Bahubali of UP : यूपी में 'गायब' हुए ये बाहुबली माफिया, अब सिर्फ पर्दे पर जिंदा है इनका किरदार
Bahubalis Of Uttar Pradesh: कभी यूपी की राजनीति बगैर बाहुबलियों के जिक्र के अधूरी थी। दोनों प्रांतों में बाहुबलियों का अपना इलाका हुआ करता था।
UP Bahubali Leaders: किसी दौर में यूपी-बिहार की राजनीति बगैर बाहुबलियों के जिक्र के अधूरी थी। दोनों प्रांतों में बाहुबलियों का अपना इलाका हुआ करता था। वो ही वहां के एक तरह से 'सरकार' होते थे। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल इलाके से एक से बढ़कर एक बाहुबली हुए, जिनकी धमक मुंबई के अंडरवर्ल्ड तक थी। लेकिन, एक पुरानी कहावत है, 'सब दिन होत न एक समान'। वर्तमान में पूर्वांचल के कई बड़े बाहुबली या तो इतिहास के पन्नों में दफन हो गए या हाशिए पर जा चुके हैं। आज केवल उनके किरदार रूपहले परदे पर जिंदा हैं।
उत्तर प्रदेश में कभी सत्ता बाहुबलियों के आगे झुका करती थीं। बड़े से बड़ा नेता भी उन्हें नाराज करने का जोखिम नहीं उठाना चाहते थे। उनके लिए जेल दूसरा घर हुआ करता था। कभी- कभी तो वे जेल को, बाहर के मुकाबले अधिक सुरक्षित मानते थे। क्योंकि, बाहर उन्हें अपने प्रतिद्वंदी गैंग से खतरा रहता था, जबकि जेल में सरकार की सुरक्षा में वे अपनी काली करतूतों को अंजाम दिया करते थे। मगर, साल 2017 में प्रदेश की बागडोर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) के हाथों में आने के बाद इनके 'अच्छे दिन' खत्म होने लगे।
CM योगी की 'जीरो टॉलरेंस' नीति
क्राइम पर जीरो टॉलरेंस (Zero Tolerance) की नीति अपनाते हुए सीएम योगी ने पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को प्रदेश में सक्रिय सभी छोटे बड़े बाहुबलियों और माफियाओं पर नकेल कसने की खुली छूट दे दी। यहीं से फिर यूपी सीएम 'बुलडोजर बाबा' के नए अवतार में आए। जिन बाहुबलियों के नाम पर पुलिस-प्रशासन के पसीने छूट जाते थे, अब वे बुलडोजर लेकर उनकी काली कमाई के जरिए खड़ी की गई अवैध संपत्तियों को ढहाने निकल पड़े थे। खौफ और डर के बल पर अपना साम्राज्य खड़ा करने वाले बाहुबली माफिया धीरे – धीरे लोगों की स्मृति से गायब होते जा रहे हैं।
1. मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari)- अपराध की दुनिया से होते हुए राजनीति तक का सफर तय करने वाले मुख्तार अंसारी का आतंक पूर्वांचल में एक दौर में गजब का था। 80 के दशक में अपराध की दुनिया में कदम रखने वाला मुख्तार राजनीति में इतना बलशाली हो चुका था कि उसके विरोधियों को भी अपनी जान बचाने के लिए कुछ समय के लिए राज्य छोड़ना पड़ा था। साल 2006 से जेल में बंद मुख्तार अंसारी ने लगातार चार बार विधानसभा का चुनाव जीता है। फिलहाल बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी ने इस बार खुद चुनाव न लड़कर अपने बेटे अब्बास को चुनाव लड़ाया, जो जीत भी गया। ये बताता है कि उसका सियासी रसूख अब भी कायम है। लेकिन, सीएम योगी के सत्ता में आने के बाद से उसके सितारे गर्दिश में जा चुके हैं। जेल में बंद मुख्तार को खुद एनकाउंटर का डर सता रहा है, वहीं उसका विधायक बेटा और पत्नी पुलिस से बचने के लिए इधर-उधर भाग रहे हैं। गाजीपुर से सांसद और मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी (Afzal Ansari) पर भी केंद्रीय एजेंसियों (Central Agencies) का शिकंजा कसा हुआ है।
2. अतीक अहमद (Atiq Ahmed)- उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन बाहुबलियों के लिए काफी उर्वर रही है। जरायम की दुनिया में जिसने जितना बड़ा नाम कमाया, राजनीति में उसकी उतनी तूती देखने को मिली। यूपी की राजनीति पर बाहुबली और माफियाओं के प्रभाव की चर्चा अतीक अहमद के चर्चा के बिना अधूरी है। अतीक अहमद को उस क्षेत्र की जनता ने चुनकर देश की संसद में भेजा, जिन्होंने कभी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) को जीताकर संसद भेजा था। अतीक अहमद ने साल 2004 में इलाहाबाद की फूलपुर सीट (Phulpur seat of Allahabad) से लोकसभा चुनाव जीता था।
सांसद के अलावा चार बार विधायक रह चुके अतीक अहमद बसपा विधायक राजू पाल की हत्या समेत 42 आपराधिक मामले दर्ज हैं। अतीक अहमद खुद गुजरात के साबरमती जेल में बंद है। उसका छोटा बेटा अली अहमद नैनी सेंट्रल जेल में बंद है। जबकि बड़ा बेटा मोहम्मद उमर जो कि फरार चल रहा था, हाल ही में अदालत में सरेंडर कर चुका है। योगी सरकार अब तक उसके कई संपत्तियों पर बुलडोजर दौड़ा चुकी है। इसके अलावा करोड़ों की संपत्ति को जब्त भी किया है।
3. हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari)- राजनीति का अपराधीकरण गोरखपुर से शुरू हुआ था। इसके सबसे बड़े अगुवा हरिशंकर तिवारी थे। तिवारी की किसी जमाने में पूर्वांचल की राजनीति में तूती बोला करती थी। उन्होंने साल 1985 में जेल में रहते हुए चिल्लूपार विधानसभा सीट (Chillupar Assembly Seat) से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर कांग्रेस प्रत्याशी को हरा दिया था। ये देश में पहला मौका था जब जेल में रहते हुए कोई चुनाव जीत गया था। इसने उनकी ताकत में कई गुणा इजाफा कर दिया था। वे 6 बार विधायक बने।
कल्याण सिंह (Kalyan Singh) और मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) की सरकारों में कैबिनेट मंत्री बने। लेकिन, साल 2007 से उनका सियासी सूरज अस्त होने लगा था। साल 2007 और 2012 में लगातार दो बार पराजय झेलने के बाद उन्होंने राजनीति छोड़ दी और बेटों को आगे कर दिया। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में उनके परिवार का कोई शख्स चुनाव नहीं जीत पाया। उनका बेटा विनय तिवारी सपा के टिकट पर चिल्लूपार से चुनाव मैदान में था लेकिन हार गया। तिवारी खानदान का अब वो भौकाल भी क्षेत्र में नहीं रहा, जो किसी जमाने में हुआ करता था।
4. राजा भैया (Raja Bhaiya)- रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया की छवि एक बाहुबली नेता की है। कुंडा रियासत से आने वाले राजा भैया आजतक किसी सियासी दल में शामिल नहीं हुए। राजा भैया पर डीएसपी जियाउल हक सहित कई हत्याओं का आरोप है। डीएसपी हत्याकांड में शामिल होने के बाद राजा भैया को अखिलेश यादव कैबिनेट से इस्तीफा देना पड़ा था। हालांकि, सीबीआई जांच (CBI Probe) में क्लीन चिट मिलने के बाद 8 महीने के बाद फिर से सरकार में मंत्री बन गए थे।
राजा भैया का पैतृक निवास प्रतापगढ़ जिले की कुंडा तहसील है, जिसके बारे में बहुत दिनों तक कहा जाता था, कि राज्य सरकार की सीमाएं यहां से समाप्त हो जाती हैं। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के काफी करीबी रहे राजा भैया का अब उनके बेटे अखिलेश यादव से छत्तीस का आंकड़ा है। राजा भैया फिलहाल बीजेपी के काफी करीब हैं।