिल रमन, तत्कालीन एसई के विपुल खंड, गोमती नगर, लखनऊ स्थित आवास
ओम वर्मा, तत्कालीन मुख्य अभियंता, पंचम वृत्त, बरेली के विकास नगर, लखनऊ स्थित आवास।
काजिम अली, तत्कालीन मुख्य अभियंता, शारदा सहायक के अनूप शहर रोड स्थित आवास, अलीगढ़
जीवन राम यादव, तत्कालीन एसई, के बरेली, इंदिरा नगर, लखनऊ स्थित आवास।
सुरेंद्र कुमार पाल, तत्कालीन एसई वृत्त के सीतापुर साउथ सिटी, रायबरेली, लखनऊ स्थित आवास।
कमलेश्वर सिंह, तत्कालीन एसई, सप्तम वृत्त के विकास नगर लखनऊ स्थित आवास।
आसिफ खान, प्रोपराइटर, तराई कंस्ट्रक्शन के महानगर, लखनऊ स्थित आवासीय और आधिकारिक परिसर।
मोहन गुप्ता, डायरेक्टर, हाईटेक कॉम्पीटेंट बिल्डर्स के आवासीय व आधिकारिक परिसर, इंडस्ट्रियल एरिया, भिवाड़ी, अलवर, राजस्थान।
अंगेश कुमार सिंह, एमडी, अंगराज सिविल प्रोजेक्ट्स के आवासीय व आधिकारिक परिसर, राजाजीपुरम लखनऊ।
सत्येंद्र त्यागी, प्रोपराइटर, मेसर्स ग्रीन डेकर के सेक्टर 29, नोएडा स्थित आवासीय व आधिकारिक परिसर।
विक्रम अग्रवाल, प्रोपराइटर, एवीएस इंटरप्राजेज के चिनहट लखनऊ और गोल मार्केट, लखनऊ स्थित आवासीय व आधिकारिक परिसर।
अखिलेश कुमार सिंह, प्रोपराइटर, मेसर्स रिशु कंस्ट्रक्शन अनमोल एसोसिएट्स ज्वाइंट वेंचर के राप्तीनगर, शाहपुर, गोरखपुर और गोमतीनगर व इंदिरानगर लखनऊ स्थित आवासीय व आधिकारिक परिसर।
कारोबारी और बीजेपी नेता नितिन गुप्ता के यहां छापेमारी
बिल्डर से ठेकेदार बने नितिन गुप्ता का पूर्व की बसपा और सपा सरकार में काफी दबदबा रहा है और अपनी इसी रसूख की वजह से वह बीजेपी भी शामिल हो गया। नितिन गुप्ता 2008 में बसपा सरकार में नजदीकी रहे। फिर 2017 में विधान सभा चुनाव से आठ महीने पहले अखिलेश सरकार में उन्हें नागरिक सुरक्षा समिति में चीफ सेक्रेटरी वार्डन पद देकर राज्य मंत्री का दर्जा मिल गया। तब नितिन गुप्ता पहली बार सुर्खियों में आए। गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में नितिन गुप्ता की अनुपम ट्रेडिंग कंपनी भी पार्टनर थी। जिसके माध्यम से पत्थर की खरीद की गई। 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद नितिन गुप्ता बीजेपी में सक्रिय हो गए। रिवर फ्रंट में मैसर्स अन्नपूर्णा ट्रेडर्स को करोड़ों रुपये का ठेका मिला था।
बीजेपी विधायक राकेश सिंह बघेल के घर छापेमारी
गोरखपुर की मेहदावल विधानसभा सीट से बीजेपी विधायक राकेश सिंह बघेल के घर भी सीबीआई ने छापेमारी की थी। विधायक राकेश सिंह बघेल के भाई का नाम भी रिवरफ्रंट घोटाले में सामने आया था जिसको लेकर यह कार्रवाई की गई है।
क्या है रिवर फ्रंट घोटाला?
रिवर फ्रंट घोटाला एसपी सरकार के कार्यकाल में हुआ था। लखनऊ में गोमती रिवर फ्रंट के लिए एसपी सरकार ने 1513 करोड़ मंजूर किए थे। 1437 करोड़ रुपये जारी होने के बाद भी मात्र 60 फीसदी काम ही हुआ। रिवर फ्रंट का काम करने वाली संस्थाओं ने 95 फीसदी बजट खर्च करके भी पूरा काम नहीं किया था। सपा सरकार की 1500 करोड़ की महत्वाकांक्षी गोमती रिवर फ्रंट परियोजना में 407 करोड़ के ठेकों में धांधली पकड़ी गई है। सीबीआई दो चरणों में मामले की जांच कर रही है। एक जांच 1031 करोड़ रुपये से जुड़े ठेकों को लेकर है। दूसरी जांच 407 करोड़ के 661 ठेकों से जुड़ी है। दूसरे मामले में सीबीआई ने 189 लोगों के खिलाफ दूसरी एफआईआर दर्ज की है।
गोमती रिवर फ्रंट घोटाला में कब क्या हुआ?
वर्ष 2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार के सत्ता में आने के बाद घोटाले की बात सामने आई.तत्कालीन मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने प्रोजेक्ट में गड़बड़ी का संदेह व्यक्त करते हुए इसकी जांच की अनुशंसा की थी।
योगी सरकार ने न्यायिक जांच बैठा दी थी, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रिटायर्ड न्यायमूर्ति आलोक सिंह की अध्यक्षता में जांच समिति गठित की गई।
समिति ने जांच में दोषी पाए गए इंजीनियरों और अफसरों के खिलाफ केस दर्ज कराने की संस्तुति की थी।
19 जून 2017 को सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता डॉ. अंबुज द्विवेदी ने गोमतीनगर थाने में धोखाधड़ी सहित अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था।
इस प्रोजेक्ट में हुई गड़बड़ियों की विस्तृत जांच की जिम्मेदारी सीबीआई को सौंप दी गई।
सीबीआई की एंटी करप्शन ब्रांच ने सिंचाई विभाग की ओर से गोमतीनगर थाने में दर्ज मुकदमे को आधार बनाकर 30 नवंबर 2017 को नया मुकदमा दर्ज किया।
सीबीआई अब जांच कर रही है कि प्रोजेक्ट के कार्य पूर्ण कराए बगैर ही स्वीकृत बजट की 95 प्रतिशत धनराशि कैसे खर्च हो गई?
प्रारंभिक जांच के अनुसार, प्रोजेक्ट में मनमाने तरीके से खर्च दिखाकर सरकारी धन का बंदरबांट हुआ है।
प्रारम्भिक जांच के आधार पर सीबीआई ने 20 नवम्बर 2020 को इसमें मुख्य आरोपी सिंचाई विभाग के तत्कालीन मुख्य अभियन्ता रूप सिंह यादव और वरिष्ठ सहायक राम कुमार यादव को गिरफ्तार कर लिया था, इस केस में यह पहली गिरफ्तारी थी।