कलेक्टर-चपरासी का बेटा साथ पढ़ेंगे उस दिन संविधान सफल होगा: जस्टिस सुधीर

हमें यह समझने की जरूरत है कि भारत के लोकतंत्र में वास्तविक भागीदारी किसने की। यह देश का वह तबका है जो वोट देकर सरकार तो बनाता है मगर न तो सरकार चलाने में उसकी कोई भागीदारी है और न ही सरकारें उसके लिए कुछ करती है।

Update: 2019-11-30 14:44 GMT

प्रयागराज: हमें यह समझने की जरूरत है कि भारत के लोकतंत्र में वास्तविक भागीदारी किसने की। यह देश का वह तबका है जो वोट देकर सरकार तो बनाता है मगर न तो सरकार चलाने में उसकी कोई भागीदारी है और न ही सरकारें उसके लिए कुछ करती है।

यह देश की आबादी का 80 फीसदी हिस्सा है जो सिर्फ वोट देकर सरकार चुनता है मगर 20प्रतिशत लोग उस सरकार के अधिकार और सुविधाओं का लाभ उठाते हैं।

भारतीय लोकतंत्र सही मायने में तब सफल माना जाएगा जब हम उन 80 प्रतिशत लोगों के लिए भी वही शिक्षा, चिकित्सा सुविधा और सभी नागरिक सुविधाएं मुहैया कराएंगे जो हम अपने खुद के लिए चाहते हैं। जिस दिन कलेक्टर और चपरासी का बेटा एक साथ एक स्कूल में पढ़ने लगेंगे उस दिन संविधान सही मायने में सफल होगा।

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अमेरिका के संविधान के 200 साल हो चुके हैं: न्यायमूर्ति सुधीर

उक्त बातें आज यहां यंग लायर्स एसोसिएशन हाईकोर्ट द्वारा आयोजित ‘भारतीय संविधान के 70 वर्ष, लोकतंत्र की सफल यात्रा’ विषयक संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के तौर इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहीं।

जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने कहा कि संविधान के गठन से लेकर ही न्यायपालिका और विधायिका में एक प्रकार की खींचतान रही है, जो समय-समय पर उजागर होती रही। सुप्रीम कोर्ट ने तमाम निर्णयों के जरिए संविधान की व्याख्या की और विधायिका तथा न्यायपालिका के अधिकारों को स्पष्ट किया।

उन्होंने कहा कि जिन लोगों पर संविधान के निर्माण की जिम्मेदारी थी उन्होंने दुनिया भर के संविधानों के तमाम तत्वों को लेकर के अपने लिए एक संविधान बना दिया। ऐसा करते समय यह नहीं देखा गया कि हमारे देश की परिस्थितियां और जरूरतें क्या है।

जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि अमेरिका के संविधान के लगभग 200 साल हो चुके हैं और वहां बहुत ही कम संविधान संशोधन हुए जब कि हमने 70 सालों में ही 100 से अधिक संविधान संशोधन कर डाले है।

धर्म शास्त्रों में न्याय के मूल स्रोत मिलते हैं: न्यायमूर्ति पंकज

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने कहा कि हमारे धर्म शास्त्रों में न्याय के मूल स्रोत मिलते हैं। प्राकृतिक न्याय हमारे धर्म शास्त्रों की ही देन है। आज हमने अपने संविधान को कोडिफाई कर दिया है और यह संविधान ही हमारा धर्म शास्त्र है।

उन्होंने कहा कि भारत की परिस्थितियों और व्यवहारिकता को देखते हुए हमें कानून लागू करना होगा। इससे पूर्व हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश पांडे ने संगोष्ठी के विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला और संविधान के कई अनछुए पहलुओं को उजागर किया।

वरिष्ठ अधिवक्ता एनसी राजवंशी ने भी संगोष्ठी को संबोधित किया। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के महासचिव जेपी सिंह ने कार्यक्रम का संचालन तथा यंग लायर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संतोष तिवारी ने अतिथियों को धन्यवाद दिया।

कार्यक्रम में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन और यंग लायर्स एसोसिएशन के पदाधिकारियों के अलावा बड़ी संख्या में अधिवक्ता उपस्थित थे।

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