सुल्तानपुर: कर्बला का वाकया सन 61 हिजरी में अंजाम पाया, लेकिन साढ़े तेरह सौ से भी ज्यादा का समय गुजर जानें के बाद भी इसकी याद ताजा है। सोमवार को शिया समुदाय ने अपने रीति रिवाज के अनुसार काले कपड़े पहन कर मजलिसों और जुलूसों का आयोजन कर दिया। शहर के हुसैनी हाल खैराबाद से आगाजे मोहर्रम का जब जुलूस निकाला तो नन्हा अजादार हाथो में अलम लेकर या हुसैन करता हुआ जुलूस के साथ हो लिया।
हुसैनी मंच (शिया कमेटी) के अध्यक्ष अज़ादार हुसैन ने जानकारी देते हुए बताया कि हुसैनी हाल खैराबाद स्थित नसीम आबदी के घर से जुलूस का आयोजन किया गया। जुलूस की मजलिस को खेताब (सम्बोधित) करते हुए मौलाना मुशीर अब्बास ने कहा कि यजीद अपने दौर का जालिम शासक जिसनें कब्ज़ा करके सत्ता हासिल की और फिर अरब समेत आसपास के क्षेत्रों में बर्बरता और अराजकता कायम की। हर कोई यजीद के ज़ुल्म (अत्याचार) से त्रस्त था लेकिन उसके विरोध में कोई आवाज नही उठा पा रहा था।
ऐसे में पैगम्बर मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन ने दीन और इंसानियत को बचाने के लिए 28 रजब सन 60 हिजरी को मदीना छोड़ा, और 2 मोहर्रम सन 61 हिजरी को वो अपने घर वालों के साथ कर्बला पहुंचे। जहां अंत में उन्हें, उनके साथियों व उनके बच्चों को भूखा-प्यासा शहीद किया गया। तब से आज तक बच्चे, जवान और बूढ़े कर्बला की याद मनाते हुए इंसानियत का पैगाम देने के लिए जुलूस निकालते हैं। श्री हुसैन ने बताया कि जुलूस में अंजुमन गुंचए मजलूमिया ने नौहा-मातम और सीना जनी पेश किया। मुख्य रूप से जियाउल हसनैन, मुश्ताक़ अली, शैबी, अजहर अब्बास, आसिम सज्जाद, जमन, आलम आदि लोग मौजूद रहे।