सैफ़ई मेडिकल यूनिवर्सिटी से भी जुड़े हैं नकली खून सरगना के तार, ब्लड बैंक के असली खून की कहाँ हो रही है सप्लाई?

सैफ़ई मेडिकल यूनिवर्सिटी के असिटेंट प्रोफेसर डॉक्टर अभय सिंह का जाँच में नकली खून के कारोबार का मुख्य सरगना के रूप में खुलासा हुआ है।

Report :  Sandeep Mishra
Published By :  Vidushi Mishra
Update: 2021-09-17 06:44 GMT

उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय सैफई इटावा (फोटो- सोशल मीडिया)

लखनऊ : यूपी एसटीएफ के हत्थे चढ़े सैफ़ई मेडिकल यूनिवर्सिटी के असिटेंट प्रोफेसर डॉक्टर अभय सिंह जाँच में नकली खून के कारोबार का मुख्य सरगना के रूप में अब सामने आ रहा है।

सैफ़ई मेडिकल यूनिवर्सिटी भी है अब सन्देह के दायरे में

सूत्र बताते हैं कि गिरफ्तार असिस्टेंट प्रोफेसर अभय सिंह सैफ़ई मेडिकल यूनिवर्सिटी के ब्लड बैंक का मुख्य इंचार्ज भी है। पकड़ा गया नकली खून सप्लाई करने वाला यह सरगना डॉ. अभय सिंह गत 18 अगस्त , 2018 से सैफ़ई मेडिकल यूनिवर्सिटी के ब्लड बैंक का इंचार्ज है।

इस पर पूर्व में भी इस तरह के आरोप लगते रहे हैं कि ये नकली खून का सरगना इटावा व मैनपुरी जनपद के स्मैकियों यानी नशेड़ियों का प्रदूषित खून भी औने पौने दामों में लेता रहा है । इसकी सैफ़ई मेडिकल यूनिवर्सिटी में तत्कालीन कुलपति से अच्छी सैटिंग होने के कारण इसके खिलाफ इस तरह की शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया गया।

सूत्र बताते हैं कि नकली खून का सरगना डॉ अभय सिंह के इस नकली खून निर्माण के नेटवर्क से सैफ़ई मेडिकल यूनिवर्सिटी से जुड़े कुछ अन्य डॉक्टर व कर्मी भी शामिल हैं,जिनका खुलासा अब यूपी एसटीएफ को अब करना है।

लखनऊ से नोएडा तक थी नकली खून निर्माण की लैब्स

सूत्र बताते हैं कि यूपी एसटीएफ के हत्थे चढ़ा नकली खून का यह कारोबारी सरगना डॉ. अभय सिंह ने गत 18 अगस्त, 2018 में सैफ़ई मेडिकल यूनिवर्सिटी के ब्लड बैंक का चार्ज संभालने के बाद लखनऊ की गोल्फ सिटी से लेकर नोएडा सिटी तक करोड़ो रूपये के फ्लैट खरीद कर बड़े बड़े फ्रीजर लेकर इन फ्लैट्स में कई मशीनों को स्थापित कर अपने नकली खून निर्माण के कारोबार को संचालित किए था।

अब यूपी एसटीएफ को अपनी जांच इस बिंदु पर भी आगे बढ़ानी होगी।ताकि यह खुलासा हो सके कि लखनऊ सिटी से नोयडा सिटी तक इसके ये नकली खून बनाने के सेंटर किन जगहों पर स्थापित थे।साथ ही यह भी जांच अब जरूरी है कि लखनऊ से लेकर नोयडा तक किन किन जिलों के किन नर्सिंग होम्स व हॉस्पिटल्स में ये अपनी लैब्स में निर्मित नकली ब्लड को सप्लाई करता था।

स्लो पॉयजन है ये नकली खून

जानकर डॉक्टर्स बताते हैं कि इंसान के शरीर से असली ब्लड निकाल कर उसमें स्लाइन वाटर मिलाकर जब उसे नकली खून के रूप में तैयार किया जाता है तब ये ब्लड एक सिलो पॉयजन का रूप अख्तियार कर लेता है।

देखने मे ये ब्लड बिल्कुल असली ब्लड की तरह ही दिखता है। लेकिन जब ये नकली खून किसी मरीज के शरीर मे चढ़ाया जाता है तो शरीर के अन्दर प्रवेश करने के बाद ये नकली खून एक मीठा ज़हर के रूप में अपना काम करना शुरू कर देता है।


शुरुआत में मरीज व उसके तीमारदारों को पता नहीं चलता। लेकिन बाद ने धीरे-धीरे यह नकली खून मानव के शरीर मे अपना साइड इफेक्ट शुरू कर देता है।जिससे मरीज धीरे धीरे कई गम्भीर बीमारियों से ग्रसित होकर मर जाता है।

निष्पक्ष जांच से कई चेहरे होंगे बेनकाब

सैफ़ई मेडिकल यूनिवर्सिटी से जुड़े कुछ खास सूत्र इस बात की तरफ भी इशारा करते हैं कि इस नकली खून के करोबार के सरगना डॉ अभय सिंह के नकली ब्लड बनाने के लिये असली ब्लड उपलब्ध कराने में सैफ़ई मेडिकल यूनिवर्सिटी के ब्लड बैंक में कई राज ऐसे छिपे हैं कि यदि उनसे पर्दा उठा गया तो इस मेडिकल यूनिवर्सिटी से जुड़े कई लोगों के चेहरे बेनकाब होने की पूरी संभावना है।

सूत्र बताते हैं कि आसपास के कई समाजसेवी, पत्रकार,व अन्य समाजिक संगठन,इस नकली ब्लड के सरगना डॉ अभय सिंह के आह्वान पर वर्ष में कइयों बार ब्लड डोनेट करने के लिये आते थे।इस सरगना व सैफ़ई ब्लड बैंक इंचार्ज डॉ अभय सिंह के आह्वान पर भी यूनिवर्सिटी में ब्लड डोनेट के कैम्प भी अक्सर आयोजित होते रहते थे। इसलिये सैफ़ई ब्लड बैंक में कई हजार यूनिट ब्लड विभिन्न ग्रुप्स का हमेशा उपलब्ध रहता है ।

लेकिन जब जब भी सैफ़ई मेडिकल यूनिवर्सिटी में भर्ती किसी सीरियस मरीज या अन्य किसी मेडिकल स्टूडेंट्स व स्टाफ को ब्लड की आवश्यकता हुई, तब तब इस सैफ़ई ब्लड बैंक में ब्लड का टोटा ही बना रहा।

अब सवाल यह खड़ा होता है, आखिर विभिन्न स्रोतों से जमा किया जाने वाला ब्लड अखिर कहाँ सप्लाई हो किया जाता था, जो हमेशा इस ब्लड बैंक में ब्लड का टोटा ही बना रहता था। जबकि अगर सूत्रों की माने तो नकली खून का यह सरगना व सैफ़ई ब्लड बैंक का इंचार्ज डॉ. अभय सिंह मरीजों के तीमारदार से इलाज के बहाने एक यूनिट के बदले 4 या 5 यूनिट ब्लड अधिक ही डोनेट करवाता था।

उसके बावजूद भी सैफ़ई के ब्लड बैंक में खून का टोटा ही रहता है।गत 15 सितम्बर, 2017 को इस यूनिवर्सिटी के एमबीबीएस छात्र दिग्विजय सिंह की मां मनीषा देवी की मौत भी महज इसलिये हो गयी थी क्योकि उस छात्र की मां को जरूरत पड़ने पर इस यूनिवर्सिटी के ब्लड बैंक से खून उपलब्ध नही करवाया गया था। बल्कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने मना कर दिया था कि ब्लड बैंक में ब्लड उपलब्ध ही नहीं है।जबकि हर माह इस यूनिवर्सिटी के छात्र समय समय पर अपना ब्लड डोनेट करते आ रहे थे।

बस यही सवाल फिर है कि आखिर डोनेट ब्लड इस यूनिवर्सिटी के ब्लड बैंक से रातों रात कहाँ गायब हो रहा था कि जरूरतमंदों को ब्लड उपलब्ध नही होता है।बस अब यूपी एसटीएफ मौत के इस सौदागर सरगना के इसी नेटवर्क का अभी और खुलासा करना बाकी है।

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