बुंदेलखंड: अधिकांश किसान कर रहे वर्षा आधारित खेती, झेलना पड़ रहा मुसीबत
उल्लेखनीय है कि बुंदेलखंड की भूमि पथरीली है। साथ ही भूमि में जीवांश कार्बन के साथ-साथ अन्य तत्वों की काफी कमी है। कहने को तो झांसी मंडल में कई बड़े-बड़े बांध हैं।
झाँसी: कहने को तो सरकार ने विभिन्न विभागों के माध्यम से बुंदेलखंड में खेतों की सिंचाई के लिए तमाम साधन उपलब्ध कराने का प्रयास किया है, परंतु यह संसाधन पर्याप्त नहीं हैं। इसकी वजह है कि अब भी बुंदेलखंड का किसान वर्षा आधारित खेती करता है। यानि जिस साल ठीक-ठाक वर्षा होती है तो किसान रबी की बुवाई कर लेता है अन्यथा खेत खाली रहते हैं। हम बात करें झांसी जनपद की तो यहां कई क्षेत्र तो सिंचाई के लिये पानी न मिलने पर बहुत कम बुवाई कर पाते हैं, नतीजा यह निकलता है कि किसान की दशा जस की तस रहती है।
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साथ ही भूमि में जीवांश कार्बन के साथ-साथ अन्य तत्वों की काफी कमी है
उल्लेखनीय है कि बुंदेलखंड की भूमि पथरीली है। साथ ही भूमि में जीवांश कार्बन के साथ-साथ अन्य तत्वों की काफी कमी है। कहने को तो झांसी मंडल में कई बड़े-बड़े बांध हैं। बेतवा सहित अन्य नदियां हैं। इन नदियों से लगभग 1236 किलोमीटर नहरों का जाल बिछा हुआ है। यहां राजकीय नलकूप की संख्या 180 है जबकि निजी नलकूपों की संख्या सरकारी नलकूपों की तुलना में बहुत ज्यादा 18826 है।
इसके अलावा यहां पम्पसैट, कुंओं, झालों, तालाब, पोखरों आदि से भी सिंचाई की जाती है। जहां तक बात करें कि सरकारी साधनों की तुलना में निजी साधनों से ज्यादा क्षेत्रफल में सिंचाई की जाती है। इसकी वजह है कि झांसी जनपद के समस्त ब्लॉक या ग्रामों तक नहरों की पहुंच नहीं है। बबीना क्षेत्र में तो सिंचाई के लिए पानी की हमेशा किल्लत रहती है। वहीं बड़ागांव में भी कमोबेश यही हालत है।
सरकारी साधन होने के बाद भी किसानों के खेत प्यासे रह जाते हैं
स्थिति यह है कि सरकारी साधन होने के बाद भी किसानों के खेत प्यासे रह जाते हैं, जिनकी पूर्ति करने के लिए किसान को प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करना पड़ता है। सम्पन्न किसान तो बोरिंग कराके भूमिगत जल को निकाल लेते हैं परंतु जो छोटे व गरीब किसान हैं वह पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर हैं, यानि जिस वर्ष बारिश होगी तो उनके खेतों की बुवाई हो जाएगी अन्यथा खेत खाली रहेंगे।
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सबसे ज्यादा परेशानी तो सीमांत और लघु सीमांत किसानों को है जिनके पास दो-तीन बीघा जमीन होती है ऐसे में वह न तो बोरिंग करा पाते हैं और न ही पम्पसैट लगा पाते हैं। उन्हें अपने खेत के समीप कुंओं, तालाबों और पोखरों पर निर्भर रहना पड़ता है। वैसे तालाब, पोखर और कुंए से पानी निकालना महंगा साबित होता है। पम्पसैट चलाने के लिए भी डीजल की व्यवस्था करनी पड़ती है। ऐसे में गरीब किसान पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर हो जाता है। यदि ठीकठाक बारिश हो गयी तो रबी की बुवाई हो जाती है अन्यथा खेत खाली रहते हैं और किसान कहीं मजदूरी तलाशने को निकल पड़ता है।
रिपोर्ट- बी.के.कुशवाहा
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