निर्भया कांड में आरोपियों को फांसी के फंदे तक पहुंचाने तक अधिवक्ता सीमा को करनी पड़ी थी कड़ी पैरवी, इस कांड के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति ने बनाये कड़े कानून
आज के दिन 16 दिसंबर 2012 में घटा निर्भया कांड। इतना वीभत्स था यह कांड कि अगर किसी राक्षस ने भी इस कांड के बारे में पढ़ा होगा तो उसकी अभी रूह कांप उठी होगी।
Lucknow: आज 9 साल बाद भी जब निर्भया कांड (nirbhaya case) पर लिखने के लिये कलम उठती है तो हांथ कांपने लगते हैं, आंख नम हो जाती है। शरीर क्रोध की अग्नि से जल उठता है। इतना वीभत्स था गत 2012 में घटा निर्भया कांड। इतना वीभत्स था यह कांड कि अगर किसी राक्षस ने भी इस कांड के बारे में पढ़ा होगा तो उसकी अभी रूह कांप उठी होगी। मसलन राक्षसों ने भी यह कल्पना नही होगी कि एक नारी के साथ भी इतना नृशंस रेप कांड किया जा सकता है।
जी हां 16 दिसम्बर की वो काली रात गवाह बनीं 23 वर्षीय निर्भया (nirbhaya case) के साथ के वीभत्स रेप कांड की। 23 साल की फिजियोथैरेपिस्ट निर्भया अपने एक दोस्त के साथ साउथ दिल्ली के एक थियेटर से लाइफ ऑफ पी फिल्म देख कर लौट रही थी। दोनों मुनरिका में एक ऑटो रिक्शा का इंतजार कर रहे थे, दोनों को द्वारिका जाना था, जहां उनका घर था। तभी एक ऑफ ड्यूटी चार्टर बस आती है उसमें ड्राइवर समेत कुल छह लोग थे। निर्भया व उसके दोस्त को बैठने के लिए बोला जाता है। निर्भया व उसका दोस्त उस बस में बैठ जाते हैं। बस चल पड़ती है, लेकिन वह बस जिस दिशा की ओर चल पड़ती है। दोनों को अहसास होता है कि कुछ गलत है क्योंकि बस के दरवाजे कुछ टाइट तरीके से बन्द कर दिए जाते हैं। वे सभी छह लोग शराब के नशे में होते हैं।वे सभी निर्भया के साथ बदतमीजी करने लगे । जब उसके दोस्त ने विरोध किया तो तो उसके सिर पर लोहे की रॉड से वार किया गया जिससे वो बेहोश हो गया। उसके बोहोश होते ही उन दरिंदों ने बस के पिछले हिस्से में निर्भया के साथ बारी-बारी से रेप किया। उसमें एक अपराधी ने जो नाबालिग था उसने निर्भया के प्राइवेट पार्ट में लोहे का एक सरिया डाल दिया जिससे निर्भया की आंते तक फट गयीं। मेडिकल रिपोर्ट बताती है कि उसके शरीर के निचले हिस्से में सेप्टिक था। निर्भया के साथ दरिंदगी की सारी हदें पार करने के बाद अपराधियों ने उसे चलती बस से फेंक दिया, बल्कि यहां तक कि निर्भया के ऊपर बस चढ़ाने की कोशिश की, लेकिन उसके घायल दोस्त ने उसे किनारे खींच कर उसे बचा लिया। वहां से गुजरने वाले एक शख्स ने दोनों को अधमरी हालत में देख कर दिल्ली पुलिस को खबर की। तब दोनों को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया। जब वहां के डॉक्टरों ने देखा की निर्भया के शरीर में सिर्फ 5 फीसदी आंते बची हैं उसकी हालत बिगड़ती चली गई तब उसे सिंगापुर एक अस्पताल में भर्ती कराया गया। निर्भया की हालत सुनकर देश का गुस्सा फूट गया। दिल्ली की सड़कों पर भीड़ उतर आई। 29 दिसम्बर की रात निर्भया जिंदगी की जंग हार गई। उसके दोस्त की पसलियां टूटी थीं लेकिन उसकी जान बच गई।
सभी आरोपियों को हुई मौत की सजा
दिल्ली पुलिस (Delhi Police) ने सभी आरोपियों की जल्द ही गिरफ्तारी कर ली। ट्रायल के दौरान तिहाड़ जेल (Tihar Jail) में रामसिंह नाम के बस ड्राइवर ने आत्महत्या कर ली। बाकी चारों आरोपी मुकेश सिंह, विनय गुप्ता, पवन गुप्ता और अक्षय ठाकुर का ट्रायल पूरा हुआ और 2013 में मौत की सजा सुनाई गईं। सुप्रीम कोर्ट ने भी सभी आरोपियों की फांसी की सजा बरकरार रखी। सभी दोषियों के सभी कानूनी उपचार के बाद उन्हें फांसी की सजा हुई।
इन सभी निर्भया गैंग रेप व उसकी हत्या के आरोपियों को फांसी के फंदे तक पहुंचाने वाली दिल्ली सुप्रीम कोर्ट (Delhi Supreme Court) की वरिष्ठ अधिवक्ता सीमा सम्रद्धि कुशवाहा (Senior Advocate Seema Samridhi Kushwaha) ने न्यूज ट्रैक से सीधे बात करते बताया देश मे पहली बार रेप व मर्डर के केस में एक साथ चार लोगों को फांसी होनी थी। जो कि इतिहास में पहली बार हो रहा था। हमारे देश के अंदर 15वीं विधि आयोग की रिपोर्ट है। हम डेथ पेनाल्टी को भारत से खत्म करेंगे। सेक्सुअली हमारे कानून में फांसी की सजा का प्रवधान है, लेकिन यदि व्यवहारिक रूप से देखा जाए तो कितने ऐसी फांसी की सजाएं है जो लोगों दी गई जो बाद में बदल कर उन्हें आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया गया।
इसका मतलब यह है कि व्यवहारिक रूप से फांसी दी नहीं जाती है। सिर्फ आतंकवादियों को ही फांसी दी जाती है। जब रेप व मर्डर की बात करें तो 2004 में सिर्फ धनयंजय चटर्जी को हुई थी। 2004 के बाद कई गैंग रेप व मर्डर के केस में आप देखेंगे तो उसमें फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। लेकिन वे चर्चा के विषय भी नहीं है। मान लीजिये की सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) का वर्डिक है कि किस को फांसी की सजा सुनाई गई है तो उसको 12 साल से पहले उसे फांसी की सजा नहीं दी तो सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की खुद यह गाइड लाइन है कि उसे फिर आजीवन कारावास में बदल दिया जाएगा। वो सजा पाए व्यक्ति का यह अधिकार है। इसी अधिकार के तहत लगभग 17 लोग फांसी की सजा को आजीवन करवास की सजा में बदलवा चुके हैं।
निर्भया केस (nirbhaya case) में भी ऐसा कुछ होने वाला था लेकिन मेरी भी जिद थी कि केस अगर फ़ास्ट ट्रैक में है तो 12 साल तक क्यों चलेगा?अधिवक्ता सीमा का कहना है निर्भया केस (nirbhaya case) में पुलिस ने ठीक से काम किया। दिसम्बर 16 को यह कांड हुआ था, 7 जनवरी को चार्जशीट फाइल हो गई थी। फिर 9 माह लगे ट्रायल कोर्ट में। फिर सितम्बर में जिला न्यायालय से अगर फांसी की सजा है तो हाईकोर्ट का कन्फर्म करना जरूरी है। हाईकोर्ट में मार्च 2014 में यह डिसाइड हो जाता है।
उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में क्या है निर्भया केस (nirbhaya case) से पहले जो केस थे उनमें सुनवाई नहीं हो रही थी। सर्वोच्च न्यायालय में लगातार मैं यह एप्रोच कर रही थी कि लंबित केसों की सुनवाई तो होती रहेगी, लेकिन यह केस फ़ास्ट ट्रेक है तो पहले इसकी सुनवाई करो। अब वरीयता के हिसाब से देखा जाए तो इसे सुना जाना चाहिए था, लेकिन इस मैटर के लिस्ट होने में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में भी दो साल लग गए। 2014 में यह केस गया फिर 2017 में यह केस सुना गया। 2017 में उन अपराधियों का एसएलपी डिसमिस हुआ। फिर वो लोग रिव्यू में चले गए। फिर वो 2018 में डिसाइड हुआ। फिर 2018 में यह डिसाइड हुआ। उसके बाद मैंने जो प्रोसीजर है उसे फॉलो करके जबकि सरकार इनिसेटिव नहीं ले रही थी। मैं सरकार से ये कह रही थी कि प्रावधान है जिसके तहत हमें कोर्ट जाना है।फिर 2018 में ही हमने अप्लीकेशन मूव कर दी कि इन्हें जो फांसी की सजा दी गई है। उसका क्रियान्वयन किया जाए इन्हें फांसी पर चढ़ाया जाए। क्योंकि डेथ पेनाल्टी में क्या है कि फांसी की सजा सुनाए जाना। एक अलग बात है और फांसी की सजा दे देना यह दूसरी बात है। फांसी की सजा हमारे देश मे सुनाई तो जाती है, लेकिन एग्जीक्यूट नहीं की जाती है।
यही इस केस में हो रहा था। आजीवन करवास में क्या होता है। सजा सुनाई गई और डायरेक्ट जेल भेज दिया गया। सजा उसी दिन से शुरू हो जाती है। यहां सजा का मतलब फांसी पर टांगना। तो उसका मतलब है कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई अब इन्हें फांसी पर कैसे टांगा जाए? जब मैंने यहां से एक्जिटिविशन पिटीशन लगाई तो ये लोग वन बाई वन अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे थे। कानून में लूज पोल यह है कि अगर चार व्यक्ति हैं तो चारो अपने अधिकार का प्रयोग इंडीविजुअल आधार पर करेंगे। तो जहां पर एक माह लगाना था वहां पर चार महीना लग रहे थे। उसके बाद मर्सी में गए चारों आरोपी। फिर इनकी मर्सी रिजेक्ट हुईं।इधर डेट पेनाल्टी का एग्जुकेशन ऑर्डर।वो टलती जा रही थीं। जब तक किसी की कोई पटीशन पेंडिंग है तब तक कोई फांसी नही दी सकती। सर्वोच्च न्ययालय का कहना है कि यदि आप किसी को फांसी देने जा रहे हैं तो उसे आखिरी सांस तक सुनना पड़ेगा।तो जो कानून हमारा है उसमें लू पोल इतने हैं कि जिसका बेनिफिट इन आरोपियों को बचाने मेँ नहीं मिल पाया लेकिन फांसी की सजा डिले करने में मिला। तो ये सब कारण रहे थे।रेप व मर्डर केस में एक साथ चार लोगों को फांसी की सजा होने जा रही थी उस पर भारत की नहीं बल्कि सारे विश्व की निगाहें थीं। उन देशों को लग रहा था कि इस केस में कहीं भारत मे मानवाधिकार का हनन तो नहीं किया जा रहा है। कई मानवाधिकार संगठनों की निगाह थी। लेकिन अंत मे जीत निर्भया की हुई और उसके साथ गैंगरेप व मर्डर करने वालों को फांसी पर चढ़ना ही पड़ा।
वर्क प्लेस पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013 में किया पास
निर्भया केस के बाद महिला सुरक्षा को लेकर कानून बनाये गए। वर्क प्लेस पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013 में पास किया गया। इसके तहत सबसे पहले यौन शोषण के किसी भी मामले की पहले शिकायत कराई जाती है इसके बाद इस पर कार्रवाही की जाती है। 2013 में यह कानून लाया गया कि सभी कम्पनियों को आईसीसी( इंटरनल कम्प्लेंट कमेटी)गठित करना अनिवार्य है। जिसमें 10 या उससे अधिक कर्मचारी उसके सदस्य रहेंगे। इसके साथ ही वर्क प्लेस पर किसी भी तरह के यौन शोषण के खिलाफ शिकायत दर्ज की जाएगी और उसके खिलाफ उस एक्ट के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी। पूर्व राष्ट्र्पति प्रणव मुखर्जी द्वारा आपराधिक कानून(संशोधन)विधेयक 2013 पर 3 अप्रैल 2013 में एक कानून बनाया गया था इसके साथ ही देश मे महिलाओं के प्रति अपराधों के लिए सख्त सजा सुनिश्चित की गई थी। महिलाओं के प्रति यौन अपराधों के कड़ी सजाओं के लिए आपराधिक कानून(संशोधन)विधेयक 2013 को 19 मार्च 2013 को लोकसभा और 21 मार्च 2013 को राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था। बलात्कार में मामले में पीड़ित की मौत हो जाने में उसके स्थायी रूप से मृतप्राय हो जाने की स्थिति में मौत की सजा का प्रावधान भी इस कानून किया गया है। सामूहिक बलात्कार के मामले में दोषियों के लिए धारा 376 ए के तहत सजा की अवधि न्यूनतम 20 वर्ष रखी गई है। जो आजीवन कारावास तक हो सकती है।
तेजाबी हमला करने वालों के लिए 10 वर्ष की सजा का प्रावधान
महिलाओं का पीछा करने एवं तांक-झांक पर कड़े दण्ड का प्रावधान किया गया है। ऐसे मामलों में पहली बार में गलती हो सकती है, इसलिए इसे जमानती रखा गया है, लेकिन दूसरी बार ऐसा करने पर इसे गैर-जमानती बनाया गया है। तेजाबी हमला करने वालों के लिए 10 वर्ष की सजा का भी कानून में प्रावधान किया गया है। इसमें पीड़ित को आत्मरक्षा का अधिकार प्रदान करते हुए तेजाब हमले की अपराध के रूप में व्याख्या की गई है। साथ ही यह भी प्रावधान किया गया है कि सभी अस्पताल बलात्कार या तेजाब हमला पीड़ितों को तुरंत प्राथमिक सहायता या निःशुल्क उपचार उपलब्ध कराएंगे और ऐसा करने में विफल रहने पर उन्हें सजा का सामना करना पड़ेगा। प्राइवेट पार्ट के पेनिट्रेशन और ओरल सेक्स दोनों को ही रेप माना गया है। साथ ही, प्राइवेट पार्ट के पेनिट्रेशन के अलावा किसी भी चीज के पेनिट्रेशन को भी इस दायरे में रखा गया है। अगर कोई शख्स किसी महिला के प्राइवेट पार्ट या फिर किसी दूसरे अंग में पेनिट्रेशन करता है तो वह रेप होगा। अगर कोई शख्स महिला के प्राइवेट पार्ट में अपने शरीर का कोई अंग या फिर कोई दूसरा चीज डालता है तो वह रेप होगा। बलात्कार के वैसे मामले, जिनमें पीड़िता की मौत हो जाए या कोमा में चली जाए तो फांसी की सजा का प्रावधान होगा।
रेप के मामले में कम से कम 7 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद का प्रावधान
रेप के मामले में कम से कम 7 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद का प्रावधान किया गया है। खुद का भरण-पोषण करने में सक्षम महिलाओं को सपोर्ट की जरूरत नहीं।अगर कोई शख्स लड़की से साथ किसी तरह की छेड़खानी कर रहा है तो उसके उपर भी भारतीय कानून में कई धारा हैं और सजाएं हैं। जिनका इस्तेमाल लड़कियां कर सकती हैं।अगर कोई आदमी सेक्शुअल फेवर मांगता है तो वह छेड़छाड़ के दायरे में आएगा। दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल तक कैद की सजा हो सकती है।
महिला पर सेक्शुअल कॉमेंट पर एक साल तक कैद
अगर कोई शख्स किसी महिला पर सेक्शुअल कॉमेंट करता है तो दोषी पाए जाने पर उसे एक साल तक कैद की सजा हो सकती है।कोई शख्स महिला के साथ जबर्दस्ती करने की कोशिश करता। इस दौरान वह महिला के कपड़े फाड़ता है या उसे कपड़े उतारने पर मजबूर करता है। तो उसे 3 से 7 साल तक की कैद हो सकती है। कोई शख्स अगर किसी महिला की प्राइवेट पार्ट्स की तस्वीर लेता है और उसे लोगों से शेयर करता है तो 1 साल से 3 साल तक की सजा हो सकती हैं। अगर कोई शख्स किसी महिला का जबरन पीछा करता है या कॉन्टैक्ट करने की कोशिश करता है तो इसे स्टॉकिंग माना जाएगा और दोषी पाए जाने पर 3 साल तक कैद मिलेगी।
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