अमर शहीद भगत सिंह -देशभक्ति दौड़ती थी जिसके खून में, दिल आजादी के लिए धड़कता था
''मैं एक मानव हूं और जो कुछ भी मानवता को
प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है।''
जिसके खून में देशभक्ति दौड़ती थी और जिसका दिल आजादी के लिए धड़कता था उस आजादी के दीवाने को हम सब शहीद भगत सिंह के नाम से जानतें है। उनकी दादी ने उनका नाम 'भागो वाला' रखा था। जिसका मतलब होता है 'अच्छे भाग्य वाला'। बाद में उन्हें 'भगतसिंह' कहा जाने लगा।किसे मालुम था कि दादी के लाड प्यार का पाला पोसा बच्चा देश की आजादी के लिए इतना भाग्यशाली हो जाएगा कि आजादी के दीवाने उसका नाम लेकर वंदेमातरम का गीत गुनगुनाते गुनगुनाते खुशी- खुशी सूली पर चढ़ गए ।
भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलाँ है जो पंजाब, भारत में है। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था।
लाला लाजपत राय का पड़ा प्रभाव
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। जलियांवाला बाग हत्याकांड उन्हें झकझोर कर रख दिया। भगत के मन में अस्थिरता वेचैनी ने उनके बाल मन को गंभीर बनाने का काम किया। मन ही मन वे यह निश्चित कर चुके थे कि थे कि अब तो आजादी ले के ही रहना है। इसी बीच भगत सिंह को करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय के किस्सों ने पूरा पुख्ता कर दिया किया अब तो हर हाल में फिरंगियों को मटियामेट करके ही दम लेना है।
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नौजवान भारत सभा की स्थापना की
डी.ए.वी. स्कूल से उन्होंने नौवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1923 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उन्हें विवाह बंधन में बांधने की तैयारियां होने लगी तो वह लाहौर से भागकर कानपुर आ गए। वह 14 वर्ष की आयु से ही पंजाब की क्रांतिकारी संस्थाओं में हिस्सा लेने लगे। फिर देश की आजादी के संघर्ष में ऐसे रमें कि पूरा जीवन ही देश को समर्पित कर दिया।
नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़ भारत की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की। काकोरी कांड में रामप्रसाद 'बिस्मिल' सहित 4 क्रांतिकारियों को फांसी व 16 अन्य को कारावास की सजा से वे इतने ज्यादा बेचैन हुए कि चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसो. से जुड़ गए और उसे एक नया नाम दिया' हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन'।
लाला लाजपत राय की मौत का बदला
1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिये भयानक प्रदर्शन में लाला लाजपत राय की मृत्यु ने भगत के मन में उस योजना को बुन दिया जिसमें उन्होंने अग्रेंजो के लाठी का बदला चुकाना था। एक गुप्त योजना के तहत इन्होंने लाला के बराबर का हिसाब चुकाने के लिए पुलिस सुपरिटेंडेंट स्कॉट को मारने की योजना सोची। 17 दिसंबर 1928 को ए० एस० पी० सॉण्डर्स को राजगुरु ने एक गोली सीधी मारकर और भगत सिंह ने 3 -4 गोली दाग कर इन लोगों ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला ले लिया।अब भगत सिंह के दिल को थोड़ा चैन मिला लेकिन मिशन आजादी तो अभी कोसो दूर थी।
केन्द्रीय असेम्बली पर बम से हमला
सभी ने दिल्ली की केन्द्रीय एसेम्बली में बम फेंकने की योजना बनायी और सर्वसम्मति से भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त का नाम चुना गया। 8 अप्रैल 1929 को केन्द्रीय असेम्बली में बम गिराकर इन्होंने "इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद!" का नारा लगाया और ग़िरफ़्तार हो गए।
"इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद!"
अपनी योजना को शत प्रतिशत धरातल पर उतारने के कौशल में सिद्धहस्त भगत सिंह ने "इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद!" के नारे से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में धार पैदा कर कम समय में आजादी की लड़ाई को एक दिशा दिया। कदम कदम पर पिटने वाले भारतीय आंदोलनकारियों के लहू में सनसनी दौड़ाने का काम किया।
लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फाँसी की सज़ा सुनाई गई व बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया। 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। तीनों ने हँसते-हँसते देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया।
आज शहीदे आजम भगत सिंह के जन्म दिवस पर उन्हें पूरा देश सलाम करता है।