Sonbhadra News: विभागीय मिलीभगत से वाहनों के रिलीज ऑर्डर में हुआ फर्जीवाड़ा, सीएम को भेजी गई शिकायत

Sonbhadra News: जिले के सहायक संभागीय परिवहन कार्यालय से वाहनों को रिलीज कराने में हुए फर्जीवाड़े का मामला एक बार फिर से गरमा उठा है।

Update:2022-10-27 19:32 IST

विभागीय मिलीभगत से वाहनों के रिलीज ऑर्डर में हुआ फर्जीवाड़ा (Pic: Social Media)

Sonbhadra News: जिले के सहायक संभागीय परिवहन कार्यालय से वाहनों को रिलीज कराने में हुए फर्जीवाड़े का मामला एक बार फिर से गरमा उठा है। मामले में विभागीय मिलीभगत का आरोप लगाते हुए जहां मुख्यमंत्री सहित अन्य को शिकायत भेजी गई है। वहीं, सोनभद्र और मिर्जापुर कार्यालय की तरफ से आरटीआई के जरिए एक ही बिंदु पर दिए गए अलग-अलग जवाब ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। मामले के खुलासे के चार माह बाद भी विभागीय जांच तथा थानों से छुड़ाए गए वाहनों के सत्यापन का कार्य पूरा न होने और इस मसले पर जिम्मेदारों की चुप्पी को लेकर भी तरह-तरह की चर्चा बनी हुई है।

बताते चलें कि विभागीय स्तर पर चल रही फर्जीवाड़े की सुगबुगाहट का खुलासा सबसे पहले न्यूजट्रैक ने किया था। इसके बाद निदेशालय स्तर से दिखाई गई तेजी, विभागीय अधिकारियों की सक्रियता और डीएम चंद्रविजय सिंह की सख्ती के बाद, 56 वाहन स्वामियों और उसके चालकों के खिलाफ विभिन्न थानों में एफआईआर दर्ज कराई गई। पिछले तीन सालों में अब तक कितने वाहन थानों से छोड़े गए और उनको छोड़ने के लिए भेजे गए विभागीय रिलीज ऑर्डर की क्या स्थिति है? इसकी जांच और सत्यापन के लिए उपनिदेशक वाराणसी अशोक सिंह की तरफ से तीन सदस्यीय टीम गठित की गई लेकिन अब तक यह टीम सत्यापन/जांच पूरी नहीं कर पाई है। इस मसले पर जानकारी मांगे जाने पर एआरटीओ प्रवर्तन धनवीर यादव का कहना है कि मामले को आरटीओ मिर्जापुर राजेश वर्मा देख रहे हैं। इसलिए उन्हीं से जानकारी लिया जाना ठीक रहेगा।

आरटीओ प्रवर्तन राजेश वर्मा का कहना है कि मामले में पुलिस जांच चल रही है इसलिए इस पर किसी तरह की टिप्पणी उचित नहीं होगी। वहीं आरटीओ प्रशासन संजय तिवारी का कहना है कि मामले की जांच/सत्यापन शीघ्र पूर्ण करने के निर्देश दिए गए हैं। विभागीय कार्यों की व्यस्तता के कारण देर हो रही है। वहीं दूसरी तरफ, इस मामले में एआरटीओ की भूमिका को लेकर उठ रहे सवालों के बीच, मामले की जांच/ सत्यापन की जिम्मेदारी उनके अधीनस्थ अधिकारी आरआई को सौंपे जाने को लेकर भी कई सवाल उठाए जा रहे हैं। वह भी तब, जब पिछले कई सालों से आरआई, सोनभद्र में ही जमे हुए हैं और वाहनों के फिटनेस के मामले में उनकी भूमिका पर सवाल उठते रहे हैं।

38 दिन तक विभागीय स्तर पर मामला मैनेज करने की होती रही कोशिश

उत्तर प्रदेश ट्रक मालिक कल्याण समिति के अध्यक्ष धीरज सिंह ने सहायक संभागीय परिवहन कार्यालय सोनभद्र और संभागीय परिवहन कार्यालय मिर्ज़ापुर से आरटीआई के जरिए, फर्जीवाड़े और की गई कार्रवाई के बारे में सूचना मांगी थी। मिर्जापुर से दिए गए जवाब में बताया गया है कि गत सात जून को आरटीओ कार्यालय का औचक निरीक्षण किया गया था। उसी दौरान वहां आए कुछ लोगों ने फर्जी अवमुक्त आदेश की जानकारी दी। मामले की प्राथमिक छानबीन के बाद 14 जुलाई को प्रकरण में एफआईआर के निर्देश दिए गए। वहीं, इस मसले पर सोनभद्र कार्यालय की तरफ से दिए गए जवाब में बताया गया कि फर्जी रिलीज ऑर्डर का प्रकरण 15 जुलाई को प्रकाश में आया। सवाल उठता है कि जब सात जून को ही आरटीओ को इस बात की जानकारी हो गई थी और मामले का प्राथमिक सत्यापन कराते हुए 14 जुलाई को एफआईआर के निर्देश भी दे दिए गए थे। ऐसे में 38 दिन बाद 15 जुलाई को मामला प्रकाश में आने की बात किस आधार पर कही जा रही है। इसको लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। कहा जा रहा है कि कहीं विभागीय स्तर पर मामला मैनेज करने की तो कोशिश नहीं हो रही थी। बता दें कि 19 जून को सबसे पहले न्यूज़ ट्रैक ने इस फर्जीवाड़े का खुलासा किया था। उस दौरान सोनभद्र के विभागीय अधिकारी सिर्फ हल्की-फुल्की सुगबुगाहट की बात कर रहे थे। जब मामले ने सुर्खियां बटोरी तब जाकर कार्रवाई शुरू हुई। इस मामले में एक दिलचस्प पहलू और है, 30 अगस्त तक तो इस मामले में तेजी भी दिखी लेकिन अगस्त के आखिरी में उपनिदेशक वाराणसी द्वारा गठित की गई टीम के जांच की समय सीमा में विस्तार के साथ ही इस मामले में तेजी से आगे बढ़ रही कार्रवाई ठंडी पड़ गई।

सीएम को भेजी गई शिकायत में उठाए गए हैं ढेरो सवाल

धीरज सिंह की तरफ से सीएम सहित अन्य को भेजी गई शिकायत में एआरटीओ प्रशासन रहे पीएस राय को, आरटीओ को हुई जानकारी के 38 दिन बाद मामले की जानकारी होने, प्रकरण के संज्ञान में आने से पूर्व मई व जून से ही ट्रकों को ब्लैकलिस्ट करने की प्रक्रिया अपनाए जाने, काफी हीलाहवाली के बाद एफआईआर दर्ज कराने, कई प्रकरणों में चुप्पी साध लेने, मई-जून में ब्लैक लिस्ट हुए वाहनों पर ही एफआईआर दर्ज होने, वैध अवमुक्त आदेश और अवैध अवमुक्त आदेश में हस्तलेखीय समरूपता दिखने को लेकर सवाल उठाए गए हैं। इन तथ्यों के आधार पर दावा किया गया है कि बगैर विभागीय संलिप्तता के इतना बड़ा फर्जीवाड़ा नहीं हो सकता। 

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