लखनऊ: आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी को नये सिपहसालारों की जरूरत है। उत्तर प्रदेश के लोकसभा सांसदों के कामकाज तथा क्षेत्रीय प्रभाव को लेकर कराए गए सर्वेक्षण में भाजपा की स्थिति काफी निराशाजनक है। इस स्थिति के कारण भाजपा को आधे से ज्यादा स्थानों पर नये सांसद प्रत्याशियों की तलाश है। भाजपा के ज्यादातर सांसद अपने क्षेत्रीय प्रभाव तथा कामकाज को लेकर 15 से 20 प्रतिशत तक ही अंक हासिल कर पाए हैं। यूपी के सभी बड़े नेता तथा सांसद भी क्षेत्रीय जनता की अपेक्षाओं पर 25 से 30 प्रतिशत के ही दायरे में है। विभिन्न दलों के बड़े नामचीन नेता चुनाव भले ही जीते परन्तु सांसद के रूप में वे जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं।
सांसदों की कमजोरी तथा नयी चुनावी रणनीति के तहत भाजपा ने उत्तर प्रदेश के एक दर्जन मंत्रियों को लोकसभा चुनाव लड़ाने की तैयारी की है। इसमें से ज्यादातर मंत्रियों को क्षेत्रीय स्तर पर चुनावी तैयारी करने का निर्देश दे दिया गया है। कमजोर सीटों पर भाजपा ने इस बार नये और अच्छी छवि के नेताओं को मैदान में उतारने की तैयारी की है। पूर्वी यूपी में भाजपा की स्थिति अत्यन्त कमजोर मानी जा रही है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्वांचल के आजमगढ़, वाराणसी तथा मिर्जापुर से चुनावी जनसभाएं शुरू कीं।
अब पश्चिम व मध्य यूपी में जुटेंगे मोदी
अब दूसरे चरण में प्रधानमंत्री पश्चिम एवं मध्य यूपी में जनसभाएं कर चुनाव का आगाज करने वाले हैं। इसके साथ ही भाजपा ने संगठनात्मक स्तर पर भी तैयारियां शुरू कर दी हैं।चुनावी तैयारियों में भाजपा अपने संगठनात्मक ढांचे तथा बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं पर ज्यादा विश्वास कर रही है। यही वजह है कि नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए भाजपा ने ब्लाक स्तर पर पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं की तैयारी करने का निर्णय लिया है। इन कार्यकर्ताओं को सरकारी तौर पर 30 हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय भी दिया जाएगा। इसके लिए योगी सरकार के मंत्रिमंडल ने मंजूरी भी दे दी है। भाजपा पहले भी संगठन स्तर पर विभाग संगठन मंत्री तथा अन्य स्तर पर पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं की तैनाती करता था, परन्तु कुछ दिनों पहले इन सामाजिक कार्यकर्ताओं की वसूली तथा संगठन में गुटबाजी को बढ़ावा देने की शिकायतों के बाद हटा दिया गया। इन पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को भाजपा की तरफ से हर तरह की सुविधाएं मुहैया करायी जाती थीं।
कई क्षेत्रों में पार्टी की स्थिति कमजोर
चुनाव पूर्व सर्वे रिपोर्ट में भाजपा की जिन संसदीय क्षेत्रों में स्थिति कमजोर मानी जा रही है, उनमें सहारनपुर, कैराना, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर, सम्भल, अमरोहा, आंवला, खीरी, धौरहरा, सीतापुर, हरदोई, मिश्रिख, उन्नाव, प्रतापगढ़, इटावा, फर्रुर्खाबाद, झांसी, बांदा, कौशाम्बी, फूलपुर, इलाहाबाद, बाराबंकी, अम्बेडकरनगर, बहराइच, कैसरगंज, श्रावस्ती, गोण्डा, डुमरियागंज, बस्ती, संतकबीरनगर, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, लालगंज, आजमगढ़, घोसी, बलिया, जौनपुर, मछलीशहर, गाजीपुर तथा चन्दौली की सीटें हैं। इसके अलावा भाजपा को कानपुर, देवरिया, रामपुर झांसी से नये सांसद प्रत्याशी की तलाश है।
कानपुर से डा.मुरली मनोहर जोशी, देवरिया से कलराज मिश्र तथा रामपुर से नेपाल सिंह भाजपा के वरिष्ठ सदस्यों की लिस्ट में शामिल हो गये हैं जबकि झांसी से उमा भारती ने चुनाव लडऩे से मना कर दिया है। सुलतानपुर से वरुण गांधी के भी क्षेत्र बदलने की चर्चा चल रही है। वैसे भी वरुण भाजपा की बागी टीम में है। आजमगढ़ रमाकान्त यादव को लेकर भी भाजपा नेतृत्व सहज नहीं है। विधानसभा चुनाव में रमाकान्त ने अपनी बहू को बागी बनाकर चुनाव लड़ाया था।
कई मंत्रियों को उतारने की रणनीति
भाजपा ने लोकसभा चुनाव में अपने कई तेजतर्रार मंत्रियों को मैदान में उतारने की रणनीति बनायी है। इसमें स्वामी प्रसाद मौर्य, बृजेश पाठक, सूर्य प्रताप शाही, धर्मपाल सिंह, सतीश महाना, रीता बहुगुणा, दारा सिंह, रमापति शास्त्री, राजेन्द्र प्रताप सिंह उर्फ मोती सिंह, सिद्धार्थनाथ सिंह, ओम प्रकाश राजभर, उपेन्द्र तिवारी आदि के नाम चर्चा में है।
सोनिया को कड़ी टक्कर देने की तैयारी
इसके साथ ही भाजपा कन्नौज, फिरोजाबाद और बंदायू को भी अपनी जीत की परिधि में लाने की चुनावी रणनीति बना रही है। कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के लोकसभा चुनाव न लडऩे की स्थिति में भाजपा कड़ी टक्कर देने के लिए प्रत्याशी तैयार कर रही है। भाजपा के लिए सबसे बड़ी मुसीबत गोरखपुर, फूलपुर तथा कैराना सीटों के प्रत्याशियों के चयन को लेकर है। उपचुनाव में भाजपा को इन तीनों सीटों से हार का सामना करना पड़ा था। गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ के अलावा अन्य किसी के जीत की संभावना कम जतायी जा रही है जबकि वह यूपी के मुख्यमंत्री हैं। इसी प्रकार फूलपुर के केशव मौर्य उपमुख्यमंत्री है।
मौर्य की क्षेत्र में छवि भी खराब है। कैराना से हुकुम सिंह के न रहने पर उनकी बेटी राजनीतिक धरोहर बचाने में नाकामयाब रहीं। गाजीपुर के सांसद मनोज सिनहा के क्षेत्र में तमाम काम करने के बाद भी जातीय संतुलन गड़बड़ा रहा है। कई सांसदों की क्षेत्र में स्थिति विवादित है। बहराइच की सावित्री बाई फूले, इटावा के अशोक कुमार दोहरे तथा हाथरस के राजेश कुमार पार्टी के खिलाफ बगावती तेवर दिखा चुके हैं। सहयोगी दल में अपना दल के प्रतापगढ़ के सांसद हरिबंश सिंह भी अलग लाइन लगाकर भाजपा से अपना पत्ता साफ करा चुके है।