BSP का जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव न लड़ने का दिखेगा 2022 के चुनाव पर भी असर
बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश के जिला पंचायत अध्यक्ष में चुनाव में दूरी बना ली।
BSP: बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) ने उत्तर प्रदेश के जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में दूरी बना ली। जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के लिए बीएसपी (BSP) की ओर एक भी प्रत्याशी नहीं उतारा गया है। बसपा (BSP) सुप्रीमो मायावती (Mayawati) ने सोमवार को प्रेस कांफ्रेस कर जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव न लड़ने का ऐलान किया और सरकार पर आरोप लगाया कि यूपी के जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में सरकार अपनी सत्ता का दुरुपयोग कर रही है।
मायावती ने सरकार पर लगाया खरीद फरोख्त का आरोप
मायावती (Mayawati) ने पीसी करके योगी सरकार पर आरोप लगाया कि सरकार जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव समाजवादी पार्टी (Smajwadi Party) की तरह योगी सरकार सरकारी मशीनरी दुरुपयोग और खरीद फरोख्त करके चुनाव जीत रही है। मायावती ने कहा कि यदि जिला पंचायत अध्यक्ष का निपष्क्ष चुनाव होता तो जरुर बीएसपी (BSP) जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ती। मायावती (Mayawati) ने पार्टी के कार्यकर्ताओं, संगठन के पदाधिकारियों को निर्देश दिया कि वो अपना समय जिला पंचायत चुनाव में व्यर्थ करने के बजाय पार्टी को 2022 विधानसभा चुनाव के लिए संगठन को मजबूत बनाने के लिए ताकत लगाए।
जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव नहीं लड़ने से क्या होगें बसपा को नुकसान
पहले से ही टूट चुकी बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) का जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव न लड़ने का सीधा नुकसान बसपा को होगा। बीएसपी (Bahujan Samaj Party) के करीब 364 जिला पंचायत सदस्यों नें जीत हासिल की थी। लेकिन तब भी जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव नहीं लड़ने के बाद बीएसपी का एक भी जिला पंचायत अध्यक्ष न प्रदेश में होने से बसपा उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय पार्टी बनती जा रही है। जिसका प्रभाव बसपा को 2022 विधानसभा चुनाव में दिखने को मिल सकता है।
2015 के पंचायत चुनाव में बसपा (BSP) के चार जिला पंचायत अध्यक्षों ने जीत हासिल की थी, उस पंचायत चुनाव के बाद बीएसपी (Bahujan Samaj Party) ने 2017 विधानसभा चुनाव में 19 सीटों पर हासिल की थी। जिसके बाद अब बसपा (BSP) सुप्रीमो मायावती (Mayawati) का जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव न लड़ने का फैसला बीएसपी पार्टी (Bahujan Samaj Party) को और कमजोर करेगा।
जिला पंचायच चुनाव में जीत के बाद भी नहीं उतारा प्रत्याशी
पिछले दिनों बीएसपी के कद्दावर नेता विधायक रामअचल राजभर और लालजी वर्मा को पार्टी विरोधी गतिविधियों का हवाला देते हुए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। बसपा का गढ़ कहे जाने वाले अबेंडकरनगर जिले में जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव में दूसरी नबंर की पार्टी बनकर उभरी थी। इस जीत के बाद अबेंडकरनगर में निर्दलीय सदस्यों को जोड़कर बसपा का जिला पंचायत अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा था, वैसे ही ठीक गाजियाबाद में बसपा के पांच जिला पंचायत सदस्यों ने जीत हासिल की थी लेकिन बसपा ने अपना कोई प्रत्य़ाशी जिला पंचाय़त अध्यक्ष के लिए नहीं उतारा. जिसके बाद गाजियाबाद में भाजपा ने अपने चार जिला पंचायत सदस्यों ने जीत के साथ अपना जिला पंचायत अध्यक्ष बना लिया।
बसपा ने पिछले 10 सालों दर्जनों नेताओं को निकाला
पिछले 10 सालों बीएसपी (Bahujan Samaj Party) के दर्जनों कद्दावर नेताओं ने बीएसपी (BSP) का साथ छोड़ दिया है। 2017 विधान सभा चुनाव में बसपा के 19 विधायकों ने जीत हासिल की थी लेकिन बसपा सुप्रीमो ने 3 विधायको को पार्टी विरोधी गतिवधियों में संलिप्त होने का हवाला देते हुए निष्कासित कर दिया था, जबकि अभी हाल ही में बीएसपी के 9 विधायक नाराज चल रहे होने की खबर थी और सपा में शामिल होने की खबरें आ रही थी. ऐसे में अगर ये 9 विधायक भी बसपा को छोड़ सपा का दामन थाम लिए तो बीएसपी के विधायक अपना दल से भी कम हो जाएंगे। अपना दल के 9 विधायक हैं। हालांकि बसपा के अधिकारिक विधायकों की संख्या अभी 16 है। इसके बाद बसपा का जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव न लड़ने से पार्टी और संगठन को नुकसान हो सकता है।
आपको बता दें कि बसपा सरकार में मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक ने 2017 विधानसभा चुनाव के पहले बीएसपी छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। मायावती के सबसे विश्वसनीय, करीब और बीएसपी सरकार में मंत्री रहे नसीमुद्दीन सिद्दीकी को बसपा (BSP) सुप्रीमो मायावती ने 2017 मई में पार्टी से निकाल दिया। बीएसपी को 2022 विधानसभा चुनाव नुकसान देखने को मिल सकता है।