Lucknow News,: अंग्रेज चले गए, अपना पुल भूल गए, ऐसा है स्मार्ट सिटी लखनऊ का हाल

एक कहावत तो आपने सुनी ही होगी, अंग्रेज़ चले गए अंग्रेजी छोड़ गए, लेकिन लखनऊ शहर में वो अपना पुल भूल गए है।

Published By :  Raghvendra Prasad Mishra
Update:2021-08-29 21:45 IST

क्षतिग्रस्त पीपे वाले पुल से जान जोखिम में डालकर गुरते लोग (फोटो-न्यूजट्रैक)

Lucknow News: एक कहावत तो आपने सुनी ही होगी, अंग्रेज़ चले गए अंग्रेजी छोड़ गए, लेकिन लखनऊ शहर में वो अपना पुल भूल गए है। शायद तभी आज़ादी के 74 साल बाद भी सरकार उसे हटा कर पक्का पुल नहीं बना पाई। कहीं अंग्रेज़ वापस मांगने न चले आएं, सरकारों ने तो यूपी में विकास भेजा लेकिन शायद वो कहीं भटक गया, और भटके भी क्यों न बेचारा मासूम जो ठहरा। लेकिन लखनऊ की जनता अब विकास को पुकार रही है, विकास कहाँ हो विकास ज़रा यहाँ भी आजाओ... लखनऊ का ये पीपे वाला पुल जिसपर हर रोज़ हज़ारों लोग अपनी जान जोखिम में डाल कर सफर करने को मजबूर होते हैं क्योंकि शायद सरकारी गाड़ियों की मखमल की गद्दी और चिलिंग ac में अधिकारीयों को पुल के जर्जर होने का एहसास ही नहीं हुआ।

राजधानी लखनऊ में एक ऐसा भी पुल है जो की अंग्रेजों के समय से बनवाया गया था इसे आज पीपे वाले पुल के नाम से लोग जानते है। लखनऊ 50 हजार आबादी इस पुल से निकलती है। बताते चलें कि पुराने लखनऊ के गऊघाट से गला व दाउदनगर को जोड़ने वाला ये पीपे वाला पुल आजादी के पहले से बना है। यहाँ के स्थानी लोग बताते हैं कि काफी समय से स्थाई पुल निर्माण की मांग चल रही है पर इतनी सरकारें आई अभी तक किसी ने भी इसकी सुध नहीं ली।

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लोहे के बड़े बड़े पीपे पर टिका है पुल

इस पुल का नाम पीपा वाला पुल इसलिए है क्योंकि इस पुल को बनाने में लोहे के बड़े बड़े पीपे बनाये गए थे जो की गोमती में तैयते रहते है। उन पीपों को आपस मे बांध कर उन पर लकड़ी बड़ी बड़ी बल्ली डाली गई है जिसपर लोग गुजरे है।

चार पहियों से लेकर छोटे वाहन व पैदल निकलते है लोग

पुल पूरी तरह से जर्जर हो चुका बावजूद लोग आज भी इसी पुल का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस पुल से पैदल व बाइक सहित लोग चार पहिया वाहन भी निकालते हैं। लोग बताते हैं उन्हें इस पुल से निकलना मजबूरी है। अगर वो इस पुल के बाजय पक्के पुल के जरिए निकले लगभग 20 किलोमीटर दूरी बढ़ जाती है।

साल में 8 महीना ही चलता है पुल

यहाँ के लोग बताते है यह पुल 8 महीने ही प्रयोग में लिया जाता है। जून महीने आने से पहले पुल बन्द कर दिया जाता है। पीपे पर पड़ी लकड़ी हटा ली जाती है उसके बाद नाव से नदी पार करनी पड़ती है।

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