काशी में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, माघ पूर्णिमा पर गंगा में लगाई पुण्य की डुबकी

गंगा स्नान एवं पूजा के लिए दशाश्वमेध घाट, शिवाला घाट, असि घाट, संत रविदास घाट समेत कई घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। माघी पूर्णिमा के मद्देनजर सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम किए गए हैं।

Update: 2021-02-11 05:57 GMT
काशी में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, माघ पूर्णिमा पर गंगा में लगाई पुण्य की डुबकी (PC: social media)

वाराणसी: माघ मास की पूर्णिमा के मौके पर धर्म नगरी वाराणसी में गंगा तट सहित प्रमुख पूर्वांचल की नदियों में सुबह से ही आस्थाकवानों ने पुण्या की डुबकी लगाकर समृद्धि और कल्यााण की कामना की। इसके बाद काशी विश्वनाथ व संकट मोचन मंदिरों में जाकर पूजा अर्चना व दान किया। इस मौके पर काशी में हर-हर महादेव के जयघोष से गूंज रही है।घाटों पर भीड़ की सुरक्षा को लेकर जगह-जगह बैरिकेडिंग कर दी गई है। माघ की पूर्णिमा के नहान का विशेष महत्व होता है। यही वजह है जो श्रद्धालु संगम स्नान नहीं कर पाते हैं, वो काशी में स्नान का दान पुण्य करते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह पूर्णिमा चंद्रमास का आखिरी दिन होता है।

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घाटों पर उमड़ी आस्थावानों की भीड़

गंगा स्नान एवं पूजा के लिए दशाश्वमेध घाट, शिवाला घाट, असि घाट, संत रविदास घाट समेत कई घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। माघी पूर्णिमा के मद्देनजर सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम किए गए हैं। शहरी इलाके में एहतियातन यातायात व्यवस्था में व्यापक बदलाव किए गए हैं। घाटों की ओर जाने वाले रास्तों पर वाहनों की आवाजाही पर आंशिक प्रतिबंध लगाये गए हैं। गंगा नदी में स्नान स्थलों पर रस्सी से घेरा बनाया गया ताकि लोग सुरक्षित तरीके से स्नान कर सकें। इसके अलावा उत्तर प्रदेश जल पुलिस एवं राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) के जवानों को तैनात किया गया। संभावित भीड़भाड़ वाले इलाकों में वाहनों के बिना वजह ठहराव पर नजर रखी जा रही है।

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मौनी अमावस्या पर स्नान का ये है महत्व

इस संबंध में पंडित विशेष तिवारी ने बताया कि मौनी अमावस्या के दिन सुबह से मौन व्रत रखा जाता है। ध्यान चिंतन आदि करना चाहिए। समौनी अमावस्या का अपना खास महत्व है। मौनी अमावस्या के दिन पवित्र नदी तट परदेवताओं का वास रहता है।नदी में स्नान करना ज्यादा फलदायी होता है। ग्रहों का दुर्लभ संयोग बनने के कारण इसका महत्व कई गुणा बढ़ गया है।स्नानोपरांत गरीबों -असहायों व पुरोहितों को तिल, पात्र, ऊनी वस्त्र, कंबल, कपास, गुड़, घी, उपानह, फल, अन्न व स्वर्णादि दान करने की परंपरा का निर्वहन करना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन और गोदान की परंपरा भी है। मान्याता है कि इससे जन्म-जन्मांतर के पापों का क्षय तथा कई जन्मों तक अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती रहती है।

रिपोर्ट- आशुतोष सिंह

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