Hamirpur News: अनोखी परंपरा, यहां होती है दशहरे पर रावण की पूजा, रहा है बहुत करीबी नाता

दशहरा पर्व पर जहां पूरे देश में रावण का दहन होता है वहीं हमीरपुर के एक गाँव में होती है दशानन की पूजा

Report :  Ravindra Singh
Published By :  Raghvendra Prasad Mishra
Update:2021-10-15 17:40 IST

रावण की पूजा के लिए एकत्रित लोग (फोटो-न्यूजट्रैक)

Hamirpur News: हमीरपुर (Hamirpur) जनपद के राठ क्षेत्र के एक गाँव में होती है दशानन (रावण) की पूजा (ravan ki pooja), अनोखी परम्परा। शारदीय नवरात्रि (Sharadiya Navratri) के दसवें दिन विजयदशमी (vijayadashmi) का त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। असत्य पर हुई सत्य की जीत को लेकर पूरे देश में रावण (ravan) के पुतले के दहन की भी परंपराएं चली आ रही हैं। विजयदशमी (vijayadashmi) के दिन ही भगवान राम ने रावण का वध किया था। लेकिन परंपराओं को दरकिनार कर देश में इसके विपरीत की भी कुछ परंपराएं प्रचलित हैं। आज भी देश के कुछ हिस्सों में दशानन की पूजा की जाती है। इसी तरह मुस्करा थाना क्षेत्र के बिहुनी गांव में भी दशानन की पूजा की जाती है। गांव के मध्य में मंदिर प्रांगण में दशानन की विशाल प्रतिमा स्थपित है। प्रतिमा के दस मुंह व 20 हाथ बने हुए हैं।

रावण की पूजा ग्रामीणों द्वारा वर्ष में दो बार की जाती है। दशानन की पूजा को लेकर ग्रामीणों में भी दो मत बने हुए हैं। लेकिन इतिहास के पन्नों में दफन दशानन पूजा के इतिहास को परम्परा मानते हुए ग्रामीण आज भी दशानन की पूजा करते आ रहे हैं।

ग्रामीणों की माने तो यहां बीते 400 सालों से भी ज्यादा समय से दशानन की पूजा की जाती आ रही है। ग्रामीण बताते हैं कि रावण का कोई विशेष पारिवारिक संबंध इस गांव से होने के कारण उनके पूर्वजों ने रावण की मूर्ति की स्थापना की थी और उनकी मूर्ति की पूजा भी करते चले आ रहे हैं। बताया जाता है कि पौष माह में गांव में भव्य रामलीला का आयोजन भी किया जाता है और पौष माह की पूर्णमासी को सुबह से ही दशानन की ऐतिहासिक प्रतिमा को सजा कर पूजा की जाती है।


रामायण के पात्रों में रावण के वध की परंपरा भी निभाई जाती है। बाहरी लोगों से भरा यह गांव दशानन की मूर्ति के संबंध में और उनकी पूजा के संबंध में कोई स्पष्ट मत नहीं रख पाता है। पूछने पर गांव के ग्रामीण बताते हैं की जिस तरीके से अन्य देवी देवताओं की पूजा की जाती है। उसी तरह गांव में रावण की भी पूजा की जाती है।

जानकारी देते हुए गांव के मुनेश कुमार बताते हैं साल में दो बार रावण की पूजा होती है। पौष माह में भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है। दशहरा में भी इसकी पूजा होती है। ग्रामीण नारायण दास वर्मा बताते हैं कि बीते करीब चार सौ सालों से भी ज्यादा समय से गांव में रावण की पूजा चली आ रही है। पूजा क्यों की जाती है इसके राज इतिहास के पन्नों में दफन हो चुके हैं। बस ग्रामीण परम्परा को आगे बढ़ाते हुए पूर्वजों के पदचिन्हों पर चलते हुए पूजा करते आ रहे हैं। बताया जाता है कि चार पीढ़ियों और करीब चार सौ साल से ग्रामीण इस परंपरा को निभा रहे हैं।

आज दशहरा वाले दिन भी ग्रामीण रावण की पूजा करेंगे। ग्रामीणों के मतों में मतभेद और परम्परायें बिहुनी में दफन एक बड़े इतिहास की तरफ भी इशारा करतीं हैं। माना जाता है दशानन का इस गांव से कोई बेहद पुराना नाता रहा है। लिखित न होने के कारण इतिहास तो खत्म हो गया लेकिन देखा देखी परम्परायें बरकरार हैं।

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