कोरोना इफेक्ट : बाकी बीमारियों का इलाज ठप

पूरी दुनिया कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रही है। सरकार के साथ ही आमलोग इस महामारी से लड़ने में लगे हुए हैं। इस जंग में सबसे बड़ी भूमिका अस्पतालों,डॉक्टरों एवं स्वास्थ्य कर्मचारियों की है। यह सभी अपनी भूमिका का पालन कर भी रहे हैं। लेकिन वेस्ट यूपी के मेरठ शहर समेत कई शहरों में स्थिति कुछ दूसरी है।

Update:2020-05-09 20:48 IST

सुशील कुमार

मेरठ : पूरी दुनिया कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रही है। सरकार के साथ ही आमलोग इस महामारी से लड़ने में लगे हुए हैं। इस जंग में सबसे बड़ी भूमिका अस्पतालों,डॉक्टरों एवं स्वास्थ्य कर्मचारियों की है। यह सभी अपनी भूमिका का पालन कर भी रहे हैं। लेकिन वेस्ट यूपी के मेरठ शहर समेत कई शहरों में स्थिति कुछ दूसरी है। यहां जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में रूटीन बीमारियों का भी इलाज नहीं हो पा रहा है। ऐसी परिस्थिति में काफी संख्या में मरीज मेडिकल स्टोर के भरोसे हैं। दवा दुकान वाले तारणहार के रूप में सामने आए हैं। अचानक किसी तरह की शारीरिक समस्या होने पर मेडिकल स्टोर पर जाना पड़ता है। वहा मौखिक रूप से बताने पर दवा दुकानदार दवा देते हैं।

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टीकाकरण बन्द

सबसे बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ रहा है मासूमों को, जिनका नियमित टीकाकरण लॉकडाउन के कारण बंद हो गया है। सरकारी अस्पतालों में टीकाकरण बंद है और निजी डॉक्टरों ने मौका देखकर फीस इतनी बढ़ा दी है कि गरीबों के लिए ये पहुंच से बाहर है। बता दें कि शिशुओं में तमाम बीमारियों को रोकने के लिए सरकार वृहद स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाती है। इसके अलावा जिला अस्पताल, मेडिकल कॉलेज और अन्य सरकारी अस्पतालों में भी नवजात बच्चों का मुफ्त में टीकाकरण किया जाता है। सवा महीने से लेकर पांच साल तक के बच्चों को इन अस्पतालों में मुफ्त टीके लगाए जाते हैं। इसके अलावा हर सप्ताह इसके लिए कैंप भी लगाए जाते हैं ताकि कोई भी बच्चा इन जीवनदायिनी टीकों से महरूम ना रहे।

 

हजारों रुपये में लग रहा टीका

प्राइवेट डॉक्टर या निजी अस्पतालों में इन टीकों का खर्चा एक हजार से लेकर दो हजार तक बैठ जाता है। एक अनुमान के मुताबिक जिले में रोजाना एक हजार से ज्यादा बच्चों का टीकाकरण विभिन्न सरकारी अस्पतालों और मेडिकल में किया जाता है। बीते सवा महीने से सरकारी अस्पतालों में टीकाकरण का कार्य बिल्कुल बंद है। निजी डॉक्टरों ने मौका देखकर टीकाकरण की फीस बहुत ज्यादा बढ़ा दी है। जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डा. विश्वास चौधरी से जब उस बारे में बात की गई तो उनका कहना था कि शासन की ओर से दो हफ्ते के लिए वैक्सीनेशन पर रोक लगाई गई थी।फिलहाल रोक हट गई है। जल्दी ही टीकाकरण शुरू किया जाएगा।

डिलीवरी भी बंद

गत दिनों निजी अस्पताल में प्रसव के बाद महिला में कोरोना संक्रमण की पुष्टि होने के बाद जिले की गर्भवती महिलाओं के सामने परेशानी उत्पन्न हो गई है। निजी अस्पताल इन महिलाओं को प्रसव के लिए भर्ती करने से मना कर रहे हैं। कोरोना संबंधी सावधानी के कारण ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं जिनमें महिलाओं की कोरोना जांच नहीं होने पर उन्हें अस्पताल से लौटाया जा रहा है। पिछले दिनों ग्राम भैंसा निवासी साक्षी को प्रसव पीड़ा के चलते सीएचसी में लाया गया। यहां उसे दवा देकर सबसे पहले कोरोना टेस्ट कराने के लिए कहा गया। सीएचसी प्रभारी का कहना है कि बिना कोरोना टेस्ट कराए डिलीवरी कराने का आदेश नहीं है। हालांकि यहां सरकारी अस्पताल में कोरोना टेस्ट की सुविधा नहीं है।

इसी तरह का मामला गाजियाबाद के डासना में आया। यहां की रफीकाबाद कॉलोनी में रहने वाले अब्दुल जब्बार की गर्भवती पत्नी का उपचार पिलखुवा के रामा अस्पताल में चल रहा था। डॉक्टर ने प्रसव के लिए 29 अप्रैल का समय दिया था। समय पूरा होने पर जब वह पत्नी को लेकर अस्पताल पहुंचे तो प्रबंधन ने उनसे कोरोना जांच की रिपोर्ट मांगी,लेकिन उनके पास नहीं थी। ऐसे में उनसे पहले कोरोना टेस्ट कराने को कहा गया। अस्पताल प्रबंधन ने बिना कोरोना टेस्ट रिपोर्ट के महिला को भर्ती करने से इनकार कर दिया। डॉक्टर ने देखने तक से मना कर दिया। इसके बाद अब्दुल अपनी पत्नी को लेकर जिला एमएमजी अस्पताल के आईडीएसपी लैब पहुंचे जहां सैंपल लिया गया और एंबुलेंस से घर भेजा गया। अब्दुल इस बात से परेशान हैं कि कहीं बीच में प्रसव पीड़ा होने लगी तो वह क्या करेंगे, क्योंकि अस्पताल बिना कोरोना टेस्ट के भर्ती नहीं करेंगे और रिपोर्ट उनके पास है नहीं।

 

ओपीडी भी बंद

अस्पतालों में कोरोना के चलते ओपीडी बंद होने के बाद शहर के छोटे अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीजों से इमरजेंसी वाली फीस वसूली जा रही है। बदलते मौसम के चलते शहर में बुखार, खांसी और जुकाम के मरीजों में बढ़ोतरी हुई है। सरकारी अस्पतालों में केवल इमरजेंसी ही संचालित हो रही हैं। ऐसे में मरीज निजी अस्पतालों का ही रुख कर रहे हैं और मजबूरी में डेढ़ या दोगुनी फीस देकर उपचार करवा रहे हैं।

जांच तक नहीं हो रही

जहा निजी अस्पतालों में ओपीडी सेवा बंद है वहीं दूसरी ओर शहर के अधिकाश लेबोरेटरी और डायग्नोस्टिक सेंटर भी बंद हो गए हैं। इससे खून जाच, एक्सरे समेत अन्य शारीरिक डायग्नोस्टिक नहीं का काम बंद है। इस मामले में आईएमए के सचिव डॉ.नवनीत अग्रवाल इतना कहते हैं,सरकारी निर्देश पर ही डॉक्टरों के ओपीडी क्लीनिक बंद हैं। जिसके बाद केवल अस्पतालों की इमरजेंसी में ही मरीजों को देखा जा रहा है। अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीजों से इमरजेंसी वाला ही शुल्क ही लिया जा रहा है।

 

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नर्सिंग होम वाले बता रहे अपनी दिक्कत

निजी नर्सिग होम संचालक अपनी कई समस्याएं बताते हैं। उनका कहना है कि निजी अस्पतालों में संक्रमित मरीजों के मिलने से मेरठ में फिलहाल १०० से ज्यादा मरीज, डॉक्टर और नर्स क्वारंटाइन हो चुके हैं। लॉकडाउन में जो प्रबंधन अस्पताल खोलने सोच रहे थे,उन्होंने भी अब कदम पीछे खींच लिए हैं। जो अस्पताल खुले हुए थे,उनमें से कई कोरोना की वजह से अस्थायी तौर पर बंद हो गए हैं। इलाज के दौरान कोई पॉजिटिव केस निकलता है तो मुकदमा करा दिया जाता है। हमारा नर्सिंग होम सील के बाद मुकदमा दर्ज होते। इसीलिए हम लोगों ने दूरी बना ली है। पिछले दिनों शहर के निजी नर्सिग होम संचालकों की प्रमुख सचिव के साथ हुई बैठक में शहर के १० बड़े अस्पताल में इमरजेंसी सेवाएं शुरु करने की सहमति बनी थी, लेकिन अस्पतालों बढ़ते संक्रमण को देखते हुए इस फैसले से हाथ खींच लिए गए हैं। अब कोई भी अस्पताल इमरजेंसी सेवाएं तक शुरु करने पर सहमत नही है। उन्हें डर हैकि भर्ती होने वाला कोई मरीज संक्रमित न निकल आए।

सीएमओ डा. राजकुमार केवल इतना ही कहते हैं,शासन के आदेश पर निजी क्लीनिक और अस्पतालों में आपीडी बंद है।

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