Bada Mangal 2021: संगम किनारे क्यों लेटे हैं हनुमान जी, जानिए प्रयाग के कोतवाल की कहानी

Bada Mangal 2021: लंका से वापसी के समय भगवान श्री रामचन्द्र ,माता सीता के साथ हनुमान जब संगम तट पर पहुंचे, तो माता सीता ने हनुमान जी को यहां विश्राम करने को बोला था, तभी मूर्ति की मुद्रा विश्रामवस्था में है।

Newstrack :  Pravesh Chaturvedi
Published By :  Shivani Awasthi
Update:2021-06-22 16:19 IST

Bada Mangal: गंगा,जमुना और सरस्वती, इन तीनों पावन नदियों के संगम तट में बसा उत्तर प्रदेश का जिला इलाहाबाद (Allahabad) अब प्रयागराज (Prayagraj) के नाम से जाना जाता है। श्रद्धा से लोग इस पावन भूमि को तीर्थों का राजा प्रयागराज अर्थात् तीर्थराज प्रयाग भी कहते है। क्योंकि हर प्रति बारह साल में महाकुंभ (Mahakumbh) का एक उत्सव होता है जिसमें लोग खिचड़ी,मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी आदि पावन तिथियों में भारी मात्रा में स्नान करने दूर - दूर से आते है और पुण्य अर्जित करते है।

संगम के इसी पावन तट पर राम भक्त हनुमान जी का एक मंदिर है। मंदिर की ख़ास बात यह है कि यहाँ विराजमान हनुमान जी की मूर्ति लेटी हुई है। 16वीं शताब्दी से बाघंबरी गद्दी मठ की देख-रेख वाले एवं प्रयाग के कोतवाल (Prayag Ke Kotwal) कहे जाने वाले लेटे हुये हनुमान जी अर्थात बांध के नीचे स्थित होने कि वजह से बँधवा वाले हनुमान जी कहे जाने वाले रुद्रावतर के दर्शन के बिना किसी भी भक्त का संगम स्नान करना सफल नहीं होता है।
मंदिर की समस्त व्यवस्था पर निगरानी रखने वाले महंत आनंद गिरि (Mahant Anand Giri) बताते है कि हनुमान जी की इस अनोखी मुद्रा वाले मंदिर को प्रतिवर्ष बारिश के दिनों में गंगा मैया स्नान करवाने मंदिर तक बढ़ कर आती है और भोले नाथ के रुद्र अवतार का अभिषेक करके पुनः अपनी सीमाओं में लौट जाती है।

प्रयाजराज में क्यों लेटे हैं हनुमान जी (Kyun lete Hain Hanuman Ji)

अकबर के किले के नजदीक स्थित यह पावन मंदिर खुद में हनुमान जी की 20 फीट मूर्ति (Prayagraj Hanuman Statue Height) के साथ-साथ कई कहानियाँ समेटे हुये अटल खड़ा है। कहा जाता है कि लंका विजय के पश्चात जब पुष्पक विमान से भगवान श्री रामचन्द्र जी ,माता सीता और शेष रूपी लक्ष्मण जी के साथ हनुमान जी अयोध्या लौटते हुये तट पर पहुंचे थे तो माता सीता नें हनुमान जी को यहाँ विश्राम करने को बोला था , तभी मूर्ति की मुद्रा विश्रामवस्था में है।

लेटे हनुमान जी की कथा (Lete Hanuman Ji Ki Katha) 
एक मान्यता यह भी है कि एक बार हनुमान जी का महाभक्त व्यापारी हनुमान की मूर्ति लिए जल- मार्ग से जा रहा था तो संगम तट पर आते ही मूर्ति की वजह से नाव का वजन बढ़ आया और नाव टूट गयी और मूर्ति जलमग्न हो गयी। कई वर्षों पश्चात जब गंगा जी का जलस्तर कम हुआ तो वह मूर्ति प्रकट हुई तो उस वक्त मुगल शासक अकबर नें भव्य मंदिर का निर्माण करवा दिया।

प्रयागराज के लेटे हनुमान मंदिर का इतिहास (Lete Hanuman Mandir Ka Itihas)

भगवान श्री राम के परम भक्त, भगवान शिव के रुद्रावतर श्री हनुमान जी ने आशीष प्राप्त करने की भावना लेकर आने वाले श्रद्धालुओं को खूब आशीर्वाद दिया और कट्टरता के भाव लाने वालों को भी बखूबी शिक्षा दी है। मान्यता है कि हिंदुओं के सबसे बड़े विरोधी और मुगल के सबसे क्रूर शासक औरंगजेब नें जब भारत देश से मंदिरों का विनाश करवा रहा था तो उसने प्रयाग के बड़े हनुमान जी के इस मंदिर को हटाने को सोची और मजदूरों से मूर्ति को बाहर निकाल कर फेंकने को बोला और मंदिर को नष्ट करने का आदेश दिया तो मजदूरों नें मूर्ति को उठाने की बेहद चेष्टा की किन्तु मूर्ति टस से मस नहीं हुई बल्कि और ज्यादा रसातल में धसती गयी है और अंत में औरंगजेब ने हार मान कर उस मंदिर को वैसे ही छोड़ दिया। औरगजेब के इस अप्रिय कार्य से ही मंदिर की मूर्ति धरातल से नीचे की ओर धस गयी।

ऐसी कई सारी मान्यताएँ है इस मंदिर को लेकर, किन्तु हर मान्यता हिंदुओं के दिल में बँधवा वाले हनुमान जी के प्रति एक अटूट विश्वास पैदा करती है और हनुमान जी भी श्रद्धा भाव रखने वाले भक्तों को कभी निराश नहीं करते है और किसी न किसी रूप में उनकी रक्षा कोतवाल की तरह करते रहते है।
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