प्रकाशन में मुंशी नवल किशोर का बड़ा नाम, ऐसा रहा उनका पूरा जीवन
लखनऊ के हजरतगंज में कैथेड्रल स्कूल से लीला सिनेमा तक जो सड़क बनाई गई है, वह मुंशी नवल किशोर के नाम से जाना जाता है। मुंशी नवल किशोर ने इस रोड पर प्रेस स्थापित की थी, जो उस वक्त एशिया की सबसे बड़ी प्रेस थी।
लखनऊ: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत में सन् 1857 की क्रांति के बाद उत्तर भारत का पहला छापाखाना लगाने वाले मुंशी नवल किशोर की जयंती है। बल्लभ संप्रदाय के जन्मे नवल किशोर सभी धर्मों को सम्मान किया करते थे। सन 1858 में मुंशी नवल किशोर ने लखनऊ में छापाखाना स्थापित की। साल के अंत में ही 26 नवम्बर को अवध अखबार निकाला। 1858 में यह शुरू हुआ तो कुल चार ही पृष्ठों का होने के बावजूद इस मायने में महत्वपूर्ण था कि अंग्रेजों ने मुंशी को प्रिंटिंग प्रेस लगाने व अखबार छापने की जो इजाजत दी वह 1857 के विफल स्वतंत्रता संग्राम के बाद किसी भारतीय को दी गई इस तरह की पहली इजाजत थी।
लखनऊ में है नवल किशोर के नाम की सड़क
आपको बता दें कि लखनऊ के हजरतगंज में कैथेड्रल स्कूल से लीला सिनेमा तक जो सड़क बनाई गई है, वह मुंशी नवल किशोर के नाम से जाना जाता है। मुंशी नवल किशोर ने इस रोड पर प्रेस स्थापित की थी, जो उस वक्त एशिया की सबसे बड़ी प्रेस थी। इतना ही नहीं उन्होंने हिंदू धर्म के ग्रंथों का अनुवाद उर्दू और इस्लान धर्म के कुरान का हिन्दी में अनुवाद कराकर छापना शुरू किया।
"आजादी हमारा पैदाइशी हक है"
बता दें कि मुंशी नवल किशोर ने अवध अखबार के 11 अप्रैल 1875 के संस्करण में "आजादी हमारा पैदाइशी हक है" का उद्घघोष किया और बाल गंगाधर तिलक ने परिमार्जित कर इसे आंदोलन बना दिया। मुंशी नवल किशोर ने उत्तर भारत के पहले स्वदेशी भाषाई समाचार पत्र 'अवध अखबार' के 11 अप्रैल 1875 के संस्करण के अपने संपादकीय अग्रलेख में यह घोषणा की थी।
'अवध अखबार' और 'नवल किशोर प्रेस'
तिलक ने अपने अखबारों मराण और केसरी के संपादन और प्रबंधन में मुंशीजी को मिसाल के तौर पर लिया था। तिलक महाराज, गालिब, रतन नाथ सरशार और बहादुर शाह जफर ही नहीं, शाहे इरान, बादशाहे अफगानिस्तान के तत्कालीन वायसराय सहित तमाम साहित्यिक राजनीतिक हस्तियां मुंशीजी नवल किशोर से उनके 'अवध अखबार' और 'नवल किशोर प्रेस' से किसी न किसी तरह जुड़े ही रहे। 'आजादी हमारा पैदाइशी हक है' उस जमाने में उत्तर भारत खासकर युक्त प्रांत का चर्चित नारा बन गया था।
अपर इण्डिया कूपन पेपर मिल की स्थापना
इसके पहले 1871 में उन्होंने लखनऊ में उत्तर भारत का कागज बनाने का पहले कारखाने अपर इण्डिया कूपन पेपर मिल की स्थापना की। मुंशी जी की प्रतिभा का हर कोई कायल था। उन्होंने अपने छापेखाने में कुरान और हदीस समेत कई अहम इस्लामी किताबें छापीं। यही वजह है कि न सिर्फ़ हिंदुस्तान बल्कि दूसरे मुल्कों में भी उन्हें इज़्ज़त की निगाह से देखा जाता था।
नवल किशोर के कायल हुए शाह ईरान
मुंशी नवल किशोर उद्यमी, पत्रकार एवं साहित्यकार थे। शिक्षा, साहित्य से लेकर उद्योग के क्षेत्र में उन्होंने सफलता पायी और उन्होंने धार्मिक रूढ़ता से हटकर हमेशा मानव मूल्यों का सम्मान किया। इसलिए जब शाह ईरान 1888 में भारत आया, तब कलकत्ता में पत्रकारों से कहा कि ‘हिन्दुस्तान आने के मेरे दो मकसद हैं एक वायसराय से मिलना और दूसरा मुंशी नवल किशोर से’।
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