राजा रघुराज सिंह के आग्रह पर गोंडा आए थे महात्मा गांधी, बापू के पदचिन्हों का साक्षी है गांधी पार्क, मनकापुर राजभवन, सक्सेरिया स्कूल
अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के लिए गोंडा में आजादी की लौ जलाने गोंडा आए महात्मा गांधी की यादें जिले से जुड़ी हुई हैं।
गोंडा: देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति के लिए जिले में आजादी की अलख जगाने गोंडा आए महात्मा गांधी की यादें जिले से जुड़ी हुई हैं। वर्ष 1929 में वह जब देश भर में जन जागरण और आजादी के संघर्ष के लिए जनता की नब्ज टटोलने निकले तो उसमें गोंडा जिले का कार्यक्रम नहीं था। लेकिन मनकापुर के राजा के आग्रह पर वे गोंडा जिले में भी आए। कई कार्यक्रमों और सभाओं में हिस्सा लिया। बड़ी-बड़ी सभाएं कर उन्होंने यहां के लोगों में आजादी के प्रति जोश भरा। मनकापुर का राजभवन, सरयू प्रसाद कन्या पाठशाला (सक्सेरिया स्कूल), दुःखहरन नाथ मंदिर, प्रेम पकड़िया मैदान महात्मा गांधी के पदचिन्हों का साक्षी है। बापू की प्रेरणा से मनकापुर के राजा भी आजादी के जंग में कूद गए थे।
राजा रघुराज सिंह गांधी जी के विचारों में इतना डूब गए कि लोग उन्हें गांधी राजा कहने लगे थे। तब गोंडा का अंग रहे बलरामपुर के महाराजा ने भी गांधी जी का स्वागत किया और चार हजार रुपये की थैली भेंट की थी। गोंडा रेलवे स्टेशन पर उन्हें मूल्यवान चांदी का पात्र भेंट किया गया था। उनकी स्मृति में गोंडा नगर में स्थापित गांधी पार्क की प्रतिमा विश्व में लगी गांधी जी की प्रतिमाओं में सर्वाधिक मूल्यवान है। इटली में तैयार हुई इटैलियन संगमरमर की इस प्रतिमा को हवाई जहाज से लाया गया था।
गांधी के पदचिह्नों का साक्षी मनकापुर राजभवन
देश को आजादी दिलाने के लिए साल 1929 में जब महात्मा गांधी भारतीयों में जोश भरकर अलख जगाने का काम कर रहे थे, तब मनकापुर रियासत के तत्कालीन राजा रघुराज सिंह के मन में भी उनके प्रति श्रद्धा जाग उठी। उस समय उनके सबसे छोटे पुत्र कुंवर देवेन्द्र प्रताप सिंह उर्फ लल्लन साहब गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे। उन्हें विश्वास था कि बापू के आर्शीवाद से वे ठीक हो जाएंगे। राजा अपने पुत्र लल्लन साहब को लेकर नैनीताल में गांधी जी से मिले। उनका आर्शीवाद लिया। उनका विश्वास फलीभूत हुआ। राज कुमार शीघ्र ही स्वस्थ हो गए। जिससे राजा रघुराज सिंह की गांधी जी के प्रति श्रद्धा और बढ़ गई।
उन्होंने गांधी जी को मनकापुर आने का निमंत्रण दिया। बाद में गांधी जी ने उप्र के जिलों का भ्रमण प्रारम्भ किया तो राजा का पत्र लेकर बनारस गए लाल बिहारी टंडन से उन्होंने गोंडा आने का कार्यक्रम तय करने के लिए कहा। राजा रघुराज सिंह के आग्रह पर गांधी जी ने मनकापुर आने की स्वीकृति दी। उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों का दौरा निपटाने के बाद महात्मा गांधी 1929 में ट्रेन से आए। मनकापुर आगमन पर राजा रघुराज सिंह ने बग्घी (घोड़ों का रथ) भेजा। उन्होंने राजमहल में गांधी जी का राजसी ढंग से जोरदार स्वागत किया। राज सदन परिसर में आयोजित विशाल सभा में राजा साहब ने स्वागत भाषण भी किया। सभा में गांधी जी ने स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े क्रान्तिकारियों और युवाओं में जोश भरा। इसी दिन राजा महात्मा गांधी की प्रेरणा से कांग्रेस में शामिल हो गए और सक्रिय आंदोलन में हिस्सा लिया। आज भी मनकापुर राजमहल इस गौरवमयी इतिहास को समेटे है।
राजा को दी थी बदलने की सीख
मनकापुर राज भवन में जब राजा रघुराज सिंह अपने बच्चों को साथ लेकर महात्मा गांधी के पैर छूकर आशीर्वाद लेने गए तो गांधी जी ने मजाक ही मजाक में कह दिया कि राजा साहब अंग्रेजों से संघर्ष के लिए स्वयं को अंदर से बदलना पड़ेगा। हुआ यह था कि राजा साहब ने बच्चों को सफेद कुर्ता-पायजामा पहनाया था। राजसी पोशाक भी पहन रखी थी जो गांधी जी की पैनी नजरों से बच नहीं पायी। इसके बाद गांधी जी छपिया के खजुरी गांव के लिए रवाना हो गए। गांव पहुंचकर अपना भाषण दिया। जहां पर प्रदेश के सबसे अधिक 14 स्वतंत्रता सेनानी देश की सेवा में समर्पित हुए।
राजा रघुराज सिंह बन गए गांधी राजा
जब गांधी जी मनकापुर आए तो राज परिवार के मुखिया राजा रघुराज सिंह उनसे मिलकर काफी प्रभावित हुए। यहां तक कि वह अपने दरबार में हमेशा गांधी जी की चर्चा करते रहते। बात-बात में गांधी जी के उपदेशों का बखान करते थे। लोग राजा साहब के गांधी प्रेम को देखते हुए उन्हें गांधी राजा तक कहने लगे। वहीं आज भी खजुरी गांव गांधी की यादों को समेटे हुए है। गांव की गलियां व पंचायत का गांधी चबूतरा उनकी याद दिलाते हैं। वैसे तो गांव में गांधी जी के सानिध्य में रहने वाले लोग आज जिंदा नहीं हैं! लेकिन उनकी पीढ़ियां उन्हें नमन कर खुद को गौरवांवित महसूस करती हैं।
कुशलता के लिए लिखते रहे पत्र
मनकापुर राजघराने के राजा राघवेन्द्र प्रताप सिंह के पुत्र पूर्व सांसद और सूबे के पूर्व कृषि मंत्री राजा आनंद सिंह ने अपने बाल्यकाल में गांधी जी को राजभवन में ही देखा। गांधी जी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया था। वह कहते हैं कि गांधी जी के बारे में सुना लेकिन उनके विचारों को बाद में समझ पाया। आनंद सिंह बताते हैं, ''बाबा रघुराज सिंह और पिता राघवेंद्र प्रताप सिंह के व्यवहार और कार्यों से बापू इतने प्रसन्न हुए कि वह उनकी कुशलता के लिए पत्र लिखते थे। उनके द्वारा 1938 में लिखा गया पत्र आज भी उनके महल में सुरक्षित है। जिसमें कुशलक्षेम पूछने के साथ ही अंत में गांधी जी ने लिखा है बापू का आशीर्वाद।"
सक्सेरिया स्कूल में ठहरे थे गांधी जी
साल 1929 में गोंडा जिले के मनकापुर क्षेत्र में आंदोलनकारियों को सम्बोधित करने के बाद गांधी जी राजा रघुराज सिंह के साथ गोंडा मुख्यालय आए। यहां उन्हें शहर के सरजू प्रसाद कन्या पाठशाला (सक्सेरिया स्कूल) में ठहराया गया था। दुखहरन नाथ मंदिर के निकट उन्होंने एक बड़ी सभा की थी। यहां पर देश भक्त जनता द्वारा उन्हें पांच सौ रुपये की थैली भेंट की गई। सरजू प्रसाद कन्या पाठशाला में भी रात में प्रार्थना सभा की गई। 1929 में ही पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य घोषित होने पर इसके लिए 26 जनवरी को सभी स्थानों पर प्रतिज्ञा करने की योजना बनाई गई। जिस पर प्रेम पकड़िया नामक स्थान पर सुदामा चरित पर प्रवचन हुआ।
प्रेम पकड़िया में चलाया नमक आन्दोलन
नगर के मध्य गोलागंज मोहल्ले में प्रेम पकड़िया के ऐतिहासिक मैदान में भी गांधी जी का पदार्पण हुआ था। यहां भी जनसभा कर उन्होंने स्वतंत्रता प्रेमियों को आन्दोलन में कूदने का आवाहन किया था। बाद में गांधी जी के आवाहन पर 11 अप्रैल, 1930 को इस मैदान में नमक आन्दोलन शुरू हुआ। आजादी के दीवानों ने नमक बनाने का प्रदर्शन किया था।
बापू को गोंडा में मिला चांदी का पात्र
एक बार पूना से बंगाल जाते समय जब ट्रेन गोंडा में रुकी तो यहां के एक बड़े व्यापारी ने महात्मा गांधी को एक चांदी का पात्र भेंट किया। उसे गांधी जी ने नीलाम करने को कहा, जिसे एक अन्य धनी सेठ ने डेढ़ सौ रुपए में खरीद कर दोबारा उसे गांधी जी को समर्पित कर दिया। उन्होंने उसे फिर बेच दिया, इस पर उन्हें पांच हजार रुपए मिले। इस धन का उपयोग उन्होंने हरिजन कल्याण में किया था। महात्मा गांधी के गोंडा दौरे से जुड़े इस बात का जिक्र पंडित क्षमाराव ने अपनी पुस्तक स्वराज्य विजय में किया है।
महाराजा बलरामपुर ने भेंट की थी चार हजार की थैली
जिला मुख्यालय के बाद दूसरे दिन महात्मा गांधी तब जिले की महत्वपूर्ण तहसील रहे बलरामपुर भी गए थे। कांग्रेस कार्यकर्ता मौलवी जमा खां उनके स्वागत की तैयारी कर रहे थे। तभी बलरामपुर की महारानी राजलक्ष्मी कुमारी देवी और महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह को इसकी जानकारी हुई। हालांकि महाराजा स्वतंत्रता आन्दोलनों से दूर थे। लेकिन उन्होंने गांधी जी के स्वागत का निर्णय लिया। महाराजा ने कुआनो के पास गांधी जी का फूल मालाओं से भव्य स्वागत किया। स्वतंत्रता आन्दोलन में खर्च के लिए चार हजार रुपयों की थैली भेंट की। महाराजा के निर्देश पर गांधी जी को खादी कपड़ों से सजाया गए नगर के आलीशान यूरोपियन अतिथि गृह (अब माया होटल) में ठहराया गया। वहां गाधी जी के आगमन की जानकारी मिली तो हजारों लोगों ने उनके दर्शन किए। यहां की सभा में अपार भीड़ ने उनका स्वागत किया। महिलाओं ने दो हजार रुपए और कीमती आभूषण भेंट किया। गांधी जी की इस यात्रा का यहां व्यापक असर हुआ और पूरे जिले में स्वतंत्रता आन्दोलन को गति मिली और लोगों में चेतना जागृत हुई।
बापू की समृति में एडवर्ड पार्क हुआ गांधी पार्क
नगर के बीचो बीच मालवीय नगर मोहल्ले में आठ एकड़ में जिस पार्क की स्थापना वर्ष 1902 में हुई थी, पहले इसे एडवर्ड पार्क के नाम से जाना जाता था। वर्ष 1947 में देश की आजादी के बाद जिले में गांधी जी की स्मृति को संजोए रखने के लिए राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि स्वरूप इसी एडवर्ड पार्क को गांधी पार्क का नाम देकर उनकी इटैलियन संगमरमर से बनी प्रतिमा 1950 में स्थापित की गई। पार्क को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया गया। उनकी स्मृति में स्थापित गांधी पार्क की इस प्रतिमा का अलग महत्व है। पार्क में ही दक्षिण ओर डॉ. सम्पूर्णानंद प्रेक्षागृह का निर्माण कराया गया। जिसका शिलान्यास 15 सितम्बर, 1956 को तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. सम्पूर्णानंद और 17 अप्रैल, 1964 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन न्याय मंत्री अली जहीर ने किया था। गत वर्ष जिला प्रशासन के सहयोग से नगर पालिका परिषद द्वारा इसे भव्य स्वरुप प्रदान किया गया है।
पार्क में लगी इटैलियन संगमरमर की प्रतिमा
गांधी पार्क में रजिस्टर्ड संस्था गांधी संस्थान की निगरानी में सफेद संगमरमर की प्रतिमा स्थापित की तैयारी बनी। संस्थान के तत्कालीन अध्यक्ष लाल बिहारी टंडन ने लखनऊ के गवर्नमेंट आटर्स एंड क्राफ्टस कॉलेज के प्रिंसिपल राय चौधरी से मिलकर माडल तैयार कराया। इटली के शिल्पकार एंटोनियो मारजोलो के देख रेख में प्रतिमा व उसका आधार स्तंभ तैयार किया गया। इटैलियन संगमरमर की यह प्रतिमा इटली में तैयार हुई थी। इसे हवाई जहाज से लाया गया था। प्रतिमा के निर्माण पर 50 हजार रुपये, आधार निर्माण पर बीस हजार रुपये तथा वायुयान से प्रतिमा लाने पर 5 हजार रुपये खर्च किए गए थे। साढ़े नौ फीट ऊंची इस प्रतिमा का अनावरण वर्ष 1951 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पंडित गोविंद वल्लभ पंत ने की थी। गांधी जी की यह प्रतिमा विश्व भर में लगाई गई तमाम प्रतिमाओं में सर्वाधिक मूल्यवान है।
स्मारक बनाने का प्रयास कर रही नपा
गांधी जी की स्मृतियों को ताजा रखने व तमाम दिग्गज नेताओं और विशाल कार्यक्रमों का साक्षी बन चुके गांधी पार्क के विकास को लेकर नगर पालिका परिषद ने कई स्तर पर प्रयास किए हैं। मुख्यद्वार को भव्यता प्रदान की गई। विशालकाय प्रतिमा को धूप और बरसात से बचाने के लिए छतरी का निर्माण कराया गया है। नगर पालिका परिषद अध्यक्ष उजमा राशिद के प्रतिनिधि कमरुद्दीन एडवोकेट का कहना है कि पालिका की ओर से गांधी पार्क का सुंदरीकरण कराया जा रहा है। जिसके तहत लोगों के बैठने के साथ ही प्रतिमा स्थल पर भी कार्य कराए गए हैं। परिसर में स्थित प्रेक्षागृह और विद्यालय को आधुनिक संसाधनों से सुसज्जित कर भव्य स्वरुप दिया गया है। यहां की साफ सफाई का भी विशेष इंतजाम किया गया है। गांधी पार्क में सुविधाओं का और अधिक विस्तार करके इसे स्मारक के तौर पर विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है।