Caste Census Politics: जाति जनगणना पर गरमाई यूपी की राजनीति, विपक्ष के अलावा बीजेपी के सहयोगी दलों ने भी उठाई मांग
Caste Census Politics: जातीय जनगणना के आंकड़े से यूपी-बिहार के ओबीसी नेताओं के चेहरे पर रौनक आ गई है। आम चुनाव से पहले उन्हें सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एक प्रभावी हथियार मिलता नजर आ रहा है।;
Caste Census Politics in UP (Photo: social media )
Caste Census Politics: सोमवार को बिहार सरकार द्वारा जाति जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करने के साथ ही देश की राजनीति में एक नया चैप्टर खुल गया। बीते 24 घंटे में पूरी राजनीति इसी के ईद-गिर्द घूमती नजर आ रही है। जातीय जनगणना के आंकड़े से यूपी-बिहार के ओबीसी नेताओं के चेहरे पर रौनक आ गई है। आम चुनाव से पहले उन्हें सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एक प्रभावी हथियार मिलता नजर आ रहा है।
बिहार के बाद अब यूपी में जातीय जनगणना कराने की मांग जोड़ पकड़ने लगी है। अभी तक सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव अपनी रैलियों और कार्यक्रमों में इस मांग को उठाया करते थे। लेकिन अब कांग्रेस, बसपा के अलावा बीजेपी के सहयोगी दल भी उनके सूर-सूर में मिलाते नजर आ रहे हैं। जाति जनगणना को लेकर प्रदेश में सरकार चला रही भाजपा फिलहाल बैकफुट पर नजर आ रही है। पार्टी की ओर से इस पर कुछ अधिक नहीं बोला जा रहा।
अखिलेश यादव बोले पीडीए ही भविष्य की राजनीति
बिहार में जाति आधारित जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक होने के बाद सबसे अधिक हौंसले सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के बुलंद हैं। जो राजद, जदयू की तर्ज पर यूपी में पिछड़ों की सबसे बड़ी पार्टी मानी जाती है। बीजेपी ने पिछड़ों के इस वोटबैंक में सेंध जरूर लगाई है लेकिन अब भी समाजवादी पार्टी इन तबके में खासी मजबूत है। बीजेपी के आक्रमक हिंदुत्व से लड़ने के लिए पूर्व सीएम अखिलेश यादव आने वाले समय में प्रदेश में इसे बड़ा मुद्दा बना सकते हैं। उन्होंने बिहार में हुए जाति जनगणना के आंकड़े पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अब ये निश्चित हो गया है कि PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) ही भविष्य की राजनीति की दिशा तय करेगा।
मायावती भी कर चुकी हैं समर्थन
पूर्व सीएम और बसपा सुप्रीमो मायावती भी जाति आधारित जनगणना की मांग का समर्थन कर चुकी हैं। उन्होंने कहा था कि ओबीसी समाज की आर्थिक, शैक्षणिक व सामाजिक स्थिति का सही आकलन कर उसके हिसाब से विकास योजना बनाने के लिए बिहार द्वारा कराई जा रही जातीय जनगणना को को पटना हाईकोर्ट द्वारा पूर्णतः वैध ठहराए जाने के बाद अब सबकी निगाहें यूपी पर टिकी हैं कि यहां यह जरूर प्रक्रिया कब ? मायावती ने यूपी के साथ-साथ देश में भी जातीय जनगणना कराने की मांग की थी। उन्होंने इसे लेकर केंद्र में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधा था।
कांग्रेस भी आक्रमक ढंग से कर रही समर्थन
यूपीए सरकार के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर जाति आधारित जनगणना कराने की मांग पर आनाकानी करने वाली कांग्रेस के रूख में भी बड़ा बदलाव हुआ है। यूपी कांग्रेस ने आक्रमक ढंग से जातीय जनगणना का समर्थन करते हुए प्रदेश में इसे कराए जाने की मांग की है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि जातीय जनगणना हर हाल में होनी चाहिए ताकि उसी हिसाब से आगे की रणनीति बनाई जा सके। कांग्रेस लगातार इसकी मांग कर रही है। पार्टी जातीय जनगणना कराने की मांग को लेकर सम्मेलन करा रही है। दरअसल, 2011 में हुए राष्ट्रीय जनगणना में जाति की गणना हुई थी लेकिन तत्कालीन कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने इसे जारी नहीं किया था। जिसे बाद में अब तक मोदी सरकार ने भी सार्वजनिक नहीं किया है।
एनडीए में भी जोर पकड़ रही मांग
बीजेपी के सामने विपक्ष के अलावा अपनों की भी चुनौती है। जातीय जनगणना के मुद्दे पर उसके अपने सहयोगी भी विपक्ष की भाषा बोल रहे हैं। केंद्रीय मंत्री और अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल का कहना है कि उनकी पार्टी हमेशा से जातीय जनगणना कराने की पक्षधर रही है और इस मुद्दे को सड़क से लेकर संसद तक उठाती रही है। वहीं, ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा ने भी जातीय जनगणना का समर्थन किया है। पार्टी के प्रवक्त अरूण राजभर ने कहा कि सुभासपा का गठन ही इस मुद्दे की लड़ाई को लेकर हुआ है। पार्टी कई बार विधानसभा में इस मुद्दे को उठा चुकी है।
हालांकि, यूपी में बीजेपी की एक अन्य सहयोगी निषाद पार्टी का रूख थोड़ा अलग है। निषाद पार्टी के प्रमुख और कैबिनेट मंत्री संजय निषाद का कहना है कि नीतीश सरकार जातीय जनगणना के नाम पर जातियों को भरमाना चाहती है। इनके वोट को बांटकर ओबीसी और एससी, एसटी की संख्या को छोटा करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि संवैधानिक रूप से गिनती होनी चाहिए। यदि जातीय जनगणना कराना है तो साल 1961 के सेंसर के आधार पर जातीय जनगणना होनी चाहिए।
जातीय जनगणना पर चुप्पी लेकिन विपक्ष पर हमला
प्रदेश और देश में जातीय जनगणना कराने को लेकर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी विपक्ष के निशाने पर है। बीजेपी फिलहाल इस मुद्दे पर कुछ भी खुलकर बोलने से परहेज कर रही है। इसकी मांग कर रही विपक्षी पार्टियों पर भाजपा ने पलटवार किया है। प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने कहा कि बिहार सरकार ने किस नियम के आधार पर जातीय जनगणना कराई। उन्होंने कहा कि सपा, कांग्रेस और राजद परिवारवाद की राजनीति करते हैं। विपक्षी दलों के नेता जातीय जनगणना के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं। ये दल बताएं कि इनकी सरकारों में पिछड़ों और दलितों के उत्थान के लिए क्या किया गया।
सपा के सांसद ने कर दिया विरोध
एक तरफ जहां सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव समेत उनकी पूरी पार्टी बिहार में हुए जातीय जनगणना का समर्थन कर रही है। वहीं, उन्हीं की पार्टी के एक सीनियर सांसद ने इसका विरोध किया है। संभल से सपा के लोकसभा सांसद शफ़ीक़ुर्रहमान बर्क़ ने इसका विरोध करते हुए कहा कि अभी इसकी क्या जरूरत थी। इसे आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए लाया गया है। ये लोग लोकसभा चुनाव को देखते हुए धंधा कर रहे हैं। इससे काम नहीं चलेगा।
बता दें कि सोमवार को बिहार सरकार ने जातिगत गणना की रिपोर्ट जारी कर दी। इस रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में ईबीसी 36.01 प्रतिशत, ओबीसी 27 प्रतिशत, दलित 19.65 प्रतिशत, एसटी 1.68 प्रतिशत और सवर्ण 15.52 प्रतिशत हैं। पिछड़ों में सबसे बड़ी आबादी यादवों 14.26 प्रतिशत है। राज्य में हिंदुओं की आबादी 81.99 प्रतिशत और मुसलमानों की आबादी 17.7 प्रतिशत है।