राष्ट्रीय जलपान दिवस 2021: जानें आगरा में कैसे मनाया जाता

जुलाई के हर चौथे गुरुवार को राष्ट्रीय जलपान दिवस (नेशनल रिफ्रेशमेंट डे ) के रूप में मनाया जाता है...

Written By :  rajeev gupta janasnehi
Published By :  Ragini Sinha
Update: 2021-07-22 17:20 GMT

जानें आगरा में कैसे मनाया जाता राष्ट्रीय जलपान दिवस 2021 (social media)

आज हम ऐसे राष्ट्रीय दिवस की चर्चा कर रहे हैं, जिसका आगरा के लिए बहुत महत्त्व व आनंद देने वाला दिवस है| जुलाई के हर चौथे गुरुवार को राष्ट्रीय जलपान दिवस (नेशनल रिफ्रेशमेंट डे ) के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस को गर्मी के खत्म होने और बरसात के शुरू होने के समय परिवार के साथ जलपान ग्रहण करके उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

आगरा में जलपान दिवस मनाने का अनूठा तरीका

जैसा हम सभी जानते हैं कि भारत विविधिताओं से भरा हुआ देश है। हर 40 कोस बाद बोली व खानपान का तरीका भी बदलता है। आगरा में जलपान दिवस मनाने का पूरे भारत में बहुत ही अलग व अनूठा तरीका है। आगरा से संबंध रखने वाले हर व्यक्ति की जानकारी में होगा की आगरा के धनाडय व सेठ लोगों द्वारा शहर से दूर अपनी आराम, मौज-मस्ती, कुश्ती और दंगल का मजा लेने के लिए बगीची बनाई गई थी, जिसमें वह हर छुट्टी के दिन या उत्सव के दिन परिवार और मित्रों के साथ जाकर तरह-तरह के व्यंजन का आनंद खेल की मस्ती के बाद लेते थे।

 7 दशक पुरानी है ये परंपरा

राष्ट्रीय जलपान या जल ग्रहण दिवस का यह प्रमाणिक वर्ष तो नहीं मिलता है कि यह कब से मनाया जाने लगा है, परंतु आगरा के पुराने वासियों का कहना है की यह परंपरा करीब 7 दशक पुरानी है। जब यार दोस्तों के साथ आगरा की बगीची जैसे बान वाली बगीची ,आटे वाली बगीची, हलवाई की बगीची, मुंबई वालों की बगीची, सिकंदरा , मरियम टोम , ताजमहल के पीछे , सिकंदरा कैलाश मंदिर, बल्केश्वर घाट या मंदिर, पोइया घाट आदि यह कुछ जैसी जगहों पर रसोईये या हलवाई भाइयों की व्यवस्था करके इन बगीचीयों में परिवार व दोस्तों व सम्बन्धी के साथ जलपान का आनंद लेने जाया करते थे। वहां पर तरह-तरह की प्रतियोगिताओं में भाग लेते थे।

फ्रेश होकर दाल बाटी का सेवन करते हैं आगरावासी

जलपान ग्रहण की मस्ती और आँखों देखा हाल का आप भी मस्ती के सरोवर में डूबे। तमाम तरह की दिनचर्या जैसे सुबह नाश्ते में बेड़ई जलेबी फिर कच्चे कोयले के सिके भुट्टे ,फल की चाट ,र्मूँगफली यह हमेशा चलती रहती थी|बच्चे लोग अपनी मस्ती में मस्त रहते हैं और परिवार की महिलाएं खाना बनाने की व्यवस्था करने में और अपने गुट्टे खेलना अंताक्षरी खेलना ,झूला झूलना आदि में व्यस्त रहती हो। परिवार के पुरुष सदस्य ट्यूबेल में नहाकर फ्रेश होकर फिर दाल बाटी का सेवन किया जाता था। सबसे विशेष बात यह थी की दाल बाटी के सेवन में परिवार और इष्ट मित्रों द्वारा ही बहुत ही आग्रह अनु विनय करके भोजन कराया जाता था।

महिलाएं भी परिवार के साथ आयोजन में भाग लेती हैं

प्राचीन समय में महिलाओं का उतना हस्तक्षेप नहीं था, लेकिन करीब चार दशक से महिलाएं भी परिवार के साथ आयोजन में भाग लेकर उत्सव को चार चांद लगाती थी ।आज शहर की तमाम फार्म हाउस में इस तरीके के जुलाई महीने में अनेक जलपान ग्रहण के आयोजन होते हैं |जो जीवन में आई हुई एक नीरसता को ना केवल खत्म करते हैं बल्कि उसमें उमंग पैदा करके आदमी तरोताजा होने के बाद फिर अपने व्यापार और परिवार के साथ एक अच्छा जीवन व्यतीत करता है।

बागचियां भी खत्म होती जा रही है

पिछले दो दशकों से अब इस के रूप में कुछ परिवर्तन आ गया है कहते हैं समय चक्र के साथ बदलाव आता है ऐसे में यह बगीचीयों की जगह फार्म हाउसों ने ले ली। फार्म हाउस कल्चर में डाल बाटी का आयोजन काफी हद तक बदल लिया है। अब नान रोटी के दावत में परोसी जाने वाली 56 तरीके के व्यंजन बनने लगे हैं। किसी जमाने में भांग की ठंडाई पी जाती थी आज उसकी जगह बीयर और शराब ने ले ली है परंतु आयोजन आज भी बरकरार हैं। बागचियां भी खत्म होती जा रही है।

 नहा कर जब इसको खाया जाता 

एक बात विशेष है यहां पर यह दाल बाटी मूल रूप से राजस्थान का भोजन है |इसको बनाने की अपनी एक विशेष तरीका व कला है |इसे कंडे में बनाया जाता है| और फिर देसी घी में डुबोकर उरद या मिक्स दाल ,चूरमे के लड्डू के साथ इसे खाया जाता है| अगर इसे खाने से पहले अगर हम शारीरिक वर्जिश नहीं करते हैं तो इसे पचाना भी थोड़ा सा कठिन होता है इसीलिए पहले कुश्ती ,कबड्डी ,खो-खो ,क्रिकेट जैसे खेल खेलते है। प्लेइंग कार्ड से अपनी हर जीत का भाग्य आज़माते हैं| खेल के बाद वहां के ट्यूबवेल में नहा के अपने को तरोताजा करते थे। नहा कर जब इसको खाया जाता था तो इसका आनंद दुगना हो जाता था|

दाल बाटी का आनंद लें

आज का लेख सभी आगरा वालों को समर्पित है और सभी पाठक जिन्होंने बगीचियों में जाकर आनंद लिया है और लजीज भोजन के साथ दाल बाटी का आनंद लिया है| वह आज इस लेख को पढ़कर अपने पुराने दिनों में खो रहे होंगे।

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