दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के लिए बीजेपी ने बनाई ये खास रणनीति
निर्वाचन आयोग द्वारा दिल्ली विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही अब सभी राजनीतिक दल चुनाव की तैयारियों में जुट गए है। कई राज्यों में सत्ता गंवाने के बाद अब भारतीय जनता पार्टी दिल्ली के लिए फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।
मनीष श्रीवास्तव
लखनऊ: निर्वाचन आयोग द्वारा दिल्ली विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही अब सभी राजनीतिक दल चुनाव की तैयारियों में जुट गए है। कई राज्यों में सत्ता गंवाने के बाद अब भारतीय जनता पार्टी दिल्ली के लिए फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। सूत्रों के मुताबिक भाजपा रणनीतिकारों ने दबी जुबान में अब राज्यों के चुनाव को राष्ट्रीय मुद्दों पर न लड़ने की सलाह भी दी है।
भाजपा रणनीतिकारों की मंशा है कि राज्यों के विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दों को ही तरजीह दी जाए। इसके साथ ही मुख्यमंत्री के तौर पर भी ऐसे ही नेता को आगे बढ़ाया जाए जो स्थानीय हो और आम आदमी पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल का सामना कर सकें।
भाजपा फिलहाल दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का तोड़ ढूंढने में लगी हुई है।
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इसके लिए भी भाजपा में विजय गोयल, हर्षवर्द्धन, हरदीप सिंह पुरी, प्रवेश वर्मा जैसे कई नाम चल रहे है। हालांकि कुछ समय पहले तक प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी का नाम भी इस चर्चा में शामिल था लेकिन स्थानीय न होने के कारण अब उन्हे इस रेस से बाहर माना जा रहा है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा, कांग्रेस व आम आदमी पार्टी तीनो ही मैदान में है लेकिन यहां मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी और भाजपा में ही माना जा रहा है।
आम आदमी पार्टी की दिल्ली की समस्याओं पर आधारित लोकलुभावन घोषणाएं, जनता को दी जाने वाली सुविधाएं और केजरीवाल का दिल्ली का स्थानीय होना जैसी विशेषताएं जहां उनको मजबूत कर रही है तो वहीं भाजपा द्वारा उठाये जा रहे राष्ट्रीय मुद्दे राज्यों के चुनाव में इतना परवान नहीं चढ़ पा रहे है।
एनआरसी और CAA जैसे मुद्दों का नहीं पड़ा असर
भाजपा ने महाराष्ट्र और हरियाणा में अनुच्छेद 370 तो झारखंड में राम मंदिर, एनआरसी और नागरिकता संशोधन अधिनियम जैसे राष्ट्रीय मुद्दो को चुनाव का मुद्दा बनाया लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
गौरतलब है कि वर्ष 2017 में देश के 19 राज्यों में सत्ता पर काबिज भाजपा ने छह राज्यों में सत्ता गंवा दी हैै। हालात यह है कि वर्ष 2017 में देश के 75 प्रतिशत हिस्से पर काबिज भाजपा 2019 के अंत तक लगभग आधा हिस्सा गवां चुकी है।
यहां भी गौर करने वाली बात यह है कि भाजपा को चुनौती कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी से नहीं बल्कि राज्यों के स्थानीय दल ही दे रहे है। वर्ष 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के हाथो सत्ता गंवाने के बाद वर्ष 2019 में भाजपा ने लोकसभा चुनाव में तो दोबारा सत्ता में वापसी की लेकिन फिर हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखण्ड में उसका सियासी पारा नीचे जाते दिखा।
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झारखण्ड चुनाव के नतीजों पर माथापच्ची
हरियाणा में दुष्यंत चैटाला के साथ जोड़-तोड़ कर भाजपा ने सरकार बना ली तो महाराष्ट्र में उसकी परंपरागत सहयोगी शिवसेना ही उसे छोड़ गई। इसी तरह हाल ही में आये झारखण्ड चुनाव के नतीजों ने तो भाजपा रणनीतिकारों की माथे पर सिलवटे ला दी और भाजपा के योग्य रणनीतिकार राज्यों के विषय में अपनी रणनीति पर फिर से माथापच्ची करने में जुट गए है।
छह राज्यों में अपनी सत्ता गंवाने वाली भाजपा रणनीतिकारों का एक गुट शीर्ष नेतृत्व को यह समझाने में जुटा है कि राष्ट्रीय स्तर के लिए तय आदेश-संदेश व रणनीति हर राज्य में लागू करना उचित नहीं है।
दरअसल, देश के कई राज्यों में सत्ता गंवाने के बाद अब भारतीय जनता पार्टी के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। राष्ट्रीय राजधानी और पूरी तरह से शहरी राज्य होने के कारण भाजपा के लिए यहा का विधानसभा चुनाव काफी मायने रखता है। यहां मिली हार उसके शहरी क्षेत्रों से भी सिमटने का लेबल चस्पा करने का मौका विपक्षी दलों को दे देगा और प्रधानमंत्री मोदी की छवि को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
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