राजधानी में क्रेन पर झूलता बचपन, दावों में उलझा प्रशासन
यह तस्वीरें राजधानी लखनऊ के सबसे पॉश इलाके हजरतगंज चौराहे की हैं। जहां एक बच्चे को टोचिंग क्रेन पर लदी गाड़ियों को संभालने में लगाया गया है। तस्वीरें इस बात की गवाह हैं कि एक छोटी सी चूक इस बच्चे के लिए जानलेवा हादसे का सबब हो सकती हैं। बावजूद इसके गाड़ी के ड्राइवर ने नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए इस बच्चे को खड़ा कर काम पर लगा दिया।
लखनऊ: जिस उम्र में बच्चों के नाजुक कंधों पर स्कूल का बस्ता, हाथों में खिलौने और आंखों में हर पल कुछ इनोवेटिव करने की लालसा रहती है। उस उम्र में बच्चों को टोचिंग क्रेन पर लदी गाड़ियों को संभालने में लगाया जा रहा है। यह फोटोज बाल श्रम को रोकने के लिए प्रशासन के द्वारा किए जा तमाम दावों की पोल खोल रही हैं। सड़कों पर अपनी जान जोखिम में उठाकर बोझ उठाता इनका बचपन प्रशासन की लापरवाही को बखूबी बयां कर रहा है।
यह तस्वीरें राजधानी लखनऊ के सबसे पॉश इलाके कहे जाने वाले हजरतगंज चौराहे की हैं। जहां एक बच्चे को टोचिंग क्रेन पर लदी गाड़ियों को संभालने में लगाया गया है। तस्वीरें इस बात की गवाह हैं कि एक छोटी सी चूक इस बच्चे के लिए जानलेवा हादसे का सबब बन सकती हैं। बावजूद इसके गाड़ी के ड्राइवर ने नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए इस बच्चे को खड़ा कर काम पर लगा दिया।
गौरतलब है कि इस चौराहे पर हर समय पुलिस मुस्तैद रहती है। जब यह बच्चा टोचिंग क्रेन पर लदी गाड़ियों को संभालने का काम कर रहा था तो उस समय भी काफी पुलिसकर्मी वहां मौजूद थे, लेकिन किसी ने भी इस गैर कानूनी घटना को गंभीरता से नही लिया। सूबे में आए दिन बाल श्रम को जड़ से उखाड़ फेंकने वाले बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं, लेकिन असल में सच्चाई सबके सामने हैं।
क्या कहना है सहायक बाल श्रम अधिकारी का ?
-इस मामले में सहायक बाल श्रम अधिकारी किरण का कहना है कि डीएम राजशेखर के निर्देशन में बाल श्रम को रोकने के लिए कई टीमें बनाई गई हैं।
-यह टीमें समय-समय पर निरीक्षण करती रहती हैं। हम इसकी जांच करेंगे और कार्रवाई भी करेंगे।
क्या कहना है डीएम का ?
-इस मामले में जब newstrack.com ने लखनऊ के डीएम राजशेखर से बात की तो उनका कहना है कि आपके बताने पर यह मामला मैंने सज्ञान में ले लिया है।
-मैं नगर निगम के अधिकारियों से इस बारे में बात करुंगा।
भारत में 5 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक
-सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 2 करोड़ और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार लगभग 5 करोड़ बच्चे बाल श्रमिक हैं।
-इन बाल श्रमिकों में से 19 प्रतिशत के लगभग घरेलू नौकर हैं।
-वहीँ ग्रामीण, असंगठित क्षेत्रों और कृषि क्षेत्र से लगभग 80 प्रतिशत बाल श्रमिक हैं।
-बच्चों के अभिभावक थोड़े पैसों में उनको ऐसे ठेकेदारों के हाथ बेच देते हैं जो उनको होटलों, कोठियों और सरकारी विभागों में काम पर लगा देते हैं।
-इसके बदले में उन्हें थोड़ा सा खाना देकर मनमाना काम कराते हैं।
-18 घंटे या उससे भी अधिक काम करना, आधे पेट खाना और मनमाफिक काम न होने पर पिटाई यही उनका जीवन बन जाता है।