Vijayadashami 2021: रिवाज़ अलग, समाज अलग लेकिन विजय पर्व एक

Vijayadashami 2021: हर साल आश्‍विन शुक्ल की दशमी के दिन दशहरा का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व हिन्दू धर्म के सभी समाज और जातियों का प्रमुख पर्व माना गया है।

Written By :  Rahul Singh Rajpoot
Published By :  Chitra Singh
Update:2021-10-15 10:46 IST
विजयादशमी के पावन अवसर को अविस्मरणीय बनाने के लिए अयोध्या से लेकर लखनऊ महानगर के 125 से अधिक स्थलों या चौराहों को सुसज्जित किया जा रहा है।

Vijayadashami 2021: असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है विजयादशमी (Vijyadhashmi)। लेकिन इसे मनाने की हर समाज की अपनी अलग परंपरा और रिवाज है। बात उत्तर प्रदेश के राजधानी लखनऊ की करे तो यहां विभिन्न समाज के लोग रहते हैं, जो देश के अलग-अलग हिस्सों से अपने रीति रिवाज को लेकर आए हैं। खास बात यह है कि सभी ने किसी न किसी रूप में अपनी इन परंपराओं को जिंदा रखा हुआ है। इतना ही नहीं, अपने आसपास रहने वाले विभिन्न परंपराओं को निभाने वालों से भी कुछ ना कुछ सीखा है। विजयदशमी के इस पावन पर्व पर हम आपको बताएंगे कि अलग-अलग समाज में कैसे मनाया जाता है विजयादशमी का यह त्यौहार?

विजयादशमी का पर्व

हर साल आश्‍विन शुक्ल की दशमी के दिन दशहरा (Dussehra 2021) का पर्व मनाया जाता है। दशहरा मनाने की परंपरा पौराणिक काल से ही चली आ रही है। कालांतर में इस पर्व को मनाने के तरीके बदलते रहे हैं। यह पर्व हिन्दू धर्म के सभी समाज और जातियों का प्रमुख पर्व माना गया है।

दशहरा क्यों मनाया जाता है (Dussehra kyon manaya jata hai)?

दशहरा मनाने के दो प्रमुख कारण

1. माता ने किया था महिषासुर का वध: इस दिन माता कात्यायनी दुर्गा ने देवताओं के अनुरोध पर महिषासुर का वध किया था । तब इसी दिन विजय उत्सव मनाया गया था। इसी के कारण इसे विजया दशमी कहा जाने लगा।

2. श्रीराम ने किया था लंका प्रस्थान: वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान राम ने ऋष्यमूक पर्वत पर आश्‍विन प्रतिपदा से नवमी तक आदिशक्ति की उपासना की थी। इसके बाद भगवान श्रीराम इसी दिन किष्किंधा से लंका के लिए रवाना हुए थे। यह भी कहा जाता है कि रावण वध के कारण दशहरा मनाया जाता है। श्रीराम ने रावण का वध करने के पूर्व नीलकंठ को देखा था। नीलकंठ को शिवजी का रूप माना जाता है। अत: दशहरे के दिन इसे देखना बहुत ही शुभ होता है।

प्रभु राम और वानर सेना (फाइल फोटो- सोशल मीडिया)

राजपूत समाज का दशहरा

विजयादशमी का त्यौहार राजपूत समाज के लिए कुछ खास होता है। इस दिन इस समाज के लोग अपने अस्त्र-शस्त्र को विधि विधान से साफ सफाई कर पूजन करते हैं। इसमें बताया जाता है कि मान्यता के मुताबिक़ भगवान श्रीराम जब लंका से विजय होकर लौटे तो उनके शस्त्रों का पूजन किया गया था, तभी से यह परंपरा चली आ रही है।

वैश्य समाज का दशहरा

इस दिन इस समाज के लोग बच्चों को लेकर पंडाल में जाते हैं । वहां पूजन करते हैं। घर पर भी इस समाज के लोग रावण का पुतला दहन करते हैं।

अग्रवाल समाज

विजयादशमी पर अग्रवाल समाज के लोग सुबह पूजन करते हैं। पूजन के वक्त आटे से कागज का दशानन का चित्र उकेरा जाता है । उसके दस सिर का तिलक कर पूजन करते हैं । इसके बाद शाम को रावण दहन किया जाता है। हालांकि अब सामूहिक आयोजन होने लगे हैं, वही जिनके यहां रक्षाबंधन और भाई दूज नहीं होते वह बहनें अपने भाइयों को टीका भी लगाती हैं।

रावण दहन (फोटो- सोशल मीडिया)

पर्वतीय समाज

पर्वतीय समाज में दशहरे की शुरुआत कुलदेवी की आराधना से होती है। सप्तमी की रात से ही कुल देवी का पूजन शुरू होता है, गांव में सामूहिक रूप से लोग ढोल नगाड़े संग मंदिर तक जाते हैं । सभी लोग पूजन के बाद घर के मंदिर में उनका ध्यान करके खुशियां मनाते हैं।

कायस्थ समाज

कायस्थ समाज के लोग दशहरे पर पांच प्रकार की मौसमी सब्जियों को बनाते हैं । इसे पंच ग्लासी भोजन कहते हैं। इसमें दाल की पूरी दाल के बड़े खीर भी शामिल होती है। रामायण का सबसे सुंदर अंश है सुंदरकांड । उस का पाठ करते हैं, हालांकि इस समाज के लोग रावण दहन नहीं करते लेकिन मेले में जाने से परहेज नहीं करते हैं।

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