Jhansi: बुविवि में नियुक्त एसोसिएट प्रोफेसर की अवैध या फर्जी नियुक्ति? दो स्थानों पर दो पदों पर हैं कार्यरत

Jhansi Latest News In Hindi: बुन्देलखंड विश्वविद्यालय (Bundelkhand University) में हिंदी विभाग में नियुक्त एसोसिएट प्रोफेसर की अवैध और फर्जी नियुक्ति का मामला सामने आया है।

Report :  B.K Kushwaha
Published By :  Shreya
Update:2022-02-14 19:57 IST

बुन्देलखंड विश्वविद्यालय (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

Jhansi Latest News In Hindi: बुन्देलखंड विश्वविद्यालय (Bundelkhand University) में हिंदी विभाग में नियुक्त एसोसिएट प्रोफेसर की अवैध और फर्जी नियुक्ति का मामला प्रकाश में आया है। यह व्यक्ति दो स्थानों पर दो पदों पर स्थाई रुप से कार्यरत है। यह विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में 19 अक्टूर 2016 को अपरान्ह काल से एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। इस पद पर नियुक्ति के लिए बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय ने Recruitment Notice 23 अप्रैल 2016 जारी किया था, जो 23 अप्रैल 2016 को यूनिवर्सिटी की वेबसाइट www.bu.jhansi.ac.in और www.bujhansi.org पर अपलोड किया गया। 

नियम कानूनों को ताक पर रखकर हिंदी विभागाध्यक्ष बनाया गया?

उस समय एसोसिएट प्रोफेसर इस पद के लिए न्यूनतम अर्हता और योग्यता नहीं रखते थे क्योंकि नियमानुसार विज्ञापन जारी होने की तिथि को यूजीसी० के नियमानुसार नियुक्ति हेतु आवश्यक एपी०आई० में कैपिंग व्यवस्था लागू थी तथा एसोसिएट प्रोफेसर के पद हेतु कम से कम एक शोधार्थी की पीएचडी अवॉर्ड होनी अनिवार्य थी, लेकिन उस समय तक शोध निदेशक ही नहीं थे, इसलिए उनके मार्गदर्शन में पीएचडी0 अबॉर्ड होने का प्रश्न ही नहीं उठता।

फिर भी तत्कालीन कुलपति ने अपने गांव के रहने वाले सजातीय की सभी नियम कानूनों को ताक पर रखते हुए नवस्थापित बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग का वरिष्ठतम एसोसिएट प्रोफेसर और हिंदी विभागाध्यक्ष नियुक्त कर दिया।

हाईस्कूल अंकतालिका हो सकती हैं फर्जी प्रतीत?

यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त होने के बाद डॉ. बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ (Babasaheb Bhimrao Ambedkar University, Lucknow) में एसोसिएट प्रोफेसर पद हेतु किया गया आवेदन इसी आधार पर खारिज कर दिया गया था कि यूजीसी० के नियमानुसार एपीआई0 की कैपिंग लागू होने के कारण एसोसिएट प्रोफेसर के पद हेतु वह अहं नहीं हैं क्योंकि उनके मार्गदर्शन में एक भी शोधार्थी की उस समय तक पीएचडी० अवॉर्ड नहीं थी।

उक्त व्यक्ति के बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर के आवेदन पत्र में भी उनके मार्गदर्शन में पीएचडी0 अवॉर्ड होने का कोई उल्लेख नहीं है। इसके अतिरिक्त उक्त व्यक्ति ने हाई स्कूल की जो अंकतालिका लगाई है, वह संदिग्ध और फर्जी प्रतीत होती है क्योंकि यह लगभग अपठनीय और अस्पष्ट है तथा इन्होंने हाईस्कूल की सनद भी जमा नहीं की है, इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त प्रोफेसर ने कूटरचित कर जालसाजी द्वारा हाईस्कूल की अंकतालिका तैयार की है, जिसकी जांच कराई जानी चाहिए|

शिक्षकों के प्रपत्रों की जांच कराई तो प्रोफेसर चले गए छुट्टी पर?

उक्त प्रोफेसर 30 मार्च 2000 से 19 अक्तूबर 2016 को पूर्वान्ह काल तक श्री भगवान महावीर पीजी कालेज, पावानगर, फाजिलनगर, कुशीनगर में कार्यरत थे और स्थाई पद पर कार्य कर रहे थे, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी के तत्कालीन कुलपति के मनमाने आदेश पर उक्त प्रोफेसर को बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी के तत्कालीन कुलसचिव के पत्रांक बुवि०/ आरसी0/2017/4395 दिनांक 08 दिसंबर 2017 के कार्यालय आदेश द्वारा दोबारा स्थाई किए जाने का तुगलकी आदेश जारी कर दिया, जबकि नियमानुसार एक व्यक्ति दो स्थानों पर स्थाई सेवा नहीं कर सकता है।

नियमानुसार स्थाई हो जाने के बाद उक्त प्रोफेसर को श्री भगवान महावीर पीजी कालेज, पावानगर, फाजिलनगर, कुशीनगर की सेवा से तत्काल 09 दिसंबर 2017 को त्यागपत्र दे देना चाहिए था, किन्तु उन्होंने आज तक वहाँ त्यागपत्र नहीं दिया है बल्कि दिनांक 18 अक्तूबर 2021 को अवैतनिक अवकाश के पाँच वर्ष पूरे हो जाने के बाद भी श्री भगवान महावीर पीजी कालेज, पावानगर, फाजिलनगर, कुशीनगर के पत्रांक एसबीराज-23/2021-22 दिनांक 22/10/2021 के माध्यम से अवैध ढंग से अपना असाधारण अवैतनिक विशेष अवकाश 19 अक्तूबर 2021 से 18 अक्तूबर 2022 तक के लिए बढ़ाने का पत्र जारी करवा लिया है।

नियमानुसार पाँच वर्ष पूरे हो जाने के बाद अवैतनिक अवकाश नहीं दिया जा सकता, अतः यह पत्र भी संदिग्ध और फर्जी प्रतीत होता है। यह भी सूच्य है कि जब उत्तर प्रदेश शासन ने उच्च शिक्षा से जुड़े शिक्षकों के प्रपत्रों की जांच कराई थी, उस समय अपनी इन कमियों को छुपाने के लिए उक्त प्रोफेसर अवकाश पर चले गए और जुलाई 2020 में जांच समिति के सामने पेश नहीं हुए और बाद में औने-पौने तरीके से उनके प्रपत्रों को बिना देखें तत्कालीन जांच समिति ने उक्त प्रकरण निस्तारित कर दिया।

आखिर क्यों नहीं कराई जा रही है योग्यता और अर्हता की जांच

उक्त प्रोफेसर ने बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर से प्रोफेसर में प्रोन्नति और प्रोफेसर पद पर सीधी नियुक्ति के लिए फार्म भरा है। चूंकि उक्त प्रोफेसर की हाईस्कूल की मार्कशीट जाली प्रतीत होती है, इनकी एसोसिएट प्रोफेसर में नियुक्ति गलत और फर्जी है तथा अवैतनिक अवकाश हेतु निर्धारित अधिकतम पाँच वर्ष पूर्ण हो जाने के बाद भी अवैध रूप से प्रोफेसर बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय , झाँसी में कार्य कर रहे हैं तथा ये दो स्थानों पर नियम विरुद्ध ढंग से स्थाई आधार पर कार्यरत हैं। इसलिए उक्त प्रोफेसर की उस समय की योग्यता और अर्हता की जांच आवश्यक है।

जांच पूरी होने तक उक्त प्रोफेसर को सदस्य, विद्या परिषद, समन्वयक एन०एस०एस०, प्रभारी, मीडिया और और निदेशक दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ आदि सभी पदों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से कार्यमुक्त रखना चाहिए। इनकी प्रोन्नति पर विचार नही किया जा सकता। गलत और अवैध तरीके से बुंदेलखंड विश्वविद्यालय मे होने वाली नियुक्तियां और इन पदों के दुरुपयोग से शैक्षणिक संस्थाओ की खराब हो रही छवि को रोकना बहुत आवश्यक है अन्यथा योग्य एवं कर्मठ शिक्षकों का अकाल पड़ते देर नही लगेगी। 

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