UP Election 2022: क्या भाजपा की चाल में फंस गए हैं स्वामी प्रसाद मौर्य?

Up Election 2022 : 2009 के लोकसभा चुनाव हुए। बसपा के टिकट पर स्वामी प्रसाद मौर्य चुनाव मैदान में उतरे थे।

Newstrack :  Vikrant Nirmala Singh
Published By :  Ragini Sinha
Update:2022-01-25 15:47 IST

यूपी विधानसभा चुनाव (social media)

UP Election 2022: साल था 2008 तत्कालीन बसपा सरकार केंद्र में बड़ी भूमिका की तलाश में उत्तर प्रदेश में बड़ी महारैली कर रही थी। मायावती के बड़े मंच लगते थे। इसी वर्ष कुशीनगर के रामकोला में बसपा की महारैली हो रही थी। मंच पर थी बहन मायावती और बयान देती है कि कुशीनगर से उनकी सरकार में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। मैं अपने विश्वासपात्र तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य को छोड़ कर जा रही हूं। पार्टी की तरफ से अब यह कुशीनगर के नुमाइंदे होंगे। मायावती का इशारा 2009 लोकसभा चुनाव की तरफ था। वह अपना प्रत्याशी घोषित कर चुकी थी। 

2007 में बसपा की लहर थी

2009 के लोकसभा चुनाव हुए। बसपा के टिकट पर स्वामी प्रसाद मौर्य चुनाव मैदान में उतरे थे। उनका सामना हो रहा था कांग्रेस पार्टी के आरपीएन सिंह से। तीन बार से विधायकी जीतते आ रहे आरपीएन सिंह पहले ही दो लोकसभा चुनाव हार चुके थे।

इस बार पूरे दमखम से लड़े और बसपा के स्वामी प्रसाद मौर्य बुरी तरह चुनाव हार गए। लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य की यह पहली हार नहीं थी। 2007 में जब बसपा की लहर चल रही थी तब भी वह विधानसभा चुनाव हार गए थे। मायावती ने इन्हें विधान परिषद के रास्ते अपनी सरकार में मंत्री बना लिया था। 

2017 के नजदीक आते ही मौर्य ने पाला बदल लिया 

2009 में आरपीएन सिंह लोकसभा का चुनाव जीत गए तो उनकी पडरौना विधानसभा सीट खाली हो गई। नियम के अनुसार हुए उपचुनाव में बसपा के टिकट पर अबकी मैदान में थे स्वामी प्रसाद मौर्य। स्वामी प्रसाद मौर्य को चुनाव जिताने के लिए मायावती ने अपने सभी मंत्रियों को पडरौना में उतार दिया था। चुनाव परिणाम सकारात्मक रहा और स्वामी प्रसाद मौर्य चुनाव जीत गए।

फिर 2012 के विधानसभा चुनाव में भी बसपा के टिकट पर स्वामी प्रसाद मौर्य विधायक बने और नेता प्रतिपक्ष बनाए गए। लेकिन 2017 के नजदीक आते ही मौर्य ने पाला बदल लिया और भाजपा के टिकट पर पडरौना विधानसभा से चुनाव जीत गए। भाजपा की सरकार में 5 वर्ष तक श्रम मंत्री बने रहे और वर्तमान में समाजवादी पार्टी का दामन थाम चुके हैं। 

भाजपा छोड़ने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार पर काफी हमलावर रहे हैं। सांप और नेवले जैसे शब्दों का उपयोग कर स्वामी प्रसाद मौर्य ने संघ और भाजपा को सीधी चुनौती देनी शुरू कर दी है। स्वामी से नाराज़ भाजपा ने इस बार स्वामी प्रसाद मौर्य को राजनीतिक सीख देने के लिए चक्रव्यू बनाना शुरू कर दिया है। इसी चक्रव्यू की एक कड़ी हैं आरपीएन सिंह।

कौन है स्वामी प्रसाद मौर्य?

पांच बार विधायक रहे स्वामी प्रसाद मौर्य को गैर यादव ओबीसी का नेता माना जाता है। बसपा में एक वक्त स्वामी प्रसाद मौर्य राष्ट्रीय महासचिव के रूप में मायावती के बाद दूसरे सबसे बड़े नेता बन चुके थे। मौर्य, कुशवाहा, शाक्य जैसी पिछड़ी जातियों के नेता माने जाने वाले स्वामी पूरे उत्तर प्रदेश में अपनी गहरी पैठ रखते हैं।

इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि स्वामी प्रसाद मौर्य पडरौना विधानसभा सीट से तीन बार विधायक बन चुके हैं लेकिन रहने वाले प्रतापगढ़ के हैं और पहली बार रायबरेली के डलमऊ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके हैं। बेटी संघमित्रा मौर्य बदायूं से भाजपा सांसद है तो इनके सुपुत्र रायबरेली के ऊंचाहार से चुनाव लड़ चुके हैं। इसलिए कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में स्वामी प्रसाद मौर्य की अपनी बिरादरी में अच्छी पकड़ है। 

आरपीएन सिंह कौन है?

कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे आरपीएन सिंह कुशीनगर और पडरौना की राजनीति में बहुत मजबूत नाम है। वह पडरौना विधानसभा सीट से 3 बार विधायक रह चुके हैं। 2009 में कुशीनगर से सांसद बनकर आरपीएन सिंह यूपीए-2 की सरकार में भूतल परिवहन एवं सड़क राज्यमार्ग, पेट्रोलियम और गृह राज्य मंत्री रह चुके हैं।

लेकिन 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में आरपीएन सिंह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी से चुनाव हार गए। भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन करने से पहले वह झारखंड में कांग्रेस के प्रभारी थे, जहां गठबंधन में कांग्रेस पार्टी की सरकार चल रही थी। हाल ही में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के पहले चरण में स्टार प्रचारकों की घोषित लिस्ट में इनका भी नाम दिया था। 

बदली परिस्थितियों में राजनीतिक समीकरण क्या हो सकते हैं? 

एक वक्त था जब पडरौना विधानसभा कांग्रेस पार्टी की मजबूत सीट हुआ करती थी। इसका कारण भाजपा में शामिल हुए आरपीएन सिंह ही हुआ करते थे। आरपीएन सिंह 1996 से 2007 तक लगातार तीन दफा यहां से चुनाव जीत चुके हैं। 2009 में इनके कुशीनगर से सांसद बनने के बाद यह सीट भाजपा से सपा के नेता बन चुके स्वामी प्रसाद मौर्य के मजबूत किले के रूप में जानी जाने लगी।

स्वामी प्रसाद मौर्य 2009 से लगातार यहां से चुनाव जीतते रहे हैं। इस बार भी वह खुद या अपने पुत्र को इस सीट से चुनाव में उतारेंगे। लेकिन आरपीएन सिंह के भाजपा में शामिल होने से अब उनके प्रभाव का लाभ भाजपा को यहां पर मिल सकता है। अगर भाजपा आरपीएन सिंह को मौर्य के खिलाफ मैदान में उतारती है तो मुकाबला बेहद कड़ा होगा। इस विधानसभा सीट पर सबसे अधिक 84000 मुस्लिम मतदाता है। इसके साथ ही मुख्य रूप से 76000 अनुसूचित जाति, 52 हजार ब्राह्मण, 48000 यादव, 46000 सैंथवार, 44,000 कुशवाहा जाति की मतदाता है।

भाजपा की नजर 52000 ब्राम्हण और 46000 सैंथवार मतदाताओं पर है। आरपीएन सिंह खुद सैंथवार जाति के हैं। इसलिए भाजपा अन्य जातियों को साथ लेकर इस सीट को आसान बना लेगी। लेकिन मुस्लिम और यादव गठजोड़ की वजह से यह सीट सपा के लिए भी मुफीद बताई जा रही है। साथ में स्वामी प्रसाद मौर्य की कुशवाहा जाति का जुड़ना इस सीट से सपा को मुख्य लड़ाई में बनाए रखता है।

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