Genetically Modified Mustard: आनुवंशिक संवर्धित सरसों की खेती न तो स्वदेशी है और न ही सुरक्षित: विकास श्रीवास्तव
Genetically Modified Mustard: कांग्रेस ने इससे भारतीय कृषि,वानिकी -पर्यावरण पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों पर चिंता जताते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री को पत्र भेजा
लखनऊ : कांग्रेस पार्टी ने आनुवंशिक रूप से संवर्धित (Genetically Modified-GM) सरसों की व्यावसायिक खेती के लिए किए जाने के प्रस्ताव को केंद्र सरकार के अधीन और महत्वपूर्ण निर्णायक समिति "आनुवंशिक अभियांत्रिकी मूल्यांकन समिति (GEAC)" द्वारा अपनाए जाने पर अपनी घोर आपत्ति दर्ज कराई है। कांग्रेस पार्टी ने इससे भारतीय कृषि,वानिकी और पर्यावरण पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों पर घोर चिंता व्यक्त करते हुए केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव को एक पत्र भेजा कर आनुवंशिक संवर्धित खेती के किसी भी प्रस्ताव को मंजूरी न दिए जाने की मांग किया हैं।
संवर्धित सरसों की खेती से पड़ने वाले दुष्प्रभाव के वैज्ञानिक तथ्यों को विस्तारपूर्वक बताते हुए कांग्रेस प्रवक्ता विकास श्रीवास्तव ने कहा कि भारतीय फसलों और मानव-स्वास्थ्य पर अकल्पनीय दुष्प्रभाव: आनुवंशिक संवर्धित सरसों की खेती में हर्बीसाइड्स (Herbicides) रसायनों का प्रयोग से बढ़ेगा। बड़े पैमाने पर बीज तैयार करने के लिए आनुवंशिक संवर्धित सरसों में थर्ड 'बार' जीन डालना जरूरी हैं, क्योंकि इसके जरिए यह पहचान होती है कि कौन से पौधे आनुवंशिक संवर्धित हैं। जो पौधे आनुवंशिक संवर्धित नहीं होंगे, वे खर-पतवार को नष्ट करने वाले रसायन का सामना नहीं कर पाएंगे और नष्ट जायेंगे। कृषि वैज्ञानिकों के शोध से यह भी ज्ञात हुआ है कि आनुवंशिक अभियांत्रिकी हर्बिसाइड का अंधाधुंध उपयोग होने लगा तो पौधों की कई किस्मों को भारी नुकसान हो जाएगा।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता विकास श्रीवास्तव ने बताया कि उत्तर प्रदेश कांग्रेस जन व्यथा निस्तारण समिति द्वारा पर्यावरण,वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पत्र भेज कर कहा गया है कि बिना किसी गंभीर चर्चा और भारत के सभी राज्यों समेत देश के विभिन्न राजनीतिक दलों, गैर-राजनीतिक संस्थाओं, कृषि विशेषज्ञों और भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हमारे कृषक समुदाय को विश्वास में लिए बगैर आनुवंशिक संवर्धित (Genetically Modified-GM) खेती के किसी भी प्रस्ताव को मंजूरी न दी जाए। उन्होंने बताया कि विशेषज्ञों से प्राप्त सूचना से ज्ञात हुआ है कि केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के अधीन कार्यरत संस्था आनुवंशिक अभियांत्रिकी मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee-GEAC) ने भारत में आनुवंशिक रूप से संवर्धित (Genetically Modified-GM) सरसों की व्यावसायिक खेती किए जाने के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान कर दी है।
विकास श्रीवास्तव ने कहा की हमें यह भी जानकारी प्राप्त हुई है कि इस महत्वपूर्ण समिति ने आनुवंशिक संवर्धित केले, टमाटर और रबर पर प्रायोगिक परीक्षण (field trial) की भी मंजूरी दी है (स्रोत: Money Control EP192)। उल्लेखनीय है कि GEAC के आनुवंशिक रूप से संवर्धित (Genetically Modified-GM) सरसों की व्यावसायिक खेती के प्रस्ताव को आपका मंत्रालय 2017 में इस आधार पर अस्वीकार भी कर चुका है।
कॉग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि आनुवंशिक रूप से संवर्धित खेती के विषय में और अधिक जानकारी की आवश्यकता है। भारत में पहली बार 2002 में आनुवंशिक रूप से संशोधित कपास के साथ आनुवंशिक संवर्धित खेती की अनुमति दी गई थी, जिसके उसके अच्छे-बुरे परिणामों के बारे में निरंतर चर्चा जारी है। कपास के अतिरिक्त, भारत सरकार ने किसी अन्य आनुवंशिक संवर्धित (transgenic) फसल को मंजूरी नहीं दी है। इससे पूर्व वर्ष 2010 में तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री श्री जयराम रमेश द्वारा भारत में आनुवंशिक संवर्धित बैगन (Bt brinjal) की वाणिज्यिक खेती के प्रस्ताव पर रोक लगा दिया था।इसके साथ ही माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी इस सब्जी के उत्पादन की स्वीकृति पर एक दशक का स्थगन-आदेश (moratorium) दिया था। अब नए सिरे से केंद्र की मोदी सरकार आनुवंशिक संवर्धित सरसों की खेती के प्रस्ताव की स्वीकृति पर विचार करने में तत्परता दिखा रही है।
कांग्रेस प्रवक्ता विकास श्रीवास्तव ने बताया कि पंजाब में फसलों पर रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण मानव स्वास्थ्य मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee-GEAC) ने 'संकर बीज' (Hybrid Seeds) तैयार करने में हर्बिसाइड के प्रयोग की इजाजत दी है, न कि 'संकर फसलों' (Hybrid Crops) के ऊपर। लेकिन क्या गारंटी है कि आनुवंशिक संवर्धित खेती के दौरान इस हर्बिसाइड का उपयोग नहीं होगा?
कांग्रेस पार्टी का मानना है कि कम अनुभवी या अशिक्षित कृषि आधारित समाज पर,मानव-स्वास्थ्य तथा भूजल, मृदा,जैव विविधता पर हर्बीसाइड रसायनों का हानिकारक प्रभाव पड़ना निश्चित है। आनुवंशिक संवर्धित सरसों के चलते मधुमक्खियों पर बुरा असर पड़ेगा, उनकी आबादी घट सकती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार आनुवंशिक संवर्धित सरसों की खेती से देश के करीब 10 लाख मधुमक्खी पालकों की आजीविका पर निश्चित ही संकट आने वाला है। क्योंकि अधिक मात्रा में दुग्ध उत्पादन के लिए में पशुओं में ऑक्सीटोसिन (oxytocin) के प्रयोग ने भारत में गिद्ध प्रजाति को विलुप्त कर दिया है। इसी प्रकार मोबाईल टावरों के स्थापित होने पर घरेलू चिड़िया (गौरेया) लगभग समाप्त हो गई है। आनुवंशिक संवर्धित बीज पूरी तरह चन्द बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा नियंत्रित एक व्यावसायिक चाल है। आनुवंशिक संवर्धित सरसों न तो स्वदेशी है और न ही सुरक्षित। आनुवंशिक संवर्धित बीज पूरी तरह चन्द बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा नियंत्रित व्यवसाय है, जिसके माध्यम से भारत की देशी फसलों की पैदावार को समाप्त होने का खतरा है। कृषि वैज्ञानिक इस प्रकार के प्रयोग को भारत के अरबों रुपए के कृषि बाज़ार पर विदेशी कंपनियों के कब्जे की साजिश भी मानते हैं।
उन्होंने बताया कि भारत में उत्पत्ति समापक बीजों (Terminator Seeds) का खतरा है। उल्लेखनीय है कि उत्पत्ति समापक बीजों (Terminator Seeds) को आनुवंशिक रूप से पहली फसल के बाद बाँझ होने के लिए संवर्धित किया जाता है। तमाम बहुआयामी फसलों के उत्पादक देशों में उत्पत्ति समापक तकनीक (Terminator Technique) पर प्रतिबंध भी है। लेकिन जैव प्रौद्योगिकी उद्योग (biotechnology industry) निरंतर 'उत्पत्ति समापक तकनीक' (Terminator Technique) को विधिक रूप दिलाने के लिए प्रयासरत है और मौजूदा प्रतिबंध को खत्म करने की कोशिश कर रहा है। इसका सबसे बड़ा नुकसान तो यह होगा कि एक बार फसल होने के बाद कृषक बीजों का उपयोग नहीं कर सकेंगे और यह बीज आनुवंशिक रूप से प्रत्येक फसल के बाद अनुपयोगी हो जाएंगे।
देश विदेश में चल रहे तमाम वैज्ञानिक शोध पत्रों के आधार पर संवर्धन खेती में व्याप्त विसंगतियों को गिनाने के क्रम में कांग्रेस प्रवक्ता विकास श्रीवास्तव ने आगे बताया कि देश के प्रत्येक भूभाग की भूमि खेती के उत्पादन के लिए विशिष्ट गुणों से भरपूर है,जिनके संरक्षण की निरंतर आवश्यकता है। उत्तर प्रदेश देश का प्रमुख कृषि उत्पादक राज्य है। यदि किसी भी वाह्य कारक से मृदा-संरक्षण (soil-conservation) के साथ मानव-जीवन और कृषि को अपरिवर्तनीय हानि पहुँचती है,तो देश सहित उत्तर प्रदेश में भी इसके भयावह परिणाम होंगे। इन्हीं शंकाओं के चलते विभिन्न राजनीतिक दल, गैर-राजनीतिक संस्थाएँ, विशेषज्ञ और कृषक समुदाय भारत में आनुवंशिक संवर्धित (Genetically Modified-GM) खेती के पक्ष में नहीं हैं। विगत लगभग तीन दशकों में विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं वाली केंद्र सरकारों और स्वयं 2017 में आपकी मोदी सरकार ने भी आनुवंशिक संवर्धित सरसों की व्यावसायिक खेती का विरोध किया था। कांग्रेस पार्टी और मेरा खुद का मानना है कि वानिकी, खेती और पर्यावरण से जुड़े किसी भी विषय पर हितधारकों से चर्चा किए बगैर आनुवंशिक संवर्धित सरसों की व्यावसायिक खेती को लागू करना भारतीय जनमानस के बीच भारी अराजकता को जन्म देगा।उन्होंने कहा कि वर्ष 2017 से कुछ भी नहीं बदला है, तब भी आनुवंशिक अभियांत्रिकी मूल्यांकन समिति (GEAC) ने आनुवंशिक संवर्धित सरसों की व्यावसायिक खेती को अपनी मंजूरी दे दी थी। लेकिन इस निर्णय को 'सक्षम प्राधिकारी' यानी केन्द्रीय पर्यावरण,वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा मंजूरी नहीं दी गई थी। शायद सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में हुए स्थगन आदेश की अवधि समाप्त होने के उपरांत एक बार फिर बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारतीय कृषि क्षेत्र में अनुवांशिक संवर्धन खेती की ओर अपने बाजार को स्थापित करने का व्यवसायिक षड्यंत्र कर रही हैं। जो भारतीयों के हित में कदापि नहीं है।