यहां आज भी कई ग्राम पंचायतें हैं गुलाम, वजह जान हो जायेंगे हैरान

देशभर में मिनी चम्बल के नाम से मशहूर चित्रकूट के पाठा के बीहड़ डकैतों से ज्यादा दादुओं के चंगुल में फंसे रहे और इसी का नतीजा है कि आज भी इन ग्राम पंचायतों में मूलभूत समस्याएं हैं।

Update: 2019-11-11 10:58 GMT

अनुज हनुमत

चित्रकूट: आपको यकीन नहीं होगा कि आजादी के सत्तर बरस बाद भी आज देश के कई ऐसे इलाके हैं जहां की जनता गुलाम है। इसका एकमात्र कारण है, इन इलाकों की ग्राम पंचायतों का गुलाम होना। चित्रकूट जिले के पाठा इलाके में आज भी कई ऐसी ग्राम पंचायतें हैं जहां का प्रधान गुलाम है और ग्राम पंचायत भी।

मानिकपुर विकासखण्ड के अंतर्गत आने वाली कई ग्राम पंचायतों में प्रधान कोई और है प्रधानी किसी और के आदेश से चलती है। देशभर में मिनी चम्बल के नाम से मशहूर चित्रकूट के पाठा के बीहड़ डकैतों से ज्यादा दादुओं के चंगुल में फंसे रहे और इसी का नतीजा है कि आज भी इन ग्राम पंचायतों में मूलभूत समस्याएं हैं।

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डकैतों के खात्मे के बाद भी नहीं मिली मुक्ति

ये क्षेत्र पहले दादुलैण्ड था और फिर दादुआलैण्ड। लेकिन आज भी डकैतों के खात्मे के बाद इन दादुओं से क्षेत्र को मुक्ति नहीं मिली। ऐसे सभी दादुओ की संपत्ति की जांच होनी चाहिए। गरीब जनता के साथ जमकर लूट की गई और आज भी इनकी आत्मा पर इन दादुओ का ही कब्जा है । कुछ ऐसी भी ग्राम पंचायतें हैं जहां सचिवो का कब्जा है।

इतना ही नहीं बल्कि सबसे बड़ी सच्चाई ये है कि दादुओं के कब्जे वाली ग्राम पंचायतों में मौजूदा प्रधान आपको गुलामी की जंजीरों में जकड़े ही मिलेंगे। मानिकपुर विकासखण्ड के अंतर्गत आने वाली ऊँचाडीह ,अमचुर नेरुआ ,चुरेह कशेरुआ ,टिकरिया ,जमुनिहाई और मंगनवा ग्राम पंचायतें ऐसी हैं जहां दादुओं और सचिवों का कब्जा है।

इन सभी ग्राम पंचायतों में आज तक विकास के नाम पर सिर्फ छलावा हुआ है। कोल आदिवासी और दलित समुदाय बाहुल्य इन सभी ग्राम पंचायतों में दादुओं ने बहुत भ्रष्टाचार किया है।

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मूलभूत सुविधाओं से दूर है ये इलाका

शिक्षा,रोजगार और मूलभूत सुविधाओं से हमेशा इस वर्ग को दूर रखने में इन दादुओं का बड़ा हाथ है। शौचालय,आवास,राशन,सरकारी सुविधाओं में जमकर धांधली की गई है। अगर इन सभी ग्राम पंचायतों को गुलामी की जंजीरों से समय रहते मुक्त नहीं कराया गया तो कभी विकास सम्भव नहीं है।

इन सभी ग्राम पंचायतो में शिक्षा का स्तर भी शून्य है और पलायन भी सबसे ज्यादा। इन दादुओ के खिलाफ बोलने की हिम्मत भी लोग नही जुटा पाते। नई पीढ़ी जागरूक होने के बाद भी हिम्मत नही जुटा पाती। चुनाव के दौरान इन दादुओ द्वारा जनता के बीच शराब वितरित कर सोंचने और समझने की ताकत ही छीन ली जाती है।

अगर सीट आरक्षित है तो फिर ये ऐसा चेहरा सामने खड़ा करते है जिससे जीतने के बाद वो कब्जे में रहे। सत्तर बरस बाद भी लोग लकड़ी के गट्ठे बेंचकर जीवन यापन कर रहे हैं और दादुओं का जलवा कायम है।

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