Azamgarh By Election: क्या डिंपल की हार से डर रहे हैं अखिलेश, आजमगढ़ के दसों विधायकों की मांग को किया दरकिनार

Azamgarh by election: क्या अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) डर गए? पत्नी डिम्पल यादव की आजमगढ़ उम्मीदवारी से, क्या इस उपचुनाव में उन्हें लड़ाने से पहले ही हार का डर सताने लगा है?

Update:2022-06-03 19:57 IST

अखिलेश यादव- डिम्पल यादव: Photo - Social Media

Azamgarh By Election: क्या अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) डर गए? पत्नी डिम्पल यादव (Dimple Yadav) की आजमगढ़ उम्मीदवारी से, क्या इस उपचुनाव में उन्हें लड़ाने से पहले ही हार का डर सताने लगा है? जो आजमगढ़ के दसों विधायकों की मांग को दरकिनार कर एक नये दलित चेहरे को उतार दिया, जबकि आजमगढ़ के समाजवादी विधायकों ने आजमगढ़ से डिम्पल यादव को प्रत्याशी बनाएं जाने की मांग की थी।

सच कहें तो यही अतंर होता है सियासत के माहिर खिलाड़ी धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) होने में और उनकी विरासत की सियासत संभालने वाले पुत्र अखिलेश यादव होने में। दोनों की सोच, चिंतन और राजनीतिक विज़न में यही बुनियादी फर्क था और है। नेता जी, लड़ने में विश्वास करते थे, हार- और जीत को दरकिनार कर जन अपेक्षाओं की क़द्र करते थे। बहुत से मामलों में उन्होंने इटावा से ज्यादा महत्व समाजवादी जमीन आजमगढ़ को दिया। आजमगढ़ ने भी सदैव नेताजी के सम्मान की रक्षा की। और यही वजह है कि यह धरती सदा से समाजवादियों के लिए नर्सरी और प्रयोगशाला बनती रही।

आजमगढ़, समाजवादियों का पुराना गढ़

समाजवादियों के पुराने गढ़- आजमगढ़ के उपचुनाव (by-election) में उन्होंने जिस प्रत्याशी सुशील आनंद को उतारा है, उन्हें आजमगढ़ के लोग पहचानते तक नहीं है। उनकी कुल राजनीतिक पूंजी और पहचान यही है कि- वह बलिहारी बाबू के पुत्र हैं। बलिहारी बाबू एक समय में बसपा के मूल काडर थे। मायावती के नाक के बाल। लेकिन जब बसपा से उनके रिश्ते खत्म हुए तो- वे राजनीतिक रूप से कमजोर होते चले गये।

कांग्रेस के टिकट से जब लालगंज सुरक्षित सीट से विधानसभा का चुनाव लड़े तो कुल 10 हजार वोटों में ही सिमट गयें। आखिर में सपा का दामन थामें। अब वे इस धरा धाम पर नहीं है। उनके निधन के बाद उनके पुत्र को उपचुनाव में टिकट देकर सपा भले दलित कार्ड खेलने का प्रयास करे, लेकिन एक बात तो तय है कि- अखिलेश का यह निर्णय अपरिपक्व, डरे और सहमें राजनीतिज्ञ के रूप में लिया गया है। जिसमें अपने अतीत और भविष्य का मूल्यांकन करने और अपनी जमीन बचाने की चुनौती भी नहीं दिखती हो। आजमगढ़ सपा में एक से बढ़कर नेता हुएं हैं और हैं भी, जो दूसरे और बेहतर विकल्प हो सकतें थे और हैं।

बसपा प्रत्याशी शाह आलम गुड्डू जमाली ने दी अखिलेश यादव को चुनौती

डिम्पल यादव को उपचुनाव में प्रत्याशी बनाने में यदि उनके ऊपर परिवारवाद का आरोप लगता और उस कलंक को धोने के लिए उन्होंने ऐसा किया है- तो भी सपा में बड़े नेता आज भी हैं जो लड़ाई मजबूती से लड़ते। अब तो सपा के लिए अपनी सीट बचाने की ही बड़ी चुनौती है। ऐसे समय में जबकि बसपा प्रत्याशी शाह आलम गुड्डू जमाली ने सपा प्रमुख को चुनौती तक दिया हो कि- मैं चाहता हूँ कि अखिलेश यादव, डिम्पल यादव को ही सपा प्रत्याशी बनाएं, जिससे की हारने पर यह नहीं कहें कि हमारा प्रत्याशी कमजोर था।

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