अयोध्या: क्या हैं ASI के प्रमाण, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने फैसले का बनाया आधार?
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी और ढांचे के नीचे गैर इस्लामिक ढांचे के सबूत मिले हैं। अदालत ने माना कि वहां पहले मंदिर था।
नई दिल्ली: अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी और ढांचे के नीचे गैर इस्लामिक ढांचे के सबूत मिले हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में भारतीय पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट को खारिज नहीं किया जा सकता। अयोध्या राम की जन्म भूमि इस पर कोई सवाल नहीं है।
बाबरी मस्जिद मीर बाकी ने बनवाई थी, बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी। ढांचे के नीचे मंदिर के सबूत मिले जमीन के नीचे गैर इस्लापमिक ढाचा था। अदालत ने माना कि वहां पहले मंदिर था। आइए जाने कि एएसआई की रिपोर्ट में क्या था?
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एएसआई की रिपोर्ट के आधार पर जानें पूरा फैसला
जब भारतीय पुरातत्विक सर्वेक्षण मतलब आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने पहली बार राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद की विवादित भूमि का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया था।
करीब 15 साल पहले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर अयोध्या में विवादित जमीन की खुदाई की थी। जिसमें मिली चीजों का एएसआई की टीम ने वैज्ञानिक परीक्षण किया था।
इसके आधार पर विवादित ढांचे के नीचे प्राचीन मंदिर के अवशेष होने का दावा किया गया था। मंदिर के पक्ष में मिले इन सबूतों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में अहम भूमिका निभाई थी।
वहीं कोर्ट में हिंदू पक्ष की दलील थी कि पद्म पुराण और स्कंद पुराण में भी रामजन्मस्थान का सटीक ब्यौरा है। इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि 1528 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मंदिर तोड़कर जबरन मस्जिद बनाई।
एएसआई यानी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की खुदाई की रिपोर्ट में भी विवादित ढांचे के नीचे टीले में विशाल मंदिर के प्रमाण मिले।
हिंदू पक्ष की दलील थी कि खुदाई में मिले कसौटी पत्थर के खंबों में देवी देवताओं, हिंदू धार्मिक प्रतीकों की नक्काशी। 1885 में फैजाबाद के तत्कालीन जिला जज ने अपने फैसले में माना था कि 1528 में इस जगह हिंदू धर्मस्थल को तोड़कर निर्माण किया गया।
चूंकि अब इस घटना को साढ़े तीन सौ सालों से ज्यादा समय हो चुका है लिहाजा अब इसमें कोई बदलाव करने से कानून व्यवस्था की समस्या हो सकती है।
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सुन्नी वक्फ बोर्ड ने क्या कहा था?
वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड का आरोप था कि पुरातत्व एक मुकम्मल विज्ञान नहीं बल्कि एक असटीक विज्ञान है जिसमे सिर्फ हवाला देते हुए या मान लेने पर ज़्यादा जोर दिया जाता है।
इस पुरातात्विक सर्वेक्षण के मामले में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दो स्वतंत्र पुरातत्वविदों को शामिल किया था जिनमें एक सुप्रिया विराम थीं और दूसरी जया मेनन।
इन दोनों ही स्वतंत्र पुरात्वविदों ने एएसआई के सर्वेक्षण पर अलग से एक शोध पत्र जारी कर कई सवाल खड़े किए हैं। ये दोनों ही शोधकर्ता एएसआई के सर्वेक्षण के दौरान उपस्थित थीं।
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