अयोध्या केस: जानें क्या है मोल्डिंग ऑफ रिलीफ, जिस पर हिन्दू और मुस्लिम पक्ष हैं आमने -सामने

अयोध्या विवाद में मुस्लिम पक्ष ने 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' पर अपना जवाब दाखिल कर दिया है। ये जानकारी मुस्लिम पक्ष ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय को दी।

Update: 2019-10-21 07:18 GMT

नई दिल्ली: अयोध्या विवाद में मुस्लिम पक्ष ने 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' पर अपना जवाब दाखिल कर दिया है। ये जानकारी मुस्लिम पक्ष ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय को दी। उन्होंने कोर्ट को बताया कि वे सीलबंद लिफाफे में दूसरे पक्ष द्वारा उठाए गए आपत्तियों पर भी जवाब दाखिल कर रहे हैं।

इस मामले में कोर्ट ने उनसे कहा कि वे अपना अपने लिखित नोट उसके रिकॉर्ड में रख सकते है। उधर हिंदू पक्षकारों ने मुस्लिम पक्षकारों के उस कदम पर आपत्ति जताई। जिसमें मुसलमानों की तरफ से सीलबंद लिफाफे में लिखित नोट दायर किया गया है।

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आइये जानते हैं क्या है मोल्डिंग ऑफ रिलीफ

दरअसल अयोध्या मामले में 40 दिनों की सुनवाई में एक चीज जो सबसे अधिक बार चर्चा में रही। वो है मोल्डिंग ऑफ रिलीफ। सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 और सीपीसी की धारा 151 के तहत इस अधिकार का इस्तेमाल करता है। इसका प्रावधान सिविल सूट वाले मामलों के लिए किया जाता है।

याचिकाकर्ता कोर्ट के पास अपनी मांग के साथ पहुंचता है और अगर वो मांग पूरी नहीं हो पाती तो वो कौन सा विकल्प है जो उसे दिया जा सकता है।

अयोध्या मामले को ध्यान में रखकर अगर देखें तो एक से अधिक दावेदारों के विवाद वाली जमीन का स्वामित्व किसी एक पक्ष को मिलेगा तो अन्य पक्षों इसके बदले क्या मिलेगा।

कोर्ट ने मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर सभी पक्षों को लिखित नोट देने के लिए तीन दिन की मोहलत दी थी। लेकिन यह देखने वाली बात होगी कि इस मामले में मोल्डिंग ऑफ रिलीफ सिद्धांत किस हद तक लागू किया जा सकता है। पीठ ने मौखिक बहस से साफ़ तौर पर इनकार कर दिया है।

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