Banda Bhuragarh Fort History: प्रेमगाथा नहीं शौर्यगाथा है जनाब! पढ़ें पूरी दास्तां

Banda Bhuragarh Fort History: भूरागढ़ दुर्ग के तत्कालीन शासक अली बहादुर की बेटी मेहरुन्निसा शिकार की शौकीन थी। शिकार की तलाश में दूर तक निकल गई शहजादी मेहरुन्निसा बाघ का शिकार बनती, इससे पहले वहां पहुंचे वीरन नट और उसके दस्ते ने बाघ को मारकर शहजादी की जान बचाई।;

Report :  Om Tiwari
Update:2025-01-14 15:14 IST

History of Bhuragarh Fort Makar Sankranti Mela

Banda Bhuragarh Fort History: उत्तर प्रदेश सरकार ने बुंदेलखंड के जिन किलों को पर्यटन स्थल बनाने की कवायद शुरू की है, उनमें बांदा शहर के पड़ोस में केन तट पर स्थित भूरागढ़ किला भी शुमार है। अमूमन भूला बिसरा रहने वाला यह किला मकरसंक्रांति को मेला प्रेमियों से ज्यादा प्रेमी प्रेमिकाओं के आकर्षण का केंद्र होता है। इतिहास के झरोखों से देखने वाले भूरागढ़ की चाहे जो गाथा गाएं, लेकिन किले के नीचे लगने वाले नटबली मेले को पिछले कुछ दशकों में खासकर सोशल मीडिया के उभार के बाद प्रेमी प्रेमिका की कहानी बताने की जो होड़ चली, वह अब लैला-मजनूं से होते हुए आशिकों के मेले तक आ पहुंची है। जबकि यह नट दंपति के बलिदान की कहानी है, जो विस्मित करती है। गुदगुदाती है। गर्व का भाव लाती है।

बलिदान का किस्सा बताने के बजाय आशिकों का मेला बताकर फैलाया जा रहा भ्रम

मकरसंक्रांति पर्व पर शुरू हुए दो दिवसीय परंपरागत नटबली मेले को एक बार फिर तोड़-मरोड़ कर परोसा जा रहा है। आशिकों का मेला बताकर भ्रम फैलाया जा रहा है। शौर्यगाथा को प्रेमगाथा बनाने और बताने की अनवरत कोशिश हो रही है। भूरागढ़ दुर्ग का लंबा इतिहास है। मकरसंक्रांति में नटबली मेला के तार करीब 200 वर्ष पूर्व भूरागढ़ दुर्ग के तत्कालीन शासक नवाब अली बहादुर से जुड़ते हैं। बांदा के महेश्वरी प्रेस की ओर से प्रकाशित और प्रसारित मनोहर सिंह और मदन शर्मा के संयुक्त लेख में शौर्य गाथा पर विस्तार से रौशनी डाली गई है। लेख के अनुसार मकरसंक्रांति मेले के दौरान जिन समाधियों को नट और शहजादी की मानकर आशिक फूल मालाएं चढ़ाते हैं, वे दरअसल नट वीरन और उसकी पत्नी वीरमती की हैं।


असाधारण योद्धा, भरत मुनि का उपासक और वफादारी की मिसाल था वीरन नट

भूरागढ़ दुर्ग के तत्कालीन शासक अली बहादुर की बेटी मेहरुन्निसा शिकार की शौकीन थी। शिकार की तलाश में दूर तक निकल गई शहजादी मेहरुन्निसा बाघ का शिकार बनती, इससे पहले वहां पहुंचे वीरन नट और उसके दस्ते ने बाघ को मारकर शहजादी की जान बचाई। वीरन मध्य प्रदेश के सरबई इलाके आबाद में नटों के कबीले का सरदार था। युद्धकला, तिलिस्म और तंत्र में निपुण वीरन की बहादुरी के चर्चे दूर-दूर तक फैले थे। मेहरुन्निसा ने लौटकर सारा वाकया पिता नवाब अली बहादुर को बताया। नवाब ने वीरन नट को 5000 सैनिकों का सरदार बनाकर और राजपुरुष का दर्जा देकर उसकी जांजाबी का भरपूर इनाम दिया। साथ ही बेटी को युद्धकला में पारंगत करने की जिम्मेदारी भी सौंपी।

चरखारी नरेश को धूल चटाने में भी बांदा नवाब का 'ब्रम्हास्त्र' बना था वीरन

नवाब अली बहादुर की अनुपस्थिति में भूरागढ़ किले में चरखारी नरेश के हमले पर पलटवार की तैयारी हुई। नवाब ने भारी फौज के साथ चरखारी किले पर धावा बोला। लेकिन किले की ऊंची प्राचीरों और फाटक न तोड़ पाने से नवाब की सेना को बैरंग लौटना पड़ा। विचार मंथन चला। तय हुआ कि बिना फाटक खोले फतेह मुश्किल है। लेकिन सवाल था कि फाटक खुलेगा कैसे? इसकी जिम्मेदारी वीरन नट ने आगे बढ़कर स्वीकार की। उसने कहा, वह अंदर जाकर फाटक खोलेगा। वह पूरी सेना के साथ बाहर फाटक खुलने का इंतजार करें। वीरन अपने 50 विशेष लड़ाकों के साथ आगे चला। नवाब और उसकी सेना फासला बनाकर पीछे चली।


चरखारी किले के बाहर पहुंच कर वीरन और उसके लड़ाके प्राचीर में कबंद (गोह) लगाकर किले अंदर दाखिल हुए।अंदर मौजूद सैनिकों से भीषण युद्ध हुआ। लेकिन वीरन नट अंदर से फाटक खोलने में सफल रहा। फाटक खुलते ही नवाब की सेना किले के अंदर दाखिल हो गई। मैदान मारने की बदौलत नवाब ने वीरन को और ऊंचे ओहदे से नवाजा।

नदी पार टीले से रस्सी पर चलकर किले में पहुंचने से पहले कपट ने लिया वीरन का बलिदान

साहसिक और अद्भुत प्रतियोगिताओं के शौकीन नवाब अली बहादुर ने मकर संक्रांति पर चुनौतीपूर्ण आयोजन किया। नवाब ने कहा, नदी पार टीले से रस्सी पर चलकर किले की बुर्ज तक पहुंचने वाले को प्रधान किलेदार बनाने के साथ ही बड़े इलाके के संचालन की जिम्मेदारी दी जाएगी। वीरन नट ने यह चुनौती भी स्वीकार की। सबको लगा, इस बार वीरन विफल होगा। लेकिन हर कला में पारंगत वीरन यहां भी सफल होता दिखा। उसके सफल होने पर नवाब के सेनानायक रनजोर सिंह दउवा को अपने नुकसान का डर सताया। वीरन केन नदी पार कर जब किले की बुर्ज के करीब था, तभी रनजोर ने तलवार से रस्सी काट दी। कपट ने वीरन का बलिदान ले लिया। रनजोर भाग निकला।

वीरन की मौत पर पत्नी वीरमती ने किले से कूदकर दी जान, दोनों की समाधियों पर लगता है मेला

पति वीरन की मौत का समाचार पाकर उसकी पत्नी वीरमती ने भी किले के झरोखे से कूदकर जान दे दी। नवाब ने नट दंपति को शाही सम्मान देने के साथ किला परिसर दोनों की समाधियां बनवाईं। मकर संक्रांति पर लोग समाधियों पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। वीरता और बलिदान की गाथा से प्रेरणा लेते हैं। मदन शर्मा कहते हैं, वीरन नट और शहजादी को प्रेम प्रसंग से जोड़कर भ्रम फैलाया गया है। जबकि दोनों में गुरु-शिष्या का रिश्ता था।

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