मुलायम सिंह यादव 2022: पिता चाहते थे बेटा बने पहलवान, लेकिन मुलायम बने 3 बार मुख्यमंत्री

Lucknow News: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह अब तक तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। एक बार उन्हें देश के रक्षा मंत्री के रूप में सेवा देने का भी अवसर मिला है। मुलायम सिंह का जन्म 22 नवम्बर, 1939 को इटावा जिले के सैफई गांव में हुआ था।

Written By :  aman
Written By :  Yogesh Mishra
Published By :  Deepak Kumar
Update:2022-01-26 19:26 IST

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव। 

Lucknow News: उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (UP Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) की पहचान एक ऐसे राजनेता के रूप में रही है, जो साधारण किसान परिवार से निकलकर सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे। चाहे प्रदेश की राजनीति हो या देश की, दोनों ही जगह उनकी बड़ी पहचान रही है। मुलायम सिंह (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) अब तक तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। एक बार उन्हें देश के रक्षा मंत्री के रूप में सेवा देने का भी अवसर मिला है।

मुलायम सिंह (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) का जन्म 22 नवम्बर, 1939 को इटावा जिले के सैफई गांव में हुआ था। मुलायम सिंह यादव (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) अपने परिवार में तीसरे नंबर के बेटे थे। कहा जाता है जब वो पैदा हुए थे तो गांव के पंडित ने कहा था, यह लड़का पढ़ेगा और कुल का नाम रोशन करेगा। हालाँकि उनके पिता मुलायम सिंह (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) को पहलवान बनाना चाहते थे। मुलायम सिंह की शुरुआती शिक्षा गांव के स्कूल में ही हुई। उनका विवाह वर्ष 1957 में मालती देवी से हुआ। जिनसे इन्हें पुत्र अखिलेश प्राप्त हुए। आगे चलकर उनका संपर्क लोहिया और उनके साथ के लोगों से हुआ, जिसके बाद उन्होंने सियासत की ओर कदम बढ़ाया। 

14 साल की उम्र में गए थे जेल 

मुलायम सिंह यादव (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) ने अपने राजनीतिक जीवन में उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग समाज के सामाजिक स्तर को ऊपर लाने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया। उनकी सामाजिक चेतना, समझ और फैसलों के कारण आज यूपी की सियासत में अन्य पिछड़ा वर्ग का महत्वपूर्ण स्थान है। मुलायम सिंह से जुड़ा एक किस्सा जो उनके राजनीतिक तेवर को दिखाता है। मात्र 14 साल की उम्र में मुलायम सिंह (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) को जेल जाना पड़ा था। तब वह राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर 'नहर रेट आंदोलन' में शामिल हुए थे और पहली बार जेल गए। 

अच्छे पहलवान रह चुके हैं मुलायम 

यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि मुलायम सिंह यादव (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) बहुत अच्छे पहलवान रह चुके हैं। इनके पिता इन्हें पहलवान बनाना चाहते थे। उनका धोबी पाट दांव बेहद चर्चित रहा है। अपने इस दांव से उन्होंने अपने से बड़े कद के कई पहलवानों को पटखनी दी। ठीक वैसे ही जैसे राजनीति के मैदान में भी उन्होंने समय-समय पर अपने विरोधियों को चित किया है। राजनीति में आने से पहले मुलायम सिंह (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) एक स्कूल में पढ़ाया करते थे। तब वो साइकिल से स्कूल जाया करते थे। इसीलिए जब मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी का गठन किया तो चुनाव चिह्न साइकिल ही रखा। 

गुरु की सीट से शुरू किया राजनीतिक सफर 

कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) ने अपने राजनीतिक गुरु नत्थू सिंह को मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती प्रतियोगिता में अपने दांव और चतुराई से प्रभावित किया था। बाद में मुलायम जब राजनीति में आये तो उन्होंने गुरु नत्थू सिंह के परंपरागत विधानसभा क्षेत्र जसवंतनगर (Jaswantnagar assembly constituency) से ही अपने राजनीतिक सफर को शुरू किया। एमएलए का चुनाव भी उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी' और फिर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से लड़ा था। हर बार उन्हें जीत हासिल हुई। बाद में उन्होंने स्कूल के अध्यापन कार्य से इस्तीफा दे दिया।   

28 साल की उम्र में मिला टिकट

28 साल की उम्र में 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर पहली बार जसवंतनगर क्षेत्र (Jaswantnagar assembly constituency) से विधानसभा सदस्य चुने गए। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी मुलायम सिंह (Samyukta Socialist Party Mulayam Singh) के राजनीतिक गुरु राम मनोहर लोहिया की पार्टी थी। हालांकि, उनके चुनाव जीतने के एक साल बाद ही यानी 1968 में राम मनोहर लोहिया का निधन हो गया। इसके बाद मुलायम सिंह यादव किसानों के सबसे बड़े नेता चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल में शामिल हो गए।

अजित सिंह से टकराव, बनाई नई पार्टी    

वर्ष 1979 में किसान नेता चौधरी चरण सिंह (Farmer leader Chaudhary Charan Singh) ने स्वयं को जनता पार्टी से अलग कर लिया। तब मुलायम सिंह (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) भी उनके साथ हो लिए। चौधरी साहब ने नई पार्टी लोकदल बनाई जिसमें मुलायम शामिल हो गए। यह था साल 1987, जब चौधरी चरण सिंह का देहांत हो गया। इसके बाद  चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह से उनका टकराव बढ़ता चला गया। नतीजा पार्टी दो धड़ों में बंट गई। 1989 में मुलायम सिंह ने अपने धड़े वाले लोकदल का विलय विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह) के जनता दल में कर दिया। इस साल लोकसभा चुनाव के साथ ही उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी हुए। 1989 में मुलायम सिंह यादव पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए। मुलायम सिंह की यह सरकार ज्यादा नहीं चली। फिर उन्होंने साल 1990 में वी.पी. सिंह का साथ छोड़ पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के साथ समाजवादी जनता पार्टी (सजपा) की नींव रखी। 

नेताजी के नेतृत्व में चार बार बनी सपा सरकार 

आख़िरकार वर्ष 1992 में मुलायम सिंह यादव (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) ने समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) की स्थापना की। उत्तर प्रदेश की सियासत का ये वो दौर था जब जातिगत राजनीति तेज हो चली थी। मुलायम सिंह ने पिछड़े, ओबीसी और मुस्लिम वोट का एक नया समीकरण तैयार किया, जिसकी काट उस वक्त उनके विरोधियो के पास थी ही नहीं। फलस्वरूप, नेताजी यूपी की सियासत में ध्रुव तारा की भांति चमकने लगे। बाद में इस पार्टी ने प्रदेश में चार बार सरकार बनाई। जिसमें तीन बार नेताजी खुद सीएम रहे। 

लालू के विरोध ने नहीं बनने दिया पीएम 

वर्ष 1993 में मुलायम सिंह (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) ने कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ मिलकर सरकार बनाई। मुलायम सिंह यादव दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि 1995 में यह गठबंधन टूट गया। इस बीच 90 के दशक के मध्य में जब मिलीजुली सरकारों का दौर आया तो 1996 में मुलायम प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गए थे। लालू यादव के विरोध की वजह वो उस पद तक नहीं पहुंच पाए। लेकिन 1996 से 1998 तक वो देश के रक्षा मंत्री रहे। 

पार्टी में अब संरक्षक की भूमिका में मुलायम 

मुलायम सिंह यादव (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) ने 2002 में भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर बनी मायावती की सरकार को एक साल में ही गिरवा दिया। मुलायम 2003 में खुद मुख्यमंत्री बन गए। सपा की ये सरकार 2007 तक चली। समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) चौथी बार साल 2012 में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने में सफल रही। इस बार नेताजी ने सरकार की बागडोर अपने पुत्र अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के हाथ में दी। अखिलेश मुख्यंत्री बने। 2016 में अखिलेश यादव के कार्यकाल के दौरान उनके परिवार में राजनीतिक विरासत को लेकर जंग छिड़ गई थी। हालांकि, बाद में सब सामान्य हो गया। मुलायम सिंह यादव फिलहाल समाजवादी पार्टी के संरक्षक हैं और मैनपुरी सीट से सांसद हैं। 

जब मुलायम सिंह की टक्कर 'मुलायम' से 

मुलायम सिंह यादव (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) को साल 1989 में पहली बार अपने पिता के नाम सुघर सिंह का सहारा लेना पड़ा था। वजह थी, जसवंतनगर विधानसभा सीट (Jaswantnagar assembly seat) से उन्हीं के नाम वाले एक शख्स ने उन्हें चुनौती दी थी। इसके बाद यही हालत 1992 और 1993 में भी हुआ था , जब मुलायम सिंह के नाम का ही अन्य शख्स उन्हें चुनावी मैदान में टक्कर देने उतरा था। हालांकि, हर बार नेताजी के सामने वो टिक नहीं पाए। लेकिन राजनीतिक गलियारों में इन खबरों की खूब चर्चा रही। वर्ष 1993 में मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश की तीन विधानसभा सीटों जसवंत नगर, शिकोहाबाद और निधौली कलां से मैदान में उतरे। हद तो तब हो गई जब तीनों ही सीट से नेताजी के खिलाफ मुलायम नाम का उम्मीदवार मैदान में उतरा।

मुलायम सिंह का पॉलिटिकल करियर हों या फिर व्यक्तिगत अथवा सार्वजनिक जीवन सब बहुत उतार चढ़ावों से भरा है। मुलायम सिंह (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) काफ़ी लंबे समय तक आर्थिक तंगी के शिकार रहे हैं। हालत यह रही है कि तंगी के कारण इनके पिता उन्हें पढ़ाने की जगह पहलवान बनाना चाहते थे। पर मुलायम सिंह पढ़ने पर आमादा थे। अपनी इस इच्छा को पूरा करने को लिए वह किसी हद तक जाने को तैयार थे। तभी तो जब उनके पिता ने उनके बड़े भाई को फ़ीस जमा करने के पैसे दिये तब मुलायम सिंह ने उनसे यह कह कर पैसे ले लिए कि वह भाई की फ़ीस जमा कर देंगे। जबकि हुआ उल्टा ही। उन्होंने उन पैसों से स्कूल में अपनी फ़ीस जमा कर दी। जब परीक्षा का समय आया तब सच्चाई उजागर हुई। पर तब तक बहुत देर हो गयी थी। अब मुलायम सिंह के सामने बड़ी चुनौती थी। अच्छे नंबर लाना। मुलायम सिंह इस चुनौती से पार तो पा गये पर पिता का ग़ुस्सा कम नहीं हुआ। अब उनके सामने पिता के ग़ुस्से को शांत करने की चुनौती थी। इसके लिए मुलायम सिंह ने कई रास्ते निकाले पर सबसे सटीक रास्ता उन्हें भी जो समझ में आया वह पहलवानी का ही था।

मुन्ना पहलवान व मुलायम सिंह

इलाक़े में मुन्ना पहलवान का बड़ा रुतबा था। मुन्ना पहलवान सैफ़ई के कई लोगों को अलग अलग दंगल में हरा चुका था। मुलायम सिंह के दिमाग़ में आया कि यदि वह मुन्ना पहलवान को दंगल में हरा दें तो पिताजी ख़ुश हो सकते हैं। ऐसे में एक दंगल में मुन्ना पहलवान को अखाड़े पर हाथ उठा कर घुमाया जा रहा था। इसका मतलब है कि यदि कोई चाहे तो कुश्ती लिखवा सकता है। कोई तैयार नहीं था। मुलायम सिंह (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) भी अखाड़े के पास ही खड़े थे। वह बताते हैं कि हमने सोचा यदि मैं जोड़ लिखवा कर हरा दूँ तो पिताजी ख़ुश हो जायेंगे। सैफई का सम्मान भी लौट आयेगा। पर मुन्ना पहलवान बहुत हलीम सहीम था। मुलायम सिंह (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) उसकी तुलना में क़द काठी में बहुत कमजोर थे। पर उनके हौसले बुलंद थे। बहुत विचार करने का समय नहीं था।

मुलायम सिंह ने आगे बढ़कर कुश्ती मांग ली। मुलायम सिंह भी कम महत्वपूर्ण पहलवान नहीं थे। पर मुन्ना की शोहरत व क़द काठी से बहुत ऊपर थी। अखाड़े पर दोनों पहलवानों ने हाथ आज़माना शुरू किया। मुन्ना ने मुलायम सिंह पर दो दांव मारे पर मुलायम सिंह बच निकलने में कामयाब हुए। मुलायम सिंह धोबिया पछाड़ दांव के माहिर हैं। पर यह दांव मारने के लिए उसका पकड़ में आना ज़रूरी होता है। मुन्ना पकड़ में आने को तैयार नहीं था। पर मुलायम सिंह (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) लपक कर उसकी पीठ पर सवार हो गये। थोड़ी ही देर में उन्होंने मुन्ना को चित्त कर दिया। बस अखाड़े पर पैसा बरसने लगा। मुलायम सिंह (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) ने बताया कि उन्हें पैसों की ज़रूरत याद आ रही थी। पर पहलवान पैसा ले नहीं सकता। लेकिन मुन्ना को चित करने के बाद सैफई के लोगों ने मुलायम सिंह को कंधे पर उठाया। कंधे पर ही उठाये सैफई पहुँचा दिया। पर मुलायम सिंह (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) बताते हैं कि पिता जी इसके बाद भी ख़ुश नहीं हुए।

जीवन परिचय

  • पिता- सुघर सिंह यादव 
  • माता- श्रीमूर्ति यादव
  • पहली पत्नी- मालती देवी (2003 में देहांत)
  • संतान- अखिलेश यादव
  • 1960 में मुलायम सिंह यादव (Former Chief Minister Mulayam Singh Yadav) राजनीति में आए।
  • 1967 में पहली बार विधानसभा चुनाव जीता। 
  • इसके बाद क्रमशः 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993, 1996, 2004 और 2007 में विधायक बने 
  • 1976 में विधायक समिति के सदस्य बने
  • 1977 में सहकारी एवं पशुपालन मंत्री बने
  • 1980 में लोकदल के अध्यक्ष चुने गए। 
  • 1989 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने 
  • 1992 में उत्तर प्रदेश की विधानसभा में विपक्ष के नेता बने। 
  • 1993 से 1995 तक यूपी के मुख्यमंत्री रहे
  • 1996 में उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले से पहली बार सांसद बने। 
  • 1996 में ही केंद्र में रक्षा मंत्री बने 
  • 2003-07 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।  
  • 2014 में आजमगढ़ और मैनपुरी से सांसद चुने गए। 
  • 2019 में मैनपुरी से सांसद चुने गए। 
  • वर्तमान में नेताजी समाजवादी पार्टी के संरक्षक की भूमिका में हैं ।

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