Balrampur News: अटल बिहारी वाजपेई की पौत्री अंजली मिश्रा को याद आए भगवान राम, कारसेवक के साथ फोटो शेयर कर कही ये बात
Balrampur News : बाबरी मस्जिद के विध्वंस की बरसी पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की पौत्री अंजली मिश्रा ने प्रथम कारसेवक कोठारी बंधुओं की बहन के साथ फोटो साझा करके सोशल मीडिया पर वायरल किया :बोली आज का दिन कारसेवकों के शौर्य की ताजा याद
Balrampur:देश के पूर्व प्रधानमंत्री एवं भारत रत्न पंडित अटल बिहारी वाजपेई की पौत्री एवं भाजपा हरियाणा प्रदेश महिला मोर्चा की प्रदेश महामंत्री अंजली मिश्रा ने 6 दिसंबर बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी शौर्य दिवस पर प्रथम कारसेवक अपितु श्री राम जन्मभूमि में मन्दिर निर्माण आन्दोलन में बलिदान हुए दो भाई राम कोठारी और श्याम कोठारी की बहन श्रीमती पूर्णिमा के साथ एक तस्वीर साझा करके सोशल मीडिया पर वायरल किया है। जो विश्व भर के राम भक्तों के लिए आज का दिन याद दिलाया है।यह तस्वीर सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहीं हैं।
अंजली मिश्रा ने कहा कि यह एक ऐसी घटना रही है जिसने आजाद भारत के भविष्य को एक अलग दिशा दी। दरअसल बाबरी मस्जिद बाबर के सेनापति मीर बाकी ने 1528-29 में बनवाई थी। बाद में अंग्रेजों के समय से ही इस स्थान को लेकर विवाद रहा। मुस्लिम जहां इसे मस्जिद मानते आए वहीं हिंदुओं का विश्वास रहा कि जहां मस्जिद है वहीं भगवान राम की जन्मभूमि है और 1822 में फैजाबाद अदालत के एक अधिकारी द्वारा पहली बार यह दावा कि मस्जिद एक मंदिर की जगह पर थी। 1855 में इस स्थल पर धार्मिक हिंसा की पहली घटना दर्ज की गई। 1859 में ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने विवादों से बचने के लिए मस्जिद के बाहरी हिस्से को अलग करने के लिए एक रेलिंग लगाई।1949 में मस्जिद के अंदर मूर्तियां मिलीं। कुछ ने कहा कि यह भगवान का प्रकटीकरण है तो कुछ ने कहा कि इन्हें गुप्त रूप से रखा गया। दोनों पक्षों ने जमीन पर दावा करते हुए दीवानी मुकदमा दायर कर दिया। इस स्थल को विवादित घोषित कर दिया गया और ताले लग गए। उल्लेखनीय है कि 80 के दशक में विश्व हिंदू परिषद ने राम मंदिर की मांग को तेज कर दिया था। भारतीय जनता पार्टी भी इसका जमकर समर्थन कर रही थी। 1986 में एक जिला अदालत ने फैसला दिया कि विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दी जानी चाहिए। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस बात का समर्थन किया और विवादित स्थल के ताले खुलवाए। यहां तक कि इस घटना का दूरदर्शन पर प्रसारण भी किया गया। उस समय हिंदू भावनाओं को संतुष्ट करने के रूप में इसे देखा गया।फरवरी 1989 में, विहिप ने घोषणा की कि विवादित स्थल के पास मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास किया जाएगा। देशभर से ईंटों का पूजन कर अयोध्या भेजा जाने लगा। नवंबर में, विश्व हिंदू परिषद ने गृह मंत्री बूटा सिंह और तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी की उपस्थिति में “विवादित ढांचे” के निकट शिलान्यास किया। इसी महीने राजीव गांधी ने फैजाबाद में एक भाषण के दौरान कहा कि वे रामराज्य लाएंगे और उन्हें हिंदू होने पर गर्व है। हालांकि 1989 के आम चुनाव में कांग्रेस ने सत्ता गंवा दी और जनता दल नेता वीपी सिंह पीएम बने। बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार का समर्थन किया।
2 नवंबर की तारीख थी आज से 33 साल पहले 1990 की। उस समय राम मंदिर का आंदोलन चरम पर था। देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में कारसेवक सरकारी बाधाओं को तोड़ते हुए अयोध्या की सीमा में घुस चुके थे। युवा स्टूडेंट्स, स्वयंसेवक महिलाएं और लड़कियां सभी ने अयोध्या पहुंचने की ठान ली थी। मंदिर आंदोलन के नायक अशोक सिंघल के आह्वान पर लाखों कारसेवकों का जमावड़ा अयोध्या में हो चुका था। सभी पर गिरफ्तारी की भी तलवार लटक रही थी। उस समय सरकार थी समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव की। सुबह का प्लान था विवादित राम मंदिर में पहुंच कर कारसेवा करने का। अशोक सिंघल उमा भारती ऋतंभरा विनय कटियार सहित विहिप से जुड़े संतों की जमात अयोध्या में मौजूद थी।
सुबह का समय था जब कारसेवकों के जत्थे मंदिरों और अपनी-अपनी शरण स्थली से निकलकर सड़क पर पहुंचने लगे। सरयू तट से कारसेवकों का हुजूम हनुमानगढ़ी की ओर चल पड़ा। अशोक सिंघल संतों के साथ जत्थे का नेतृत्व कर रहे थे। अयोध्या कोतवाली से जब कारसेवक आगे बढ़े तो पुलिस सरगर्मी बढ़ गई। सुरक्षा में लगे कांस्टेबलों के डंडे फटकने लगे और बंदूके तन गई। पुलिस अधिकारियों ने माइक से आगे न बढ़ने की चेतावनी दी पर कारसेवक कहां सुनने वाले। वे आगे बढ़ने लगे। जैसे ही मुख्य मार्ग से हनुमानगढ़ी की ओर मुड़ने की कोशिश की, पुलिस फायरिंग शुरू हो गई। कारसेवकों को गोलियां लगती, उन्हें साथी कारसेवक उठाकर ले जाते। यह सिलसिला कुछ देर तक चलता रहा।इस बीच दिगंबर अखाड़ा को जोड़ने वाले रास्ते पर भी फायरिंग शुरू हो गई। सभी कारसेवक निहत्थे थे। उन्हीं में कोठारी बंधु भी थे जिनको पुलिस की गोलियां लगी और उनकी मौत हो गई। उस समय आंदोलन का संचालन दिगंबर अखाड़ा मणिराम छावनी व कारसेवक पुरम से हो रहा था। 30 अक्टूबर 1990 की घटना 2 नवंबर को भी दोहराई गई जिसमें कई कारसेवक मारे गए। लेकिन कारसेवकों ने मुलायम सरकार को जवाब दे दिया था। वे अंततः विवादित ढांचे तक पहुंच कर उस पर तोड़फोड़ भी करने में कामयाब हो गए थे।
पूर्व प्रधानमंत्री की पौत्री अंजली मिश्रा ने कहा कि 6 दिसम्बर की तारीख इतिहास के पन्नों में शौर्य दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है। और उनके साथ यह यह महिला कोई और नहीं अपितु श्री राम जन्मभूमि में मन्दिर निर्माण आन्दोलन की प्रथम कारसेवा में बलिदान हुए दो भाई श्री राम कोठारी और श्री श्याम कोठारी की बहन श्रीमती पूर्णिमा हैं।
उन्होंने कहा कि विश्व भर के राम भक्तों के लिए आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। अयोध्या जी में निर्माणाधीन श्री राम जन्मभूमि मन्दिर के सपने को साकार करने हेतु 6 दिसम्बर 1992 को उसी स्थान पर मुगल आक्रमणकारियों द्वारा मन्दिर तोड़कर बनाए गए ढांचे को कारसेवकों ने ढहा दिया था। भारत राष्ट्र के प्राचीनतम इतिहास एवं सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण हेतु यह बलिदान कभी भुलाया नहीं जा सकता है।"