Ayodhya Ram Mandir Land Dispute: विवाद में एक और नया खुलासा, 8 करोड़ में एक और जमीन सौदा, अब बचने का उपाय काशी मॉडल
Ayodhya Ram Mandir Land Dispute: श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट (Ram Janmbhoomi Teerth Kshetra Trust) की ओर से विवाद वाले दिन एक और जमीन का समझौता किया गया था, जिसमें 8 करोड़ रुपए का भुगतान किए गए।
Ayodhya Ram Mandir Land Dispute: यूपी के अयोध्या(Ayodhya) में राम मंदिर जमीज विवाद लगातार बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में जमीन विवाद को लेकर एक और नया खुलासा हुा है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट (Ram Janmbhoomi Teerth Kshetra Trust) ने जो जमीन खरीदी थी, उस जमीन पर राजनीतिक समूहों का आरोप लगाने का सिलसिला लगातार जारी है और अब इधर इसी मामले में एक नया किस्सा सामने आ गया है।
अयोध्या राम मंदिर जमीन विवाद को लेकर हुए नए मामले में खुलासा हुआ है कि श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट (Ram Janmbhoomi Teerth Kshetra Trust) की ओर से विवाद वाले दिन एक और जमीन का समझौता किया गया था, जिसमें 8 करोड़ रुपए का भुगतान किए गए।
एक ही दिन दूसरा समझौता भी
असल में जिस भूमि पर विवाद चल रहा है कि उस दिन साढ़े 18 करोड़ रुपए वाली जमीन का समझौता हुआ। और उसी दिन गाटा संख्या 242 में ही हरीश पाठक और कुसुम पाठक ने 1.037 हेक्टेयर जमीन की रजिस्ट्री श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महामंत्री चंपत राय के पक्ष में की थी।
इस भूमि की खरीद के लिए श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने कुसुम पाठक और हरीश पाठक के बैंक खातों में 8 करोड़ का आरटीजीएस(RTGS) किया। साथ ही जिस दिन श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी से 1.208 हेक्टेयर जमीन का रजिस्टर्ड समझौता किया था, उसी दिन और उसी समय ट्रस्ट ने कुसुम पाठक और हरीश पाठक से बैनामा लिया है।
बीते तीन महीने पहले आज ही की तारीब में 18 मार्च, 2021 को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पक्ष में 18 करोड़ 50 लाख का अनुबंध करने वाले सुल्तान अंसारी और रवि मोहन ने संबंधित भूमि गाटा संख्या 242, 243, 244 और 246 को 1.208 हेक्टेयर जमीन पहले हरीश पाठक और कुसुम पाठक से खरीदी।
100 बिसवा से ज्यादा जमीन ट्रस्ट के पक्ष में
फिर इसके बाद में बैनामा होल्डर सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी ने 2 करोड रुपए में खरीदी हुई जमीन 18 करोड़ 50 लाख में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को करार के तौर पर अनुबंध की। इसमें 17 करोड़ रवि मोहन और सुल्तान अंसारी के खातों में बराबर-बराबर 8 करोड़ 50 लाख रुपए सुल्तान अंसारी और 8 करोड़ 50 करोड़ रुपए रवी मोहन तिवारी के खाते में ट्रस्ट ने आरटीजीएस(RTGS) किया था।
जीं हां तो इसका साफ-साफ मतलब है कि हरीश पाठक और कुसुम पाठक ने 18 मार्च 2021 को दो रजिस्ट्री की है। इसमें पहला बैनामा रवि मोहन तिवारी और सुल्तान अंसारी के नाम 1.208 हेक्टेयर का किया गया। जबकि दूसरा बैनामा गाटा संख्या 242 में ही श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय के पक्ष में 1.037 हेक्टेयर भूमि का बैनामा किया गया।
तो मतलब करीब 100 बिसवा से ज्यादा जमीन ट्रस्ट के पक्ष में सुल्तान अंसारी और रवि मोहन ने 18 करोड़ 50 लाख रुपए में अनुबंध किया। और फिर लगभग 80 बिस्वा जमीन उसी जगह उसी स्थल के पास में 8 करोड़ रुपए में राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने हरीश पाठक और कुसुम पाठक से रजिस्ट्री की है।
तो इस सब बात के खुलासे के बाद अब ये सवाल खड़ा होता है कि आखिर क्यों 100 बिसवा जमीन 18 करोड़ 50 लाख में ली गई और 80 बिसवा जमीन उसी स्थल से लगी हुई सिर्फ 8 करोड़ में ली गयी? बड़ी बात तो ये है कि दोनों भूमि कुसुम पाठक और हरीश पाठक की ही थी। फिलहाल इस जमीन विवाद की गुत्थियां दिन-प्रति-दिन उलझती ही जा रही हैं, जिससे सुलझने में लगता है काफी समय लगेगा।
बचने का उपाय- काशी मॉडल
इन सब दलीलों, सवालों, जवाबों और खुलासों के सामने आने के बाद इन पर विराम लगाने के लिए काशी मॉडल को सबसे सटीक और बेहतर विकल्प माना जा रहा है। ऐसे में काशी मॉडल मे किसी को जमीन लेने से पूर्व मूल्यांकन समिति अपनी रिपोर्ट देती थी। फिर इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही जमीन का मोलभाव करके सौदा तय होता था।
बता दें, काशी मॉडल को अंजाम देने वाले इस समय वाराणसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी विशाल सिंह अब वाराणसी के ही नगर आयुक्त और अयोध्या विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष हैं।
अयोध्या राम मंदिर भूमि विवाद में उनका कहना है कि यहां आने से पहले शीर्ष स्तर पर अयोध्या में ऐसा ही तरीका अपनाने की चर्चा हुई थी। वे बताते हैं कि काशी मॉडल पूरी तरह पारदर्शी और नियमों के तहत था, किसी की जमीन लेने से पहले मूल्यांकन समिति अपनी रिपोर्ट देती थी।
आगे बताते हैं कि इसमें एसडीएम, सब रजिस्ट्रार, तहसीलदार-कानूनगो और पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर शामिल होते थे। फिर इनकी रिपोर्ट पर निगोसिएशन समिति बातचीत करके अनुमोदन करती थी। इस तरह से ट्रस्ट भी प्रशासन से मूल्यांकन कराकर किरकिरी से बच सकता है। तो अब इन विवादों से निकलने का यही कारगर उपाय सामने आया है।