Election Results BSP: यूपी में खत्म होने की कगार पर बसपा! मायावती शिखर से शून्य पर पहुंचीं

Election Results BSP: मायावती का वोट बैंक अब पूरी तरह से भारतीय जनता पार्टी की तरफ चला गया है और यही वजह है कि मायावती की उत्तर प्रदेश में की करारी हार का सामना करना पड़ा है।

Published By :  Vidushi Mishra
Update: 2022-03-10 15:09 GMT

बीएसपी सुप्रीमो मायावती (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Election Results BSP: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बहुजन समाज पार्टी की करारी शिकस्त हुई है। पिछले तीन दशक के चुनाव को देखें तो इससे बुरी हार शायद ही उत्तर प्रदेश में बसपा को मिली हो। इस चुनाव में बसपा अभी तक सिर्फ एक सीट पर बढ़त बनाई हुई है, अभी यह सीट भी पक्की नहीं है की उस पर जीत हासिल होगी।

मायावती का जहां वोट प्रतिशत घटा है वहीं उनकी सीट भी 2017 के मुकाबले भी शून्य पर आ गई है। मायावती का वोट बैंक अब पूरी तरह से भारतीय जनता पार्टी की तरफ चला गया है और यही वजह है कि मायावती की उत्तर प्रदेश में की करारी हार का सामना करना पड़ा है।

इस चुनाव के बाद अब बहुजन समाज पार्टी और मायावती के अस्तित्व का सवाल बन गया है। क्योंकि जहां मायावती के पास अब कोई विधायक और एमएलसी नहीं होगा वहीं राज्यसभा में भी उनकी पार्टी के सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो रहा है। मायावती के पास अब कोई रास्ता नहीं है बचा है वह अपने एकदम सियासी ढलान पर पहुंच गई हैं।

मायावती का वोट बैंक और हार का क्रम 2014 में शुरू हुआ था वह रुक नहीं रहा है। लेकिन यह चुनाव उनके लिए बेहद चिंदा जनक है और उनकी पार्टी एकदम शून्य हो गयी है। मायावती का दलित, ब्राह्मण और मुस्लिम दांव नहीं चला। यही नहीं जाटव वोट बैंक भी अब उनका साथ छोड़कर चला गया है। मायावती के हार की जो पटकथा 2012 के चुनाव में लिखनी शुरू हुई वह 2014 के बाद से निरंतर जारी है।

मायावती का जादू हुआ खत्म?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में 1984 से सक्रिय बहुजन समाज पार्टी की मुखिया पहली बार 1989 में लोकसभा का चुनाव जीती थीं। वह पहली बार 1995 में यूपी की मुख्यमंत्री बनीं उस वक्त मुलायम सिंह यादव की सरकार गिराकर बीजेपी के सहयोग से वह सीएम बनीं थीं। मायावती की सबसे बड़ी जीत 2007 में हुई थी जब वह अकेले दम पर यूपी का चुनाव जीतकर सूबे की गद्दी पर बैठी थीं। उसके बाद मायावती के जो बुरे दिन शुरू हुए वह लगातार ढलान की ओर बढ़ती चलीं गईं अब उनके सियासी करियर और रसूख पर सवाल खड़ा हो गया है।

बसपा का कैडर वोट बैंक खिसका?

2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था और अपने कैडर वोट बैंक को वह बचा लिया था। लेकिन 2022 के चुनाव में वह अपने कैडर वोट बैंक को भी नहीं बचा पाई हैं। बात 1990-1991 से शुरू करें तो बसपा के वोट बैंक में धीरे-धीरे इजाफा हुआ।

1993 के चुनाव के बाद से मायावती लगातार 60 से ज्यादा विधानसभा की सीटें जीतने में वह सफल होती थीं। 1995-1996 और 2002 में भाजपा के साथ सरकार ने मिलकर बनाई थी। 2002 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का वोट प्रतिशत पहली बार पढ़कर 30.6 तक पहुंचा और वह उत्तर प्रदेश में 98 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बनाई।

लेकिन सबसे बड़ी जीत 2007 के विधानसभा चुनाव में मिली थी जब अकेले बलबूते पर सबसे ज्यादा 40.35% वोट हासिल कर सूबे की सत्ता पर काबिज हुई थी उस वक्त मायावती को 206 सीटें जीती थीं। 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी के 20 सांसद जीते थे तब उनका वोट प्रतिशत 13 प्रतिशत था।

2009 के चुनाव से मायावती के वोट बैंक घटना शुरू हुआ 2009 में करीब 13% तक गिरा। 2012 में बसपा का वोट प्रतिशत 26% पर आकर टिक गया 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का उत्तर प्रदेश में खाता भी नहीं खुला और उनका वोट प्रतिशत 19.7 तक नीचे गिरा। 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 22.24 फ़ीसदी वोट हासिल हुए इसका नतीजा यह हुआ कि वह 19 सीटों पर ही सिमट गईं।

मायावती के वोट बैंक में बीजेपी की सेंधमारी

मायावती को सबसे ज्यादा नुकसान भारतीय जनता पार्टी से हुआ है, उनके जाटव वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी की है और पश्चिम उत्तर प्रदेश जो कभी बसपा का गढ़ हुआ करता था। अब भारतीय जनता पार्टी का हो गया है। पश्चिम उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां दलित वोटों का जाति के आधार पर बंटवारा हुआ और जाटव, पासी, बाल्मीकि के वोट बंट गए।

यहां 55 फ़ीसदी से अधिक जाटव बिरादरी के लोग रहते हैं। इसी बिरादरी मायावती भी आती हैं, 2014 के चुनाव के बाद मायावती की वोट बैंक में बीजेपी ने जो सेंधमारी शुरू कि वह अब उसके एकदम पतन की ओर पहुंचा दिया है। मायावती का रसूख जहां कम हुआ वहीं उनकी पार्टी जीरो पर आकर शिफ्ट हो गई है।

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