UP Assembly Elections: यूपी की सत्ता में ब्राह्मण बड़े असरदार, लेकिन 1989 से है सीएम कुर्सी का इंतजार
यूपी विधानसभा चुनाव से पहले यूपी की सियासत में ब्राह्मणों का ही जिक्र चल रहा है, कौन उन्हें कैसे अपने पाले में कर ले सियासी दल इसी को लेकर जोड़-घटाव में लगे हुए हैं।
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले यूपी की सियासत में 'पंडित जी' का जलवा फिर से दिखाई देना लगा है। दिल्ली से लेकर लखनऊ तक इस वक्त सियासी गलियारे में ब्राह्मणों का ही जिक्र चल रहा है, कौन उन्हें कैसे अपने पाले में कर ले सियासी दल इसी को लेकर जोड़-घटाव में लगे हुए हैं। बसपा, सपा के बाद अब 6 सितंबर से बीजेपी भी प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन की शुरुआत करने जा रही है। जिसमें खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह तक शिरकत करेंगे। चुनाव से पहले करीब 12 फीसदी वोटरों पर सभी दलों की निगाहें हैं। सत्ता के शिखर तक पहुंचने के लिए भले ही ब्राह्मण अहम रोल निभाता हो लेकिन 1989 से अब तक कोई भी ब्राह्मण नेता यूपी का मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है।
आजादी के बाद बने 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री
आजादी के बाद उत्तर प्रदेश में 6 बार ब्राह्मण नेता मुख्यमंत्री बने। ये सभी कांग्रेस पार्टी से ही रहे हैं। इनमें से स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी 3 बार सीएम रहें हैं । इस तरह देखें तो कांग्रेस पार्टी ने ही 6 ब्राह्मण नेता को यूपी की सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाया बाकी दलों ने इन्हें सिर्फ वोट बैंक के लिए यूज किया। चुनाव बाद कुछ नेताओं को विभागों की जिम्मेदारी सौंप कर इन्हें समेट दिया।
यूपी के ब्राह्मण मुख्यमंत्री और उनका कार्यकाल
पं. गोविंद बल्लभ पंत- 26 जनवरी 1950 से 27 दिसंबर 1954 तक।
सुचेता कृपलानी- 2 अक्टूबर 1963 से 13 मार्च 1967 तक।
कमलापति त्रिपाठी- 4 अप्रैल 1971 से 12 जून 1973 तक।
हेमवती नंदन बहुगुणा- 8 नबंवर 1973 से 29 नवंबर 1975 तक।
नारायण दत्त तिवारी- 21 जनवरी1976 से 30 अप्रैल 1977 तक।
श्रीपति मिश्रा- 26 जून 1982 से 23 सितंबर 1985 तक।
नारायण दत्त तिवारी- 3 अगस्त 1984 से 23 सितंबर 1985 तक।
नारायण दत्त तिवारी- 25 जून 1988 से 5 दिसंबर 1989 तक।
ब्राह्मण यूपी का तीसरा सबसे बड़ा वोट बैंक
अब आप यह भी समझ लीजिए कि आखिर सभी राजनीतिक पार्टियां ब्राह्मणों को क्यों अपने पाले में करना चाहती है। दरअसल ओबीसी और एसपी के बाद ब्राह्मण यूपी का तीसरा सबसे बड़ा वोट बैंक है। यह कई दफा साबित हो चुका है कि यूपी का तीसरा सबसे बड़ा वोट बैंक ब्राह्मण जिसकी तरफ खड़ा हो जाता है अक्सर कुर्सी उसके पास पहुंच जाती है। यूपी के इतिहास में अब तक कुल 21 मुख्यमंत्री बने हैं, जिसमें 6 ब्राह्मण रहे और इसमें 3 बार एनडी तिवारी सीएम रहे। ब्राह्मणों ने 23 साल तक यूपी पर राज किया, जब सीएम नहीं भी रहे तो भी मंत्री पदों पर उनकी संख्या और जातियों की तुलना में सबसे बेहतर रही।
मंडल कमीशन के बाद 'स्टेपनी' बने ब्राह्मण
करीब तीन दशक तक यूपी की सत्ता पर राज करने वाले ब्राह्मण अब भले ही बड़े वोट बैंक के रूप में हों लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि यूपी सियासत और सत्ता में सालों तक ड्राइवर रहे ब्राह्मण की हालत अब 'स्टेपनी' की तरह हो गई है। दरअसल, साल 1980 में मंडल कमीशन की रिपोर्ट आई। इसके 10 साल बाद यह रिपोर्ट लागू हुई। रिपोर्ट के बाद यूपी में दलित-ओबीसी राजनीति ने ब्राह्मणों को पीछे धकेल दिया। मंडल के बाद भले ही बीजेपी भी सत्ता में आई लेकिन कोई ब्राह्मण सीएम नहीं बन पाया। बसपा में मायावती के अलावा कोई हो ही नहीं सकता। सपा में मुलायम सिंह यादव और फिर उन्होंने गद्दी अपने बेटे अखिलेश यादव को सौंप दी अब उनके हाथ में पूरी तरह से कमान है।
बहरहाल मंडल के बाद सत्ता में न सिर्फ उनकी भागीदारी कम होती गई बल्कि उन्हें वक्त के साथ अपनी प्रासंगिकता बचाए रखने के लिए सपा-बसपा जैसी उन पार्टियों के साथ भी खड़ा होना पड़ा, जहां राजनीति का आधार ही ब्राह्मणों की सत्ता को चुनौती देना था।
विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों का रुझान
2017 के यूपी विधानसभा में बीजेपी को 80 फीसदी ब्राह्मणों ने वोट किया, यूपी में कुल 58 ब्राह्मण विधायक जीते, जिनमें 46 विधायक बीजेपी से बने थे। वहीं, 2012 विधानसभा में जब सपा ने सरकार बनी थी तब बीजेपी को 38 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले थे। सपा के टिकट पर 21 ब्राह्मण समाज के विधायक जीतकर आए थे। 2007 विधानसभा में बीजेपी को 40 फीसदी ब्राह्मण वोट मिले थे।
2007 में BSP ने दलित-ब्राह्मण गठजोड़ का सफल प्रयोग किया था, जिसे बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया था। यूपी की सियासत में मायावती ने 2007 में ब्राह्मणों को महत्व दिया था, जिसके चलते प्रदेश में ब्राह्मण वोटों का महत्व बढ़ गया। तब से जो भी दल सत्ता में आए उसमें ब्राह्मण वोटों की अहम भूमिका रही, 2007 में जब मायावती सत्ता में आईं तो उस समय बीएसपी से 41 ब्राह्मण विधायक चुने गए।
यूपी की ब्राह्मण बाहुल्य वाली सीटें
बलरामपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर, प्रयागराज शामिल हैं, यहां 15 फीसदी से ज्यादा इनकी संख्या है। हालांकि कुछ जिले ऐसे भी हैं जहां इनकी संख्या करीब 20 फीसदी है। पश्चिमी यूपी के हाथरस, बुलंदशहर, मेरठ, अलीगढ़, पूर्वांचल व लखनऊ के आसपास के कई जिलों में ब्राह्मण मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं।
यूपी में सक्रिय ब्राह्मण नेता
भाजपा- विधानसभा अध्यक्ष ह्रदयनारायण दीक्षित, उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा, मंत्री सतीश द्विवेदी, मंत्री श्रीकांत शर्मा, प्रयागराज से सांसद रीता बहुगुणा जोशी, केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय, यूपी सरकार में मंत्री ब्रजेश पाठक
सपा- पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय, पूर्व मंत्री अभिषेक मिश्रा, मनोज पांडे, तेज नारायण पांडेय 'पवन', पूर्व विधायक संतोष पांडेय
बसपा- राज्यसभा सांसद सतीश चंद्र मिश्र, पूर्व सांसद विनय तिवारी, पूर्व मंत्री नकुल दुबे
कांग्रेस- पूर्व सांसद प्रमोद तिवारी, कांग्रेस विधायक आराधना मिश्रा उर्फ मोना