किसानों व घरेलू उपभोक्ताओं को गुमराह कर रही केंद्र सरकार: पावर फेडरेशन

आल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने केंद्र सरकार द्वारा निजीकरण के बाद उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली देने के वादे को खारिज करते हुए कहा है कि निजीकरण, किसानों और आम घरेलू उपभोक्ताओं के साथ धोखा है और निजीकरण के बाद बिजली की दरों में बेतहाशा वृद्धि होगी।

Update: 2020-05-17 10:13 GMT

लखनऊ: आल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने केंद्र सरकार द्वारा निजीकरण के बाद उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली देने के वादे को खारिज करते हुए कहा है कि निजीकरण, किसानों और आम घरेलू उपभोक्ताओं के साथ धोखा है और निजीकरण के बाद बिजली की दरों में बेतहाशा वृद्धि होगी।

फेडरेशन ने कोविड -19 संक्रमण के दौरान लाकडाउन का फायदा उठा निजीकरण करने की निंदा करते हुए फेडरेशन ने इसे देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताया चेतावनी दी है कि अगर बिजली वितरण के निजीकरण का निर्णय वापस न लिया गया तो नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लॉयीज एन्ड इंजीनियर्स (एनसीसीओईईई) के आह्वान पर देश भर के तमाम 15 लाख बिजली कर्मचारी, जूनियर इंजीनियर और अभियंता निजीकरण के विरोध में राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने के लिए बाध्य होंगे।

ऑल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने रविवार को कहा कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा विद्युत् वितरण के निजीकरण की घोषणा में कहा गया है कि नई टैरिफ नीति में सब्सिडी और क्रास सब्सिडी समाप्त कर दी जाएगी और किसी को भी लागत से कम मूल्य पर बिजली नहीं दी जाएगी।

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गरीबी रेखा के नीचे और 500 यूनिट प्रति माह बिजली खर्च करने पर सब्सिडी

उन्होंने कहा कि अभी किसानों, गरीबी रेखा के नीचे और 500 यूनिट प्रति माह बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को सब्सिडी मिलती है। जिसके चलते इन उपभोक्ताओं को लागत से कम मूल्य पर बिजली मिल रही है। अब नई नीति और निजीकरण के बाद सब्सिडी समाप्त होने से स्वाभाविक तौर पर इन उपभोक्ताओं के लिए बिजली महंगी होगी।

आंकड़े देते हुए दुबे ने बताया कि बिजली की लागत का राष्ट्रीय औसत 06.73 रुपये प्रति यूनिट है और निजी कंपनी द्वारा एक्ट के अनुसार कम से कम 16 प्रतिशत मुनाफा लेने के बाद 08 रुपये प्रति यूनिट से कम दर पर बिजली किसी को नहीं मिलेगी।

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किसान और घरेलू उपभोक्ता को देना होगा इतना बिल

इस प्रकार एक किसान को लगभग 6000 रुपये प्रति माह और घरेलू उपभोक्ताओं को 6000 से 8000 रुपये प्रति माह तक बिजली बिल देना होगा। उन्होंने कहा कि निजी वितरण कंपनियों को कोई घाटा न हो इसीलिये सब्सिडी समाप्त कर प्रीपेड मीटर लगाए जाने की योजना लाई जा रही है।

अभी सरकारी कंपनी घाटा उठाकर किसानों और उपभोक्ताओं को बिजली देती है। उन्होंने कहा कि सब्सिडी समाप्त होने से किसानों और आम लोगों को भारी नुक्सान होगा जबकि क्रास सब्सिडी समाप्त होने से उद्योगों और बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को लाभ होगा।

उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की कि निजीकरण का निर्णय व्यापक जनहित में वापस लिया जाये अन्यथा बिजली कर्मी आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे।

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