Banda News: पुलिस के खिलाफ कोउ नहीं छापत, तुम छापा तो बतावौं आपन दास्तान, अनशन पर फ्रीडम फाइटर का बेटा

Banda News: आजादी के अमृत पर्व में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का परिवार गुंडों के साथ ही पुलिसिया मनमानी से किस कदर हलकान हैं, इसकी एक जीती-जागती मिसाल बांदा के अशोक लाट तिराहे में दिखी।;

Report :  Om Tiwari
Update:2025-01-06 21:34 IST

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Banda News: आजादी के अमृत पर्व में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिवार गुंडों के साथ ही पुलिसिया मनमानी से किस कदर हलकान हैं, इसकी एक जीती-जागती मिसाल बांदा के अशोक लाट तिराहे में देखी और समझी जा सकती है। कड़कड़ाती ठंड में अमूमन लोग जब अंगीठी और हीटर के सानिध्य में लिहाफों तक सिमटे हों और प्रशासनिक अधिकारी कंबल बांटने का पुण्य कमा रहे हों, तब खुले आसमां के नीचे एक बुजुर्ग का अनशन पर डटना हर आम और खास का ध्यान खींचता है। ठंड के मारे बुजुर्ग का बोल नहीं फूटता। दांत किटकिटाते हैं। लेकिन पीड़ा जुबां पर आती है। होंठ थरथराते हैं। फिर, जो बताते हैं वह व्यवस्था को लानत भेजती है।

अशोक लाट में खुले आसमा के नीचे न्याय की गुहार, कोई सुन ले पुकार

बांदा का अशोक लाट दिल्ली का जंतर-मंतर है। जब संबंधित अथारिटी से न्याय नहीं मिलता, तब लोग यहीं आकर न्याय की सार्वजनिक मांग करते हैं। पिछले दिनों आजादी के बाद पहली बार इस 'न्याय मांग केंद्र' पर प्रशासन ने ताला जड़ दिया था। यह कैसे खुला या खोला गया और इस पर अखबारों और सत्ता पक्ष व विपक्ष समेत लोकतंत्र के तमाम झंडा बरदारों का क्या रवैया रहा, यह सवाल अलग से रौशनी की मांग करता है। फिर कभी।

पुलिस के खिलाफ कोउ नहीं छापत, तुम छापा तो बतावौं आपन दास्तान

अशोक लाट तिराहा लौटते हैं। अनशन पर डटे बुजुर्ग से मुखातिब होते हैं। पूछा, दादा कौन मुसीबत पड़ी कि विकट ठंडी मां उपास कै मजबूरी है। चुप्पी साध बुजुर्ग निहारते रहे। फिर बोले तो सवाल दागा। पत्रकार आहू। हां, कहने पर पीड़ा के पन्ने पलटने लगे। इससे पहले उलाहना देना नहीं भूले। कहा, पुलिस के खिलाफ कोउ नहीं छापत। चुनौती भी दी, तुम छपिहा। यह बताने पर कि छपैं लाइक बतइहा तो दौर के छापब, बुजुर्ग ने दास्तां बयां की।

गुंडों के खिलाफ नजर टेढ़ी करना दूर, उनके बगलगीर बने घूम रहे CO और SO

उन्होंने जो बताया और मुख्यमंत्री को भेजा प्रार्थनापत्र दिखाया, वह यही मुनादी करता है कि पुलिस पीड़ित का नहीं पीड़क का साथ देती है। बुजुर्ग रमाकांत तिवारी पैलानी थाने के उसी पिपरहरी गांव के निवासी हैं जो एक अरसे से गुंडागर्दी और जघन्य अपराधों के लिए चर्चित रहा है। बीते नौ सितंबर को गांव के कुख्यात गुंडा परिवार ने रमाकांत की भूमि पर कब्जे के इरादे से उसके लड़के अजीत पर प्राणघातक हमला किया। घटना की एफआईआर पैलानी थाने में दर्ज कराई गई। लेकिन तब से अब तक पुलिस ने गुंडों की कालर पकड़ना तो दूर, उन पर नजर टेढ़ी करना भी जरूरी नहीं समझा। पीड़ित इस रवैए को पुलिस की गुंडों से मिलीभगत मानता है। और सवाल करता है, आजादी के दीवानों के परिजनों से यदि पुलिस का यह रवैया है तो आम जनों से पुलिसिया व्यौहार का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

पुलिस का पक्ष जानने में राम से काम, किसी फोन नहीं लगा, लगा तो उठा नहीं

इसका दूसरा पहलू पुलिस का पक्ष है। इसे जानने की कोशिश की गई। किसी का फोन नहीं लगा। जिसका लगा, रिसीव नहीं हुआ। रिसीव हुआ तो, परिचय पूछ जानकारी करने की बात कर मामले की इतिश्री कर दी गई। 

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